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शुक्रवार, अगस्त 2

मेहंदी रचे हाथ



सजी घटायें सावन की, मेहंदी रचे  हाथ |
 मुस्काय प्रिय राधिका ,कान्हा जी  के साथ ||
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 कोयल की मधुर रागिनी, है सावन की रात |
झर रहे नयन राधिका, क्या है  हिय में  बात ||
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सावन की आई घटा, मेहंदी  रचते  हाथ |
 झूला  झूले  राधिका,  उन्हे झुलायें नाथ ||
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घर-आँगन में आज तो, उतरी  है  बरसात |
पात-पात पुलकित हुआ, बरसी है  सौगात ||
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पुलकित होती धरा है, खिली प्रीत की धूप |
पत्तों के श्रृंगार ने, लिया हिना का रुप ||

- अनीता सैनी 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सावन की आई घटा, मेहंदी रचते हाथ |
    झूला झूले राधिका, उन्हे झुलायें नाथ ||
    बहुत ही प्यारे दोहे प्रिय अनीता ! जिनकी जितनी प्रशंसा करूँ, उतनी कम है | इन पर तुम्हारा विशेषाधिकार है | ये हुनर और निखरे मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ है |

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  2. सावन, तीज और मेंहदी का साथ झूलों के साथ ... जय भोले का गान ...
    बहुत ही सुन्दर दोहे हैं ...

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