अनवरत तलाशती है वह,
वक़्त के झरोखे से मन की अथाह गहराई में,
मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |
जिस्म से सिमटी वक़्त की तह,
हर तह को पलट फिर सहेजती है वह,
किसी में छिप जाती है किसी को छिपा देती है,
तलाशती है मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |
तैतीस साल से उफ़न रहा साँसों का सैलाब,
उसी सैलाब में उतर लावण्यता में छिपी बैठी है,
अधमरी कुछ बाहर आने को लालायित तड़पती है,
मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |
कुरेदती है अपने ही नासूर को आह में टटोलती है,
थक हार फिर निराशा में सिमटती है तब अनायास ही,
रिसने लगती है धीरे-धीरे तलाश के पूर्ण कगार पर,
मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम ,
बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |
हृदय से करती है साझा समझौता,
एक नज़्म थमा देती है उसे,
एक नज़्म फिर लपेटती है,
वक़्त के उसी थान में वक़्त के लिये,
एक छिपाती है तुम्हारी तस्वीर के पीछे,
अपनी ही परछाई में समेट तुम्हारे लिये,
मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |
#अनीता सैनी
वाह बहुत सुंदर! भावों को एहसास में पिरोकर तुषार सा पन्ने पर उकेर दिया ।
जवाब देंहटाएंअनुपम सृजन।
शुक्रिया दी जी
हटाएंसादर
बहुत सही।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन।
शुक्रिया सर
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 19 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी जी
हटाएंसादर
वाह! जबरदस्त नज़्म। वाकई पढ़कर मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर
हटाएंसादर
वाह!बिम्बों और प्रतीकों में जिजीविषा को नवीनता की पैरहन में सजाती अनुपम रचना .
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनाएँ. लिखते रहिए.
शुक्रिया सर
हटाएंसादर
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर
हटाएंसादर
वाह बेहतरीन रचना ।अद्भूत।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर
वाह बेहद खूबसूरत प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर
वाह!!सखी ,क्या बात है !बहुत ही खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत नज्म....
जिस्म से सिमटी वक़्त की तह,
हर तह को पलट फिर सहेजती है वह,
किसी में छिप जाती है किसी को छिपा देती है ,
तलाशती है मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |
सस्नेह बहना
हटाएंसादर
कुरेदती है अपने ही नासूर को आह में टटोलती है,
जवाब देंहटाएंथक हार फिर निराशा में सिमटती है तब अनायास ही,
रिसने लगती है धीरे-धीरे तलाश के पूर्ण कगार पर,
लाजबाब ,सुंदर सृजन सखी
तहे दिल से आभार बहना सुंदर समीक्षा के लिए
हटाएंसादर
वाह, क्या बात है| बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसादर
दिल को छूती बहुत सुंदर रचना,अनिता दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर
हृदय से करती है साझा समझौता,
जवाब देंहटाएंएक नज़्म थमा देती है उसे,
एक नज़्म फिर लपेटती है,
वक़्त के उसी थान में वक़्त के लिये,
एक छिपाती है तुम्हारी तस्वीर के पीछे,
मन के कोमलतम एहसासों के उतार चढाव की भावपूर्ण रचना प्रिय अनीता | सस्नेह --
प्रिय रेणु दी आप की समीक्षा में आत्मीयता छलक पड़ती जो मुझे और अच्छा लिखने की प्रेणा प्रदान करता है, आप की सुन्दर समीक्षा के प्रति उतर में शब्द कम लगने लगते है कभी-कभी |इस अपार स्नेह और सहयोग के लिए तहे दिल से आभार आप का |
हटाएंसुप्रभात
सादर