पिता के सान्निध्य की छाँव,
पति की आँखों में तलाशती,
जिंदगी के सफ़र में कब,
मोतियाबिन्द की शिकार बनी
यादों के फ़टे पन्नों में ढूंढ़ने लगी |
वक़्त के कटघरे में खड़ी,
हिम्मत का वृक्ष, हृदय में लगाती ,
अतीत के गलियारें से गुजरती,
पितृत्व की छाँव तलाशने लगी |
अविकल शब्दों की पल -पल पुकार,
चिंतामग्न टहलकदमी पिता की ,
ढ़लती ज़िंदगी, वक़्त का अभाव,
जकड़ा जिम्मेदारियों ने क़दम,
अब वो आँखें इंतजार में धसने लगी |
ख़ामोशी में सिमटे खिलखिलाते लम्हें ,
अनायास ही बातों में उलझते,
अँकुरित पितृ स्नेह के बीज,
नम आँखों की बौछार से,
करूणा भाव में बहने लगी |
- अनीता सैनी
भाव विभोर करती हृदयंगम भावाभिव्यक्ति अविस्मरणीय औ' अभिनंदनीय है।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन टिप्णी हेतु
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सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति सार्थक और मन को छूती अनुपम कृति।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय कुसुम दी जी
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सादर
पिता के सान्निध्य की छाँव,
जवाब देंहटाएंपति की आँखों में तलाशती,
जिंदगी के सफ़र में कब,
मोतियाबिन्द की शिकार बनी
यादों के फ़टे पन्नों में ढूंढने लगी |
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ प्रिय अनीता | एक लडकी पति से अनायास पिता सरीखी सुरक्षा की लालसा जरुर रखती है | सुंदर रचना पिता के सम्मान में | हार्दिक शुभकामनायें |
सस्नेह आभार प्रिय रेणु दी जी
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सादर
सुन्दर भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन हेतु
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सादर
बहुत सुन्दर अनीता जी !
जवाब देंहटाएंपिता के साथ बिताए हुए पल उनके जाने के बाद भी हमारा हौसला बढ़ाते हैं.
आदरणीय गोपेश जी सर आप का तहे दिल से आभार
हटाएंबहुत ही सुन्दर समीक्षा की है आप ने
प्रमाण
सादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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सादर
कोमल भावों से सजी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार दी जी
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सादर
पिता के सान्निध्य की छाँव,
जवाब देंहटाएंपति की आँखों में तलाशती,
जिंदगी के सफ़र में कब,
मोतियाबिन्द की शिकार बनी
यादों के फ़टे पन्नों में ढूंढने लगी |
हर लड़की पति में पिता को छवि ही तो ढूंढती हैं ,बहुत मार्मिक रचना सखी
सस्नेह आभार प्रिय कामिनी बहन
हटाएंसादर स्नेह
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-06-2019) को "पितृत्व की छाँव" (चर्चा अंक- 3369) (चर्चा अंक- 3362) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
पिता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु |
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सादर
वक़्त के कटघरे में खड़ी,
जवाब देंहटाएंहिम्मत का वृक्ष, हृदय में लगाती ,
अतीत के गलियारें से गुजरती,
पितृत्व की छाँव तलाशने लगी |...सच में अनीता जी बहुत खूबसूरत रचना...जिसके एक एक शब्द के साथ मुझे अपने पिता की एक एक बात याद आती गई ...
तहे दिल से आभार आप का, आप ने इतनी प्यारी समीक्षा से रचना को नवाज़ा
हटाएंसादर स्नेह
बेहद भावपूर्ण.. सुन्दर और सार्थक रचना अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय दी जी
हटाएंसादर
निःशब्द... बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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सादर
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना सखी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सखी
हटाएंसादर