एक ग़लीचा अपनेपन का,
प्रखर धूप में,
जलते अशांत चित पर,
स्नेह, करूणा और बंधुत्व का |
अपनेपन के रंगों में रंगा,
मख़मली एहसासों से सजा,
मनभावन ग़लीचा,
सजाये मन के द्वार पर |
किसी प्रिये के लिए ही क्यों,
सभी को प्रिय बनाने के लिये,
कुछ पल के लिये ही क्यों,
हर पल के लिये |
न भावों को दौड़ाएँ,
न उम्मीद की गठरी रखें |
ग़लीचा पैरों पर या,
पैर ग़लीचे पर,
ख़यालों में नहीं इत्मिनान से चलें |
गलत-फ़हमी की जमीं धूल,
वक़्त-बे-वक़्त झाड़ ले,
न जमे द्वेष,
द्वेष के एहसास को मिटा दें|
वक़्त की तेज़ धूप में उड़ जाता,
रंग ग़लीचे का,
समेट देती हैं ज़रूरतें,
ग़लीचे के मख़मली एहसास को |
रखें ख़याल,
हृदय में बिछे बंधुत्व के ग़लीचे का,
क्यों पनाह दें चापलूस चूहों को,
क्यों कुतरने दे मख़मली एहसासों को,
क्यों उड़ने दे रंग अपनेपन का |
- अनीता सैनी
प्रिय अनीता अपनेपन के उद्दात भावों की नयी परिभाषा गढ़ती रचना के लिए तुम्हे दाद देतीं हूँ। गलीचे के बहाने से आपसी प्रेम और सौहार्द की ये कल्पना अद्भुत है। रचना के स्नेहिल भाव बहुत प्रेरक हैं और हरजनसुखाय की भावना से ओत _प्रोत् हैं। ढेरों शुभकामनायें आत्मीयता के मखमली एहसासो से लबरेज़ रचना के लिए। साथ में मेरा प्यार।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
क्यों न हम बिछा दें
जवाब देंहटाएंएक गलीचा अपनेपन का
प्रखर धूप में
जलते अशांत चित पर
स्नेह, करूणा और बंधुत्व का ....,
बहुत सुन्दर भावों से सम्पन्न अत्यन्त सुन्दर सृजन अनीता जी । सस्नेह .....
प्रिय सखी मीना जी तहे दिल से आभार आप का
हटाएंसादर स्नेह
वक्त की तेज़ धूप में उड़ जाता
जवाब देंहटाएंरंग ग़लीचे का
समेट देती है जरूरतें
ग़लीचे के मखमली एहसास को.....वाह! बहुत सुंदर!!!
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
गलतफ़हमी की जमी धूल
जवाब देंहटाएंवक्त वे वक्त झाड़ ले
न जमे द्वेष
द्वेष के एहसास को मिटा दें.... बहुत ही बेहतरीन रचना सखी
तहे दिल से आभार प्रिय सखी अनुराधा जी
हटाएंसादर स्नेह
व्यक्ति में सकारात्मक विचारों की पौध रोपना दीर्घकालिक दुष्कर कार्य है। रचना का सन्देश समसामयिक है।
जवाब देंहटाएंजी सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
ऐसे अपऩेपन के गलीचे सभी के पास हो तो दुनिया कितनी सुंदर हो जाए. बहुत प्यारी रचना अनिता जी 👌👌
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी सुधा जी सस्नेह आभार आप का
हटाएंसादर
बेहतरीन काव्य है अनिता बहन शुभ्र भावों से सुशोभित साथ ही सुंदर काव्य धारा।
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर।
सस्नेह आभार प्रिय कुसुम दी जी
हटाएंसादर स्नेह
वाह अनीता जी अपनेपन का गलीचा
जवाब देंहटाएंमखमली एहसासों से सजा मनभावन गलीचा
आज के युग को प्रेरित करती रचना
तहे दिल से आभार प्रिय रितु दी
हटाएंसादर स्नेह
वाह!!प्रिय सखी ,बहुत खूबसूरत ,अपनेपन का गलीचा !!👌👌नमन आपकी लेखनी को 🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा दी जी सस्नेह आभार आप का
हटाएंसादर स्नेह
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 27 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय यशोदा दी जी हमक़दम में स्थान देने के लिए सहृदय आभार आप का
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सटीक रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत शुक्रिया आप का
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खूबसूरत रचना..
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय पम्मी दी जी
हटाएंसादर स्नेह
मीत यदि कोई संग हो, तो घास के हरे ग़लीचे भी अपनापन लिये होते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
प्रणाम।
सही कहा शशि भाई
हटाएंसहृदय आभार आप का
सादर
किसी प्रिय के लिए ही क्यों
जवाब देंहटाएंसभी को प्रिय बनाने के लिए
कुछ पल के लिये ही क्यों
हर पल के लिये
बहुत सुंदर ...भाव लिए आप का ये गलीचा मनमोह गया ,सखी.
प्रिय कामिनी दी जी तहे दिल से आभार आप का
हटाएंसादर स्नेह
सहृदय आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
गलत-फ़हमी की जमीं धूल
जवाब देंहटाएंवक़्त -बे - वक़्त झाड़ ले
न जमे द्वेष
द्वेष के एहसास को मिटा दें
बहुत ही सुन्दर भाव , उत्तम विचारों से सजी लाजवाब भावाभिव्यक्ति...
वाह!!!
सस्नेह आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर