ज़िंदगी की किताब
वक़्त ने लिखे अल्फ़ाज़,
ज़िंदगी की नज़्म बन गयी,
सीने में दबा, साँसों ने लिया संभाल,
अनुभवों की किताब बन गयी |
होठों की मुस्कान,
न भीगे नम आँखों से,ख़ुशी का आवरण गढ़ गयी,
शब्दों को सींचा स्नेह से,
दर्द में डूबी मोहब्बत,अल्फ़ाज़ में सिमट गयी |
गुज़रे वक़्त को,
आँखों में किया बंद, लफ़्ज़ ज़िंदगी पढ़ती गयी ,
मिली मंज़िल मनचाही,
हिम्मत साँसों में ढलती गयी |
संघर्ष के पन्नों पर,
अमिट उम्मीद की मसी फैल गयी ,
सुख खिला संतोष में,
इंसानियत की नींव रखती गयी |
न हृदय को पड़ी, मैं की मार,
न अंहकार से हुई तक़रार,
मिली चंद साँसें उसी को जीवन वार,
ज़िंदगी अल्फ़ाज़ में सिमटी किताब बन गयी |
- अनीता सैनी
बहुत ख़ूबसूरत है ज़िन्दगी की किताब जो पढ़ना का अंदाज़ सीख गया उसीको ज़िन्दगी का रसमय और संगीतमय होने का एहसास होता है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.
तहे दिल से आभार आदरणीय
हटाएंसादर
वाह.... अत्यंत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार दी जी
हटाएंसादर स्नेह
वाह!!सखी ,अद्भुत !!
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर स्नेह
वाह क्या खूब लिखा है |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सस्नेह आभार
हटाएंसादर
सबसे बड़ा ज्ञान दे जाती हैं ये जिंदगी की किताब ,बस उसे समझना आना चाहिए ,बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय दी जी
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-07-2019) को "चिट्ठों की किताब" (चर्चा अंक- 3390) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु
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सादर
गहरे भाव समेटे बहुत सुंदर सृजन जिंदगी की किताब ¡¡
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय कुसुम दी जी
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सादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता दी जी,हमक़दम में मेरी रचना को स्थान देने हेतु
हटाएंसादर
बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंन हृदय को पड़ी, मैं की मार,
न अंहकार से हुई तक़रार,
मिली चंद साँसें उसी को जीवन वार,
ज़िंदगी किताब बनती गयी |
सस्नेह आभार प्रिय दी जी
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सादर
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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सादर
संघर्ष के पन्नों पर,
जवाब देंहटाएंअमिट उम्मीद की मसी फैल गयी ,
सुख खिला संतोष में,
इंसानियत की नींव रखती गयी |बेहतरीन रचना सखी 👌👌
सस्नेह आभार प्रिय सखी अनुराधा जी
हटाएंसादर
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय, उत्साहवर्धन हेतु
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सादर
वक़्त ने लिखे अल्फ़ाज़,
जवाब देंहटाएंज़िंदगी की नज़्म बन गयी,
सीने में दबा, साँसों ने लिया संभाल,
अनुभवों की किताब बन गयी
उत्कृष्ट सृजनात्मकता... बेहद खूबसूरत 👌👌
सस्नेह आभार प्रिय दी जी
हटाएंसादर स्नेह
सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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सादर
बहुत अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंपढ़कर ऐसा लगा कि
आज तक मेरी पढ़ी हुई आपकी रचनाओं में ..
यह सर्वोत्तम है.
साझा करने हेतु अनेकानेक आभार.
आप का ब्लॉग पर स्वागत है आदरणीय, बहुत अच्छा लगा आप ने मार्गदर्शन किया,तहे दिल से आभार आप का
हटाएंआप का आशीर्वाद हमेशा बना रहे
प्रणाम
सादर