आशा का दीपक जला, गुरु का करना ध्यान।
तब ही होगी ज्ञान की, राह बहुत आसान।।
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कठिन राह में जो हमें, चलना दे सिखलाय।
गुरु की भक्ति से यहाँ, सब सम्भव हो जाय।।
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गुरु की महिमा का करें, कैसे शब्द बखान।
जाकर के गुरुधाम में, मिलता हमको ज्ञान।।
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मन की कोटर में रखो, हरदम गुरु का रूप।
गूँगे को मिलते जहाँ, शब्द-रूप अनुरूप।।
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गुरु की अनुकम्पा अदृश, करो गुरू का मान।
आगे बढ़ने के लिए, सीख गुरू से ज्ञान।।
- अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-07-2019) को "गुरुसत्ता को याद" (चर्चा अंक- 3399) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गुरु पूर्णिमा की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
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सादर
वाह! गुरु की महिमा का प्रभावी बखान.
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सर| आप को गुरुपूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएँ
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सादर
वाह वाह वाह शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर |आप को गुरुपूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएँ
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सादर
शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना |
हटाएंआप को गुरुपूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएँ
सादर
शुक्रिया सर |आप को गुरुपूर्णिमा की अनंत शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर
वाह!!सखी ,बहुत खूबसूरत गुरू महिमा गान !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रिय शुभा दी जी
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुंदर सृजन गुरु की महत्ता पर बहुत श्रृदा युक्त काव्य ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना ।
शुक्रिया प्रिय कुसुम दी जी
हटाएंसादर स्नेह
वाह बहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय रितु दी जी
हटाएंसादर स्नेह
प्रिय अनीता -- बहुत ही सार्थक दोहे गुरुदेव के लिए , जिनमें तुम्हारी प्रखर प्रतिभा बखूबी नजर आ रही है | सस्नेह शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय दी जी
हटाएंसादर