शनिवार, जून 15

पितृत्व की छाँव

             
               
पिता  के  सान्निध्य   की  छाँव,
 पति  की  आँखों  में  तलाशती,
जिंदगी  के  सफ़र  में  कब,
 मोतियाबिन्द की  शिकार  बनी 
यादों  के  फ़टे  पन्नों  में  ढूंढ़ने  लगी |

वक़्त  के  कटघरे   में  खड़ी, 
 हिम्मत  का  वृक्ष,  हृदय में लगाती ,
अतीत के  गलियारें  से  गुजरती,   
पितृत्व  की   छाँव   तलाशने   लगी |

अविकल  शब्दों  की  पल -पल पुकार,  
चिंतामग्न  टहलकदमी  पिता  की ,
 ढ़लती  ज़िंदगी, वक़्त का  अभाव,
जकड़ा   जिम्मेदारियों   ने  क़दम,
अब वो  आँखें  इंतजार  में  धसने लगी |


ख़ामोशी  में  सिमटे  खिलखिलाते  लम्हें ,
अनायास  ही  बातों  में  उलझते, 
अँकुरित    पितृ   स्नेह   के  बीज,  
  नम   आँखों   की   बौछार   से, 
 करूणा   भाव   में   बहने   लगी  |

          - अनीता सैनी 

26 टिप्‍पणियां:

  1. भाव विभोर करती हृदयंगम भावाभिव्यक्ति अविस्मरणीय औ' अभिनंदनीय है।

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    1. सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन टिप्णी हेतु
      प्रणाम
      सादर

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति सार्थक और मन को छूती अनुपम कृति।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय कुसुम दी जी
      प्रणाम
      सादर

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  3. पिता के सान्निध्य की छाँव,
    पति की आँखों में तलाशती,
    जिंदगी के सफ़र में कब,
    मोतियाबिन्द की शिकार बनी
    यादों के फ़टे पन्नों में ढूंढने लगी |
    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ प्रिय अनीता | एक लडकी पति से अनायास पिता सरीखी सुरक्षा की लालसा जरुर रखती है | सुंदर रचना पिता के सम्मान में | हार्दिक शुभकामनायें |

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    1. सस्नेह आभार प्रिय रेणु दी जी
      प्रणाम
      सादर

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  4. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन हेतु
      प्रणाम
      सादर

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  5. बहुत सुन्दर अनीता जी !
    पिता के साथ बिताए हुए पल उनके जाने के बाद भी हमारा हौसला बढ़ाते हैं.

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    1. आदरणीय गोपेश जी सर आप का तहे दिल से आभार
      बहुत ही सुन्दर समीक्षा की है आप ने
      प्रमाण
      सादर

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  6. कोमल भावों से सजी सुंदर रचना

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  7. पिता के सान्निध्य की छाँव,
    पति की आँखों में तलाशती,
    जिंदगी के सफ़र में कब,
    मोतियाबिन्द की शिकार बनी
    यादों के फ़टे पन्नों में ढूंढने लगी |
    हर लड़की पति में पिता को छवि ही तो ढूंढती हैं ,बहुत मार्मिक रचना सखी

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    1. सस्नेह आभार प्रिय कामिनी बहन
      सादर स्नेह

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-06-2019) को "पितृत्व की छाँव" (चर्चा अंक- 3369) (चर्चा अंक- 3362) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पिता दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सहृदय आभार आदरणीय मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु |
      प्रणाम
      सादर

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  9. वक़्त के कटघरे में खड़ी,
    हिम्मत का वृक्ष, हृदय में लगाती ,
    अतीत के गलियारें से गुजरती,
    पितृत्व की छाँव तलाशने लगी |...सच में अनीता जी बहुत खूबसूरत रचना...जिसके एक एक शब्‍द के साथ मुझे अपने पिता की एक एक बात याद आती गई ...

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    1. तहे दिल से आभार आप का, आप ने इतनी प्यारी समीक्षा से रचना को नवाज़ा
      सादर स्नेह

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  10. बेहद भावपूर्ण.. सुन्दर और सार्थक रचना अनीता जी ।

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  11. निःशब्द... बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  12. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना सखी

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