कर्नाटक, उतरी तमिलनाडु में बहती,
पश्चिमी घाट के पावन पर्वत ब्रह्मगिरी से उपजी,
दक्षिण पूर्व में प्रबल प्रवाह प्रेम का प्रवाहित कर,
बंगाल की खाड़ी में जा मिली |
कुछ दर्द वक़्त का यूँ निखरा,
साँसों पर आधिपत्य,तन के टुकड़े तीन मिले,
क्षीण हो रही शक्ति प्रवाह की,
अधर राह में छूटे प्राण,खाड़ी की राह ताकते मिले,
सिमसा, हिमावती, भवानी सहायक सफ़र में,
विमुख हो दक्षिण की गंगा से रुठी मिली |
प्रति पल तिरुचिरापल्ली बाट जोहता रहा राह में,
उमड़ा समर्पण हृदय में, नहीं नीर आँचल में मेरे,
डेल्टा के डाँवाडोल अस्तित्त्व पर,
आधिपत्य विनाशलीला का,
अन्नदाता का हृदय अब हारा,कावेरी को पुकारता मिला,
तीन पहर का खाना,वर्ष की तीन फ़सलों से नवाज़ा,
नसीब रूठा अब उनका,जर्जर काया है मेरी,
एक वर्ष की एक फ़सल में सिमटी मेहनत उनकी,
एक पहर की रोटी में बदली,
सीरत व सूरत और दिशा व दशा मेरी,
लिजलिजी विचारधारा के अधीन सिमटी मिली |
होगेनक्कल,भारचुक्की,बालमुरि जलप्रपात के पात्र सूखे,
झीलों की नगरी का जल भी रूठा,
आँचल फैलाये अपना अस्तित्त्व माँग रही मानव से,
चंद सिक्कों का दान समझ मानव दायित्व दामन का,
मैं दर्द दर-ब-दर ढ़ो रही,
बहे पवन-सा पानी आँचल में मेरे,
चित्त में यह भाव,हाथों में विश्वास की डोर थामे खड़ी,
जज़्बे पर तुम्हारे,नयनों में उम्मीद की छाया मिली |
- अनीता सैनी