अदृश्य में दृश्य,
ड्योढ़ी पर बैठी इंसानियत,
मटमैले रंगों का पहन परिधान,
ग़ुम हो रहे अस्तित्व का लिये दर्द,
पीपल के सूखे पत्तों सी सूख रही |
आँखों से टपकती, मनोभावों की पीड़ा,
समय के हाथों अंकुरित
संकीर्णता का बीज,
अंतर्मन से,
हैवानियत के लिबास में लिपटा इंसान,
इंसानियत अपनी खो रहा |
दरकिनार कर सुकून की चंद साँसें,
पीट रही अभाव का ढ़िढोरा,
बन भाग्य विधाता,
जीवन से लिपटी किस्मत का
ज्ञाता कहलाने में मग्न हो रहा |
साँसों के बहाव में बहती पीड़ा
पल - पल जूझ रही ख़्वाहिशें,
बनी अंतर्वेदना,
उपजा हिंसक रूप मानव मन में,
इंसानियत का कर रहा क़त्ल सरेआम,
तृष्णा का पुतला धरा पर पनपा, यही गाथा,
वक़्त, प्रकृति के कण - कण को सुना रहा |
- अनीता सैनी
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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सादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-06-2019) को "इंसानियत का रंग " (चर्चा अंक- 3364) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु
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सादर
इतना बढ़िया लेख पोस्ट करने के लिए धन्यवाद! अच्छा काम करते रहें!। इस अद्भुत लेख के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंgana download kaise kare
सहृदय आभार आप का उत्साहवर्धन समीक्षा हेतु
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सादर
वाह बहुत ही सार्थक आज का अमानवीय होता मनु एक एक शब्द जैसे चित्कार कर रहा है।
जवाब देंहटाएंइंसानियत तो आज ड्योढ़ी पर भी नही बैठी बहन तड़ी पार हो गई है भयावह चेहरा है समय का।
अप्रतिम अद्भुत लेखन।
सस्नेह आभार प्रिय दी जी सुन्दर समीक्षा हेतु
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सादर
बेहतरीन सृजन सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय अभिलाषा दी जी
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सादर
सुन्दर
जवाब देंहटाएंजी प्रणाम
हटाएंसादर स्नेह
सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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सादर
सुंदर शब्दों में पिरोए सार्थक भाव ... अद्भुत ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
सस्नेह आभार प्रिय सखी
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सादर
वाह!! सुंदर भावाभिव्यक्ति सखी अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी शुभा जी
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुंदर रचना सखी
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर स्नेह
हैवानियत के लिबास में लिपटा इंसान,
जवाब देंहटाएंइंसानियत अपनी खो रहा |
कड़वा सच अनीता जी
सहृदय आभार आदरणीय भास्कर भाई
हटाएंसादर
वाह अनुपम
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय दी जी
हटाएंसादर स्नेह
हैवानियत की मरम्मत करती,
जवाब देंहटाएंइंसानियत का पाठ पढ़ाती करती
भावाभिव्यक्ति सुखद औ सराहनीय है।
सुखद औ सराहनीय, अविस्मरणीय औ अभिनंदनीय है ।
जी सादर धन्यवाद सुप्रभातम् जय श्री कृष्ण जी ।
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी रचना प्रिय अनिता | बढती हैवानियत ने इंसानियत को कदम कदम पर शर्मसार किया है | इंसानियत का मलिन रूप सचमुच बहुत वेदना देता है | सस्नेह शुभकामनायें | यूँ ही लिखती रहो |
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय रेणु दी जी
हटाएंसादर स्नेह
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
तहे दिल से आभार प्रिय श्वेता दी जी
हटाएंसादर स्नेह
अति सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आप का आदरणीय
हटाएंसादर
सुंदर अभिव्यक्ति 👌👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार दी
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