कुछ पल की ख़ुशी मुकम्मलकर,
क़ायनात ने बरसाया,
ख़ुशी का कोहरा ,
क़ायनात ने बरसाया,
ख़ुशी का कोहरा ,
वही कोहरा सुकून का सैलाब ,
लेकर उतरता है पलकों पर और ,
चित्त को कर देता है तृप्त |
कुछ पल बैठ पहलू में मेरे,
मुठ्ठी में थमाया मोहब्बत का मोती,
और वहाँ से जाने को आतुर नज़र आयी,
लेकर उतरता है पलकों पर और ,
चित्त को कर देता है तृप्त |
कुछ पल बैठ पहलू में मेरे,
मुठ्ठी में थमाया मोहब्बत का मोती,
और वहाँ से जाने को आतुर नज़र आयी,
थामना चाहती हूँ हाथ उसका,
फ़रियाद करती हूँ न जाने की,
वक़्त पर न आने का वास्ता देते हुए,
जतन करती हूँ आग़ोश में भरने का ,
ग़मों की पोटली पटक सामने,
ज़ख़्म उसे दिखाती हूँ |
फ़रियाद करती हूँ न जाने की,
वक़्त पर न आने का वास्ता देते हुए,
जतन करती हूँ आग़ोश में भरने का ,
ग़मों की पोटली पटक सामने,
ज़ख़्म उसे दिखाती हूँ |
मुस्कुराते हुए कहती है वह !
मैं ख़ुशी हूँ ,
मुझे ख़ुशी ही रहने दो,
मुझे ख़ुशी ही रहने दो,
पलकों पर रहती हूँ ,
पलकों पर रहने दो,
बहती हूँ हृदय में,
आँख का पानी बन बहने दो,
क्यों करती हो ?
संताप बिछड़ने का,
संताप बिछड़ने का,
मुसाफ़िर हूँ,
मुसाफ़िर ही रहने दो |
वो लम्हात जब ठहरी थी पलकों पर,
उन्हीं एहसासात को सीने से लगा ,
मुस्कुराहट अधरों पर लिये,
तुम यह दौर दामन में सजा लेना |
तुम यह दौर दामन में सजा लेना |
पुकारेंगे तेरे कर्म मुझे ,
कृतित्व की महक से महकेगी फ़ज़ा,
कृतित्व की महक से महकेगी फ़ज़ा,
दौड़ी आऊँगी मैं ज़िंदगी में तेरी ,
हृदय में समा फिर उतर जाऊँगी,
पलकों पर तेरी |
मनुहार से भी न मानी ,
जोश उफ़न आया उसका, जाने की ज़िद ठानी,
आँखों के अनमोल मोती न रोक पाये राह उसकी,
तरस उसको आया वक़्त को मरहम बताया,
कहा आँसुओं में न बहाना जीवन,
बह जायेगी ज़िंदगी तेरी,
ठंडा पड़ जायेगा साँसों का सैलाब ,
क्षीण हो जायेगी मन की शक्ति,
कर्म का पहिया न करेगा पुकार ,
अजनबी की तरह गुज़र जाऊँगी,
उस वक़्त ,वक़्त के उस पार |
हिदायत उस की, मेरी हसरत हार गयी ,
ख़ुशी के कसैलेपन का कारगर निवारण,
हाथ में न थमाया , साँसों में घोल गयी |
- अनीता सैनी
हृदय में समा फिर उतर जाऊँगी,
पलकों पर तेरी |
मनुहार से भी न मानी ,
जोश उफ़न आया उसका, जाने की ज़िद ठानी,
आँखों के अनमोल मोती न रोक पाये राह उसकी,
तरस उसको आया वक़्त को मरहम बताया,
कहा आँसुओं में न बहाना जीवन,
बह जायेगी ज़िंदगी तेरी,
ठंडा पड़ जायेगा साँसों का सैलाब ,
क्षीण हो जायेगी मन की शक्ति,
कर्म का पहिया न करेगा पुकार ,
अजनबी की तरह गुज़र जाऊँगी,
उस वक़्त ,वक़्त के उस पार |
हिदायत उस की, मेरी हसरत हार गयी ,
ख़ुशी के कसैलेपन का कारगर निवारण,
हाथ में न थमाया , साँसों में घोल गयी |
- अनीता सैनी
ख़ुशी एक सुन्दर एहसास है जो हमारे दिल को मख़मली सुकून देता है. ख़ुशी के जीवनभर अनवरत यात्रा चलती रहती है. किसके हिस्से में कितनी ख़ुशी होगी इसका पैमाना अनिश्चित.
जवाब देंहटाएंरचना में ख़ुशी के चरित्र पर गहन चिंतन हुआ है. ख़ुशी का कोई तय फार्मूला नहीं है. जो इसकी तलाश में रहता है उसे ख़ुशी अपनी छत्रछाया में ज़रूर लेती है.
गंभीर विषय को सरलीकृत करने का प्रयास प्रभावशाली है.
सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन समीक्षा के लिए
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-08-2019) को "पढ़े-लिखे मजबूर" (चर्चा अंक- 3427) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर
हटाएंखुशी पर बहुत सुंदर विश्लेषण दिया आपने रचना के माध्यम से। खुशी एक छलावे सी आती भरमा कर चली जाती ,न आंसू रोक पाते उसे ना कोई दीवार। अ
जवाब देंहटाएंरचना ।
खुशी का अदृश्य आभामंडल
छुपा कहीं तेरे मेरे अंदर
बस मन की आंखों से पी ले
अमृत का कतरा कतरा
और भर ले मन गागर मे
ये वो नियामत है जो
अंदर और अंदर खोजनी है
पा गये तो बस आनंद का
सागर ही सागर है।
तहे दिल से आभार प्रिय कुसुम दी जी आप की समीक्षा हमेशा हृदय में घर कर जाती है इस अपार स्नेह के लिए |
हटाएंआप को प्रणाम
सादर
पुकारेंगे तेरे कर्म मुझे ,
जवाब देंहटाएंकृतित्व की महक से महकेगी फ़ज़ा,
दौड़ी आऊँगी मैं ज़िंदगी में तेरी ,
हृदय में समा फिर उतर जाऊँगी,
पलकों पर तेरी |बेहद खूबसूरत रचना सखी
सस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर