महकते जीवन में लगा कम,
धुँए में उड़ा ज़िंदगी,
ज़ालिम धुँए में गया रम |
हर दम पर भरता था दम,
जब नहीं था जीवन में कोई ग़म,
जरा से कंकड़ क्या मिले,
बन्दे के लड़खड़ा गये क़दम |
फ़िक्र कहाँ ज़िंदगी में नशे के मारों को,
निगाहों में बस फ़तह ही फ़तह,
उड़ा देते है जीवन धुएँ में,
बेफ़िक्री फैली हो ज़हन में जिस के हर तरह |
जब नहीं था जीवन में कोई ग़म,
जरा से कंकड़ क्या मिले,
बन्दे के लड़खड़ा गये क़दम |
फ़िक्र कहाँ ज़िंदगी में नशे के मारों को,
निगाहों में बस फ़तह ही फ़तह,
उड़ा देते है जीवन धुएँ में,
बेफ़िक्री फैली हो ज़हन में जिस के हर तरह |
क्षण-क्षण जला सिगार में तन को,
प्रति क्षण किया खोखला,
देख हड्डियों के अपने ही पिंजर को ,
देख हड्डियों के अपने ही पिंजर को ,
जीवन के अंतिम पड़ाव में गया बौखला |
- अनीता सैनी
- अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-07-2019) को "कॉन्वेंट का सच" (चर्चा अंक- 3409)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
क्षण-क्षण जला सिगार में तन को,
जवाब देंहटाएंप्रति क्षण किया खोखला,
देख हड्डियों के अपने ही पिंजर को ,
जीवन के अंतिम पड़ाव में गया बौखला... बहुत सुंदर और सार्थक रचना सखी
सस्नेह आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
अनिता दी, यह सभी को पता हैं कि सिगरेट हानिकारक हैं फिर भी लोग नहीं सुधरते। आपने इसकी भयावहता बहुत ही खूबसूरती से बयान की हैं।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार ज्योति बहन
हटाएंसादर
वाह!! प्रिय अनीता, सिगरेट जैसे दुर्लभ विषय पर बहुत सार्थक रचना। पहले मजा फिर स इस व्यसन का यही दुःखद अंजाम हूँ। सार्थक रचना के लिंक बधाई । 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय रेणु दी जी
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
तहे दिल से आभार प्रिय श्वेता दी जी
हटाएंसादर स्नेह
बहुत ही जबरदस्त प्रस्तुति अनिता जी आपने भावात्मक ढंग से सिगरेट के दुष्परिणामों को इंगित किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
तहे दिल से आभार आदरणीय दी जी
हटाएंसादर स्नेह
क्षण-क्षण जला सिगार में तन को,
जवाब देंहटाएंप्रति क्षण किया खोखला,
देख हड्डियों के अपने ही पिंजर को ,
जीवन के अंतिम पड़ाव में गया बौखला
वाह अनीता जी आपका भी जबाब नहीं.....
अपनी अलग और अनूठी शैली में इस विषय पर भी दमदार अभिव्यक्ति...
वाह!!!
सस्नेह आभार आदरणीय दी जी
हटाएंसादर स्नेह