मंगलवार, सितंबर 17

एक नज़्म तुम्हारी तस्वीर के पीछे



अनवरत तलाशती है वह,
वक़्त के झरोखे से मन की अथाह गहराई में,
मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
 बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |

जिस्म से सिमटी वक़्त की तह,
हर तह  को पलट फिर सहेजती है वह, 
किसी में छिप जाती है किसी को छिपा देती है,
तलाशती है मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
 बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |

तैतीस साल से उफ़न रहा साँसों का सैलाब, 
उसी सैलाब में उतर लावण्यता में छिपी बैठी है,
 अधमरी कुछ बाहर आने को लालायित तड़पती है,
 मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
 बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |

कुरेदती है  अपने ही नासूर को आह में टटोलती है, 
थक हार फिर निराशा में सिमटती है तब अनायास ही,
रिसने लगती है धीरे-धीरे तलाश के पूर्ण कगार पर, 
मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम ,
 बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |

हृदय से करती है साझा समझौता,
 एक नज़्म थमा देती है उसे,
एक नज़्म  फिर लपेटती  है,
 वक़्त के उसी थान में वक़्त के लिये,
एक छिपाती  है  तुम्हारी  तस्वीर के पीछे,
अपनी ही परछाई में समेट तुम्हारे  लिये,
 मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
 बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |

#अनीता सैनी 

28 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुंदर! भावों को एहसास में पिरोकर तुषार सा पन्ने पर उकेर दिया ।
    अनुपम सृजन।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 19 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. वाह! जबरदस्त नज़्म। वाकई पढ़कर मजा आ गया।

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  4. वाह!बिम्बों और प्रतीकों में जिजीविषा को नवीनता की पैरहन में सजाती अनुपम रचना .
    बधाई एवं शुभकामनाएँ. लिखते रहिए.

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  5. वाह बेहतरीन रचना ।अद्भूत।

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  6. वाह बेहद खूबसूरत प्रस्तुति सखी

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  7. वाह!!सखी ,क्या बात है !बहुत ही खूबसूरत सृजन ।

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  8. वाह!!!
    बेहद खूबसूरत नज्म....
    जिस्म से सिमटी वक़्त की तह,
    हर तह को पलट फिर सहेजती है वह,
    किसी में छिप जाती है किसी को छिपा देती है ,
    तलाशती है मोती-सी अनमोल,मन-सी मासूम,
    बेबाकपन में डूबी एक ख़ूबसूरत-सी नज़्म |

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  9. कुरेदती है अपने ही नासूर को आह में टटोलती है,
    थक हार फिर निराशा में सिमटती है तब अनायास ही,
    रिसने लगती है धीरे-धीरे तलाश के पूर्ण कगार पर,

    लाजबाब ,सुंदर सृजन सखी

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    1. तहे दिल से आभार बहना सुंदर समीक्षा के लिए
      सादर

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  10. वाह, क्या बात है| बहुत सुन्दर |

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  11. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना,अनिता दी।

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  12. हृदय से करती है साझा समझौता,
    एक नज़्म थमा देती है उसे,
    एक नज़्म फिर लपेटती है,
    वक़्त के उसी थान में वक़्त के लिये,
    एक छिपाती है तुम्हारी तस्वीर के पीछे,
    मन के कोमलतम एहसासों के उतार चढाव की भावपूर्ण रचना प्रिय अनीता | सस्नेह --

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    1. प्रिय रेणु दी आप की समीक्षा में आत्मीयता छलक पड़ती जो मुझे और अच्छा लिखने की प्रेणा प्रदान करता है, आप की सुन्दर समीक्षा के प्रति उतर में शब्द कम लगने लगते है कभी-कभी |इस अपार स्नेह और सहयोग के लिए तहे दिल से आभार आप का |
      सुप्रभात
      सादर

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