मन में उड़ती विचारों की धूल,
करती है ख़्वाहिशों को स्थूल ,
तत्परता के साथ समझौता करती है ज़िंदगी |
बटेर-सी पुकारती आत्मा की आवाज़,
खेजड़ी की छाँव में बिठाकर ढाढ़स बँधाने का,
ढकोसला ख़ूबसूरती से सजाती है ज़िंदगी |
वक़्त की झिल्ली पर फिसलती ख़्वाहिशें देख,
झिलमिलाहट की चादर ओढ़ा देती है ज़िंदगी |
सपनों के थान में सुकून से लिपटकर ,
हृदय में फिर फुसफुसाती है ज़िंदगी |
दृश्य-अदृश्य का खेल-खेलती,
जुगनू-सी चमकती है ज़िंदगी |
हवा में फैला सुकूँ का आँचल,
मन के एक कोने में महकने लगती है ज़िंदगी |
बटोरने लगती है बेसब्री से स्वप्न ,
मन की सुराही में,
हाथों से छूट फिर बखर जाती है ज़िंदगी |
हाथों से छूट फिर बखर जाती है ज़िंदगी |
कुछ उलझें कुछ बिन गूँथें ,
धड़कनों से रिसते ख़्वाब ,
वक़्त की दहलीज़ पर बैठ ,
अनचाहे आकार में ढलती है ज़िंदगी |
वक़्त की दहलीज़ पर बैठ ,
अनचाहे आकार में ढलती है ज़िंदगी |
रुठी नज़्म ज़िंदगी की,
बारिश की बौछारों से फिर महकाने लगती है ज़िंदगी |
कागज़ की कश्ती पर सवार कुछ ख़्वाबों को ,
अपनत्व के भाव से फिर पुकारने लगती है ज़िंदगी |
ऊँघते चित्त पर वक़्त का मरहम,
मेहंदी के लेप-सा सुकूँ पहुँचाती है ज़िंदगी |
विचारों से निकली उजली धूप,
रंग प्रीत का सपनों में भर फिर मुस्कुराने लगती है ज़िंदगी |
पदचिह्नों को गहरा करने का पाठ,
ज़िंदगी को बख़ूबी पढ़ाती है ज़िंदगी |
-अनीता सैनी
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 03 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी जी मुझे स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
कश्मकश होती ही है ज़िन्दगी को नये अर्थ प्रदान करने के लिये. ज़िन्दगी का अंतर्द्वंद्व एक अनवरत प्रक्रिया है जिसमें कभी ख़ूबसूरत रंग नज़र आते हैं तो कभी धूमिल उदासियों के रंगहीन साये.
जवाब देंहटाएंपाठक को ऊँची-नीची घाटियों की सैर कराती अभिव्यक्ति.
सुन्दर रचना.
सुन्दर समीक्षा के लिए तहे दिल से आभार सर
हटाएंसादर
दृश्य-अदृश्य का खेल-खेलती,
जवाब देंहटाएंजुगनू-सी चमकती है ज़िंदगी |
हवा में फैला सुकूँ का आँचल,
मन के एक कोने को महकाने लगती है ज़िंदगी... बहुत सुंदर रचना सखी 👌👌
शुक्रिया दी
हटाएंसादर
रुठी नज़्म ज़िंदगी की,
जवाब देंहटाएंबारिश की बौछारों से फिर महकाने लगती है ज़िंदगी |
कागज़ की कश्ती पर सवार कुछ ख़्वाबों को ,
अपनत्व के भाव से फिर पुकारने को कहती है ज़िंदगी |
बहुत खूब प्रिय अनिता , जिन्दगी की कशमकश को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी है तुमने | सस्नेह शुभकामनायें इस भावपूर्ण लेखन के लिए |
शुक्रिया दी
हटाएंसादर
अत्यंत मनमोहक प्यारा चित्र जिसने संलग्न हो रचना को और भी मनभावन बना दिया है |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी
हटाएंसादर
कागज़ की कश्ती पर सवार कुछ ख़्वाबों को ,
जवाब देंहटाएंअपनत्व के भाव से फिर पुकारने लगती है ज़िंदगी |
- सुन्दर व्यंजना प्रस्तुत की है.
तहे दिल से आभार आदरणीया
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-08-2019) को "नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक- 3418) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार सर चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना प्रिय अनु..ज़िंदगी कश्मकश में उलझी भावनाओं का सफ़र है।
जवाब देंहटाएंशब्दों का नवीन प्रयोग ध्यानाकर्षित कर रहा ..लिखते रहो क़दम दर क़दम बढ़ते रहो।
तस्वीर बहुत प्यारी है।
शुक्रिया दी आप का
हटाएंसादर
"वक़्त की झिल्ली पर फिसलती ख़्वाहिशें देख,
जवाब देंहटाएंझिलमिलाहट की चादर ओढ़ा देती है ज़िंदगी |"
अतुलनीय बिम्ब अनीता जी ... जीवन की सच्चाई और कल्पनाओं के बीच गति से झूला झुलाती रचना ...
तहे दिल से आभार आदरणीय सुन्दर समीक्षा के लिये
हटाएंसादर
एक फौजी की मासुम सी जीवन संगिनी जिंदगी को कितनी संजीदगी से परिभाषित करती है ।
जवाब देंहटाएंकल्पनातीत ।
सांगोपांग।
सस्नेह आभार प्रिय कुसुम दी जी
हटाएंसादर
ज़िन्दगी की कशमकश को कमाल के शब्दों में बयान किया है ...
जवाब देंहटाएंसंजीदा रचना ...
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
अनीता जी बहुत सुन्दर रचना ////
जवाब देंहटाएंजी तहे दिल से आभार आप का अच्छा लगा आप ब्लॉग पर पधारे
हटाएंसादर स्नेह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 03 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार दी मेरी रचना को हमक़दम में स्थान देने हेतु।
हटाएंसादर
अच्छा लगा जान कर कि एक फौजी की संगिनी हैं आप। मंगलकामनाएं। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर प्रतिक्रिया से अत्यंत हर्ष हुआ।
हटाएंसादर प्रणाम
वाह! जिंदगी के सभी फलसफे अपनी नज़र से बयाँ करती अपने ही अंदाज की एक अद्भुत रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।