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रविवार, मई 5

दोहे



  दोहे
 ऊब गया संबंध से, मन में  बचा न  नेह|
लालच मन को भा रहा,ओझल हुआ सनेह||

घड़ी-घड़ी  तन तड़पता ,मन  से तन  का  बैर| 
मेहनत छाँव तलाशती, माँग रही है  ख़ैर||

राह  प्रेम की है कठिन ,जग से हुई न पार|
दौड़ रहे सब नींद में,लिये स्वप्न का भार||


अन-धन सब अर्जित करें,मिला न पल भर चैन|
त्राहि-त्राहि पुकार रहे, मन मानस बेचैन||

 मन में मोह  समा गया,स्वार्थ हृदय के द्वार |
जग से रूठा  प्रेम जब ,बढ़ा द्वेष का भार||

- अनीता सैनी 

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन दोहे

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-05-2019) को "पत्थर के रसगुल्ले" (चर्चा अंक-3328) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सहृदय आभार आदरणीय
    सादर

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  4. अन धन सबअर्जित करें,मिला न पल भर चैन|
    त्राहि त्राहि पुकार रहे,मन मानस बेचैन|
    बहुत सुंदर सखी ,सादर स्नेह

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  5. बहुत सुंदर दोहे हैं, अनिता दी।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय ज्योति बहन
      सादर

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  6. लाजवाब व सार्थक बहूत उम्दा

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  7. राह प्रेम की है कठिन ,जग से हुई न पार|
    दौड़ रहे सब नींद में,लिये स्वप्न का भार||
    बहुत ही सुंदर, सार्थक और भाव भरे दोहे प्रिय अनिता , जो तुम्हारे हुनर की खास पहचान हैं | इस हुनर को खूब निखारो | मैं चाहूँ भी तो एक भी दोहा- जो दोहे के मापदंडों पर खरा उतरता हो-- लिख नहीं पाऊँगी | अपने को कम ना आंकों |लिखती जाओ बस|मेरा प्यार |

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    उत्तर
    1. प्रिय रेणु दी आप का सानिध्य और स्नेह ही जो हमेशा हौसला देता |आप का तहे दिल से आभार, आप का साथ हमेशा बना रहे |
      आभार
      सादर

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  8. दहका द्वेष का द्वंद्व जब प्रेम कुसुम कुम्हलाए।
    बुद्धि बरबस विषम भए मन माहुर मथ जाय ।।
    ढारुं धारा पीव का, प्राण पीयूष भर जाए।
    यत्र तत्र सर्वत्र सजन, सरस संजीवन छाय ।।

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    1. बहुत ही सुन्दर आदरणीय
      सुन्दर समीक्षा के लिए तहे दिल से आभार
      सादर

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