बुधवार, सितंबर 4

लीज़ पर रखवा दिये रिश्ते सभी



ख़ामोशी से बातें करता था 
न जाने  क्यों लाचारी है  
कि पसीने की बूँद की तरह 
टपक ही जाती थी 
अंतरमन में उठता द्वंद्व 
ललाट पर सलवटें  
आँखों में बेलौस बेचैनी
 छोड़ ही जाता था 
दूध में कभी पानी की मात्रा
 कभी दूध की मात्रा घटती-बढ़ती रहती थी  
आज पैसे हाथ में थमाते हुए मैंने कहा 
"पानी तो अच्छा डाला करो भैया 
बच्चे बीमार पड़ जायेंगे "
और वह फूट पड़ा 
क्या करें ?
बहन 
जी !
 मन मोह गये शब्द उसके 
बनाया हृदय का राजदुलारा 
छाया आँखों पर प्रीत रंग 
विश्वास का रंग चढ़ा था गहरा 
तेज़ तपन से तपाया तन को  
बारी-बारी से जले
 न उसको ग़लत ठहराया 
मुकुट पहना उसे शान का 
ख़िताब उसे राजा का थमाया 
उसने भी एक दहाड़ से 
कलेजा सहलाया 
न चोरी करुँगा न करने दूँगा 
पहरेदार बन 
पहरेदारी  में 
इन्हीं शब्दों को दोहराया
आत्मीयता में सिमटा 
 तभी सो गया मन मेरा 
क्योंकि दहाड़ में 
रौब जो था ठहरा  
वर्षों बाद कोई आया था ऐसा 
न देगा चोट न करेगा ज़ख़्म गहरा 
ना-उम्मीद में सो रही साँसों को 
उम्मीद की लौ  का दिया सहारा 
पलट जायेगा पूँजीवाद का तख़्त 
आँखों को  ख़्वाब दिखाये सुनहरे 
इंतज़ार में बैठे हैं 
आज भी दर्द हमारे 
लूट रहा है हमें टैक्स की 
बेरहम टक्कर से 
या खोलेगा कोई राहत का पिटारा
लीज़ पर रखवा दिये  रिश्ते सभी 
होल्ड पर रखी है ज़िंदगी हमारी |

#अनीता सैनी 

30 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. एक-एक पंक्ति नुकीली की गई तीर की तरह है.. कई दिशाओं को इंगित करते हुए सफल लेखन
    सराहनीय संग्रहनीय रचना

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    1. आदरणीया दी जी-आप की समीक्षा रचना को और निखार गयी |तहे दिल से आभार आप का उत्साहवर्धन समीक्षा हेतु |
      प्रणाम
      सादर

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  3. वाह अनीता जी सुन्दर प्रस्तुति बेहतरीन सृजन

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  4. वाह!!प्रिय सखी ,बहुत ही उम्दा !!आपकी कलम की धार दार अभिव्यक्ति , तीखे तंज लिए ,सच मेंं अत्यंत सराहनीय 👌

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिये सखी सुन्दर समीक्षा हेतु
      प्रणाम
      सादर

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  5. वाह आज बिल्कुल अलग ।
    बहुत खूब।

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    1. प्रिये दी कुछ कहना चाहती थी सो माध्यम बनाया
      प्रणाम
      सादर

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  6. पहली बार पढ़ा है आपको। अच्छा लिखती हैं।

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  7. न चोरी करुँगा न करने दूँगा
    पहरेदार बन
    पहरेदारी में
    इन्हीं शब्दों को दोहराया
    आत्मीयता में सिमटा
    तभी सो गया मन मेरा
    क्योंकि दहाड़ में
    रौब जो था ठहरा
    बहुत सुन्दर... लाजवाब रचना....
    वाह!!!

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  8. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 5 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सहृदय आभार आदरणीय पाँच लिंकों में स्थान देने के लिए
      प्रणाम
      सादर

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  9. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-09-2019) को    "हैं दिखावे के लिए दैरो-हरम"   (चर्चा अंक- 3450)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।--शिक्षक दिवस कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
      प्रणाम
      सादर

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  10. बहुत सुंदर रचना सखी

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  11. भावपूर्ण रचना प्रिय अनिता। दूध वाले से संवाद में मार्मिक मानवीय भाव मन को छू जाते हैं।

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    1. सस्नेह आभार प्रिये रेणु दी दी
      सादर

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  12. वाह बहुत ही उम्दा।
    एक नया विषय चुनकर नया संसार रचा हैं।
    बेहतरीन

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