सजी घटायें सावन की, मेहंदी रचे हाथ |
मुस्काय प्रिय राधिका ,कान्हा जी के साथ ||
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कोयल की मधुर रागिनी, है सावन की रात |
झर रहे नयन राधिका, क्या है हिय में बात ||
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सावन की आई घटा, मेहंदी रचते हाथ |
झूला झूले राधिका, उन्हे झुलायें नाथ ||
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घर-आँगन में आज तो, उतरी है बरसात |
पात-पात पुलकित हुआ, बरसी है सौगात ||
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पुलकित होती धरा है, खिली प्रीत की धूप |
पत्तों के श्रृंगार ने, लिया हिना का रुप ||
- अनीता सैनी
सावन की आई घटा, मेहंदी रचते हाथ |
जवाब देंहटाएंझूला झूले राधिका, उन्हे झुलायें नाथ ||
बहुत ही प्यारे दोहे प्रिय अनीता ! जिनकी जितनी प्रशंसा करूँ, उतनी कम है | इन पर तुम्हारा विशेषाधिकार है | ये हुनर और निखरे मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ है |
शुक्रिया दी
हटाएंसादर
सावन, तीज और मेंहदी का साथ झूलों के साथ ... जय भोले का गान ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर दोहे हैं ...
शुक्रिया सर
हटाएंसादर