गुरुवार, जून 20

" पीपल के पत्तों की पालकी "




समृद्धशील  संस्कृति,

 संस्कारों से सराबोर , 

सहनशीलता  की  पराकाष्ठा, 

समेटे  समय  का  दौर |


बंधुत्व   से   बँधी, 

बरगद  ने  सुना   बखान, 

पीपल  के  पत्तों  की  पालकी,

 मानव  को  मानवता  का  वरदान ,

  समय   के  कंधों   पर,   हो   सवार 

  करने   चली ,  दुनिया  का  उद्धार |


देवदूत  वे   दादा-दादी, 

 दिया   दामन   दायित्व    का,

बन  सितारे   नाना-नानी,

महकाया  आँगन  संस्कारों  का 


मन    मानव   का  मलिन   हुआ,

  महका   महत्व    मंसूबो   का, 

   दबा  द्वेष  उर  में , किया  क़त्ल सद्भावों का 

   दर्द  का  मरुस्थल   दिया    दहका |


सजी   संर्कीणता   सपनों   में,

सड़ने   लगे   सब  संस्कार  ,

जीवन   दुष्कर  हुआ,  जनमानस  का ,

घोला  परिवेश   में   विकार |

- अनीता सैनी 

30 टिप्‍पणियां:

  1. अनुप्रास अलंकार सेसजी और भावों से समृद्ध रचना प्रियअनीता। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय रेणु दी जी
      सादर स्नेह

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  2. समय काल का बदलता परिवेश कहां से कहां आ गया बहुत सटीक सार्थक सृजन।
    अंलकृत और सुंदर शब्दों का संयोजन।

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय कुसुम दी जी
      सादर स्नेह

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  3. सांस्कृतिक मूल्यों का ताना-बाना बुनती रचना में पालकी की मनोहारी कल्पना.
    सुन्दर रचना.

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    1. सहृदय आभार आदरणीय रविन्द्र जी
      प्रणाम
      सादर

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  4. बंधुत्व से बंधी बरगद ने सुनाई बखान।वाह क्या बात है।अति सुंदर।

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    1. तहे दिल से आभार आप का
      सादर स्नेह
      प्रणाम

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  5. बेहतरीन रचना ,सखी

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    1. सस्नेह आभार सखी
      सादर स्नेह
      प्रणाम

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  6. बहुत सुंदर रचना सखी 👌 👌

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  7. बहुत सुन्दर मनोभावों से सुसज्जित सुन्दर रचना ।

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय सखी मीना जी
      सादर स्नेह

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  8. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/06/2019 की बुलेटिन, " अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. सहृदय आभार आदरणीय ब्लॉग बुलेटिन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए
      प्रणाम
      सादर

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  9. बिम्बों की अनुप्रासिक शब्दावली पीपल के पत्तों की पालकी में सवार!

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    1. सहृदय आभार आदरणीय आप का
      प्रणाम
      सादर

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  10. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सखी
      प्रणाम
      सादर

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  11. वृक्षों और नदियों का सम्मान करने वाली संस्कृति आज दोराहे पर खड़ी है...

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीया
      प्रणाम
      सादर

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार श्वेता दी जी मुझे पाँच लिंकों का आंनद पर स्थान देने के लिए
      सादर स्नेह

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  13. सुन्दर मनोभावों से सुसज्जित
    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आप का भास्कर भाई
      वक़्त मिलते ही आती हूँ आप के ब्लॉग पर
      प्रणाम

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