ज़ुल्म ! पवन के अल्हड़ झोंकों का,
कि घटाएँ फिर ज़हन में उमड़ आयीं,
चित्त ने दी चिंगारी,
एहसास फिर स्वप्न में सुलग आये,
भरी बरसात में जला,
हाँ यह वही सावन है |
न धुँआ उठा, न धधका तन,
सपनों का वही जौहर है, जो बेशुमार जला,
बेलोश बेचैनियों में सिमटा बेसुध,
प्रति पल अलाव-सा जला,
हाँ यह वही सावन है |
कुछ बुझा-सा,
कुछ ना-उम्मीदी में जला,
डगमगा रहे क़दम,
फिर ख़ामोशी से चला,
जीवन के उस पड़ाव पर,
सिसकियों ने सहलाया,
हाँ ता-उम्र जला यह वही सावन है |
पलकों को भिगो ,
मुस्कुराहट के चिलमन में उलझ ,
दिल के चमन को बंजर कर गया ,
हसरतों का खिला फूल,
शोहरत का दे लिबास,
भरी महफ़िल में,
अरमानों संग जला,
हाँ यह वही सावन है |
बेरहम भाग्य को भी न आया रहम,
रूह-सा रूह को तरसता मन,
एक अरसे तक सुलगा,
फिर भी न हुआ कम,
पेड़ की टहनियों से छन-छनकर जला,
हाँ यह वही सावन है |
- अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-07-2019) को "गर्म चाय का प्याला आया" (चर्चा अंक- 3412) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
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सादर
वाह ! धारा के विपरीत सावन को नये बिम्बों और प्रतीकों में ऐसे चित्रित किया कि पाठक अचंभित रह जाय. सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सुन्दर समीक्षा के लिए
हटाएंसादर
अनिता दी,सावन को एक नए रूप में ही प्रस्तुत किया आपने। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय ज्योति बहन
हटाएंसादर स्नेह
वाह!!बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रिय पम्मी जी
हटाएंसादर स्नेह
बहुत खूब बहुत शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रिय कुसुम दी जी
हटाएंसादर स्नेह
सावन का यह रूप...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन
वाह!!!
शुक्रिया प्रिय सुधा दी जी
हटाएंसादर स्नेह
बेहतरीन रचना का सृजन हुआ है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय
हटाएंप्रणाम
सादर
न धुँआ उठा, न धधका तन,
जवाब देंहटाएंसपनों का वही जौहर है, जो बेशुमार जला,
बेचैनियों में सिमटा बेसुध,
पल-पल अलाव-सा जला,
हाँ यह वही सावन है |
भावनाओं के अनगिन रंग समेटे भावपूर्ण रचना प्रिय अनिता | सस्नेह --
शुक्रिया प्रिय रेणु दी
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