प्रति पल आँखें चुराती हूँ,
संयोग देखो ! उसका,
सामने आ ही जाती है,
कभी पायदान के नीचे,
जूतों की मिट्टी में,
कभी उन जूतों में जो पिछले दो महीने से,
किसी के पैरों का इंतज़ार कर रहे हैं,
उस वर्दी में जो बेड के किसी कोने में,
दबी अपनी घुटन जता रही है,
उसके लाखों सवालों में,
जो मेरी नाक़ामयाबी पर,
कभी कंठ से बाहर ही नहीं निकले,
कभी-कभी छलक जाती है वह,
बच्चों में,उनके मासूम सवालों में,
उनकी उस ख़ुशी में जो,
वे संकोचवश छिपा लेते हैं,
फिर कभी मुस्कुराने के वादे के साथ,
कभी झलकती है एहसास के गुँचे में,
जो थमा गये थे वह मेरे हाथों में,
आज फिर मिली मुझे झाड़ू के नीचे,
चीटियों के एक झुण्ड में,
जो एक लय में चल रहीं थीं ,
न सवाल न जवाब बस,
मूक -पथिक-सी चल रही थी,
कविता मुझे नहीं,
मैं कविता को जीती हूँ,
कविता स्वयं की पीड़ा नहीं,
मानव की पर-पीड़ा है,
मानव की पर-पीड़ा है,
स्वयं की पीड़ा को परास्तकर,
पर-पीड़ा को हृदय पटल पर रखना,
मर्म का वह मोहक मक़ाम है,
जो सभी के भाग्य में नहीं होता,
जो सभी के भाग्य में नहीं होता,
चरमराती है अंतरचेतना में वह,
जब एक मज़दूर के हाथ,
छोड़ देते हैं उस का साथ,
पटक देता है वह पत्थरों से भरा तसला ,
पटक देता है वह पत्थरों से भरा तसला ,
झुँझला उठता है देख भाग्यविधाता का ठेला,
तब जी उठती हूँ मैं,
एक और कविता उसी के केनवास पर,
उसी के असीम दर्द के साथ |
# अनीता सैनी
तब जी उठती हूँ मैं,
एक और कविता उसी के केनवास पर,
उसी के असीम दर्द के साथ |
# अनीता सैनी
बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-09-2019) को "अपना पुण्य-प्रदेश" (चर्चा अंक- 3446) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर मुझे स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
बहुत खूब..., लाजवाब.. अत्यंत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंप्रिय दी आप का असीम स्नेह यूँ ही बना रहे |अपने सानिध्य से हमेशा नवाजते रहे
हटाएंतहे दिल से आभार आप का
सादर
वाह बेहतरीन, मर्मस्पर्शी रचना 👏 👏 👏
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार दी जी उत्साहवर्धन और सुन्दर समीक्षा के लिये
हटाएंसादर
पता नहीं क्या लिखुँ मेरे पास शब्द नहीं है पर इतना कहना चाहता हुँ तुम यों ही लिखते रहो मैं तुम्हारे साथ हुँ
जवाब देंहटाएंWe must set foot on your back in your life. You will always be grateful for your deep affection.
हटाएंMiss u dear love u and take care.
जो कविता को जीता है वही सम्पूर्ण रचनाकार है प्रिय अनीता | एक बार फिर से अत्यंत भावपूर्ण काव्य चित्र के रूप में मार्मिक भावों को समेटे सुंदर रचना | सस्नेह शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु दी जी आप की समीक्षा ब्लॉग को चार चाँद लगा जाती है किन शब्दों से नवाजु आप को शब्द नहीं है
हटाएंअपना स्नेह यूँ ही बनाये रखना
सादर
मानव की पीड़ा को जीवा ही असली रचना है ... इसी को कविता कहते हैं ...
जवाब देंहटाएंगहरा एहसास समेटे लाजवाब रचना है ...
आदरणीय दिगंबर नासवा जी तहे दिल से आभार आप का हमेशा से ही आप की समीक्षा मेरी रचना को और प्रभावी बनाती है|अपने सानिध्य से यूँ ही नवाज़ते रहे
हटाएंप्रणाम
सादर
बहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंसच रचनाकार लिखे या न लिखें उस के घट में भाव कौन से दृश्य से उमड़ पड़े कोई नहीं जानता, कवि की प्ररेणा एक तिनका भी हो सकता है और पहाड़ भी बस कौन सा पल उसके भावों को उद्वेलित कर दे ,बस वही पल सृजन का पल होता है ।
संवेदनाएं जब मुखरित हो कागज पर उतरती है एक यथार्थ वाली कवि का जन्म होता है बार-बार।
सुंदर सृजन।
वाह ! दी दिल ख़ुश हो गया और लेखन सार्थक हुआ आपकी आत्मीयताभरी टिप्पणी अपनी कविता की प्रशंसा में पढ़कर |
हटाएंआपका स्नेह मुझे और अच्छा लिखने को प्रेरित करता है. आपने तो कविता की नई परिभाषा ही बता दी है दी |
वाली को वादी (यथार्थवादी)पढ़ें।
जवाब देंहटाएंजरुर दी जी
हटाएंनिःशब्द हूँ...
जवाब देंहटाएंपर पीड़ा जो अनुभव ना कर पाए वह तो इंसान ही नहीं हो सकता...
बेमिसाल भावाभिव्यक्ति
सादर नमन दी 🙏
हटाएंकविता मानव मन की वह अभिव्यक्ति है जो हमारे भीतर पनप रहे अंतर्द्वंद्वों और ऊहापोहों से जूझकर शब्द-विस्फोट के रूप में बाहर आती है.
आपका स्नेह यूँ ही बना रहे.
प्रणाम
सादर.
पर-पीड़ा को हृदय पटल पर रखना,
जवाब देंहटाएंमर्म का वह मोहक मक़ाम है,
जो सभी के भाग्य में नहीं होता, ....बहुत सुंदर।
सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धन समीक्षा के लिये
हटाएंप्रणाम
सादर
जब एक मज़दूर के हाथ,
जवाब देंहटाएंछोड़ देते हैं उस का साथ,
पटक देता है वह पत्थरों से भरा तसला ,
झुँझला उठता है देख भाग्यविधता का ठेला,
और कवि जीता है उसके हर एक दर्द को.......पर-पीड़ा से कराहता कवि मन गुनागुनाता है अपने ही भावों को...
सच कहा कविता को जीता है कवि..।बहुत ही लाजवाब सृजन।
हटाएंसादर नमन दी 🙏)
आप जैसी महान हस्तियों के बीच मैं भी ब्लॉगिंग में अपना मक़ाम हासिल करने के सफ़र पर हूँ |
आपका आशीर्वाद बना रहे |
सादर
प्रणाम |
वाह!कविता को जीना अर्थात संवेदना का नाज़ुक़ लिबास ओढ़कर संसार में सामाजिक मूल्यों और प्रकृति के असीम सौंदर्य के बीच एक सार्थक वैचारिक भावभूमि का निर्माण करना है जो आनेवाली पीढ़ियों में विचार की शाश्वत ज्योति जलाये रखेगी.
जवाब देंहटाएंआपकी कवि आज के स्वनामधन्य कवि अशोक बाजपेयी के सृजन की शैली का स्मरण कराती है.
लिखते रहिए.
बधाई एवं शुभकामनाएँ.
कृपया 'आपकी कवि'को 'आपकी कविता'पढ़े.सधन्यवाद .
हटाएंसादर प्रणाम सर|
हटाएंआपकी टिप्पणी मेरे लेखन के ऊपर बहुत बड़ी जवाबदेही सौंपती है |
देश के महान कवि अशोक बाजपेयी जी के काव्य-सृजन की झलक यदि आपको मेरी कविता में नज़र
आयी है तो मेरे लिये सौभाग्य की बात है और इस बात का एहसास भी है कि आपकी टिप्पणी में सार्थकता है|
सादर
प्रणाम |
भावपूर्ण चित्रण
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया
हटाएंसादर
मर्म का वह मोहक मक़ाम है,
जवाब देंहटाएंजो सभी के भाग्य में नहीं होता.....बहुत सुंदर :(
बहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंसादर
कविता को जीना,यही लेखन की सार्थकता
जवाब देंहटाएंहै ,कविता अनुभूतियों से जन्म लेती है।
बिना भाव के कविता का सृजन संभव नहीं।
जो हृदय से जन्मती है,वह हृदय तक पहुंचती है। बेहतरीन रचना सखी,सादर
सस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
मन को छूती कविता
जवाब देंहटाएंबधाई
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
बहुत ही ऊँचाई को छूती हुई ये रचना अनिता बिटिया
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंप्रणाम
सादर