कर्नाटक, उतरी तमिलनाडु में बहती,
पश्चिमी घाट के पावन पर्वत ब्रह्मगिरी से उपजी,
दक्षिण पूर्व में प्रबल प्रवाह प्रेम का प्रवाहित कर,
बंगाल की खाड़ी में जा मिली |
कुछ दर्द वक़्त का यूँ निखरा,
साँसों पर आधिपत्य,तन के टुकड़े तीन मिले,
क्षीण हो रही शक्ति प्रवाह की,
अधर राह में छूटे प्राण,खाड़ी की राह ताकते मिले,
सिमसा, हिमावती, भवानी सहायक सफ़र में,
विमुख हो दक्षिण की गंगा से रुठी मिली |
प्रति पल तिरुचिरापल्ली बाट जोहता रहा राह में,
उमड़ा समर्पण हृदय में, नहीं नीर आँचल में मेरे,
डेल्टा के डाँवाडोल अस्तित्त्व पर,
आधिपत्य विनाशलीला का,
आधिपत्य विनाशलीला का,
अन्नदाता का हृदय अब हारा,कावेरी को पुकारता मिला,
तीन पहर का खाना,वर्ष की तीन फ़सलों से नवाज़ा,
नसीब रूठा अब उनका,जर्जर काया है मेरी,
एक वर्ष की एक फ़सल में सिमटी मेहनत उनकी,
एक पहर की रोटी में बदली,
सीरत व सूरत और दिशा व दशा मेरी,
लिजलिजी विचारधारा के अधीन सिमटी मिली |
सीरत व सूरत और दिशा व दशा मेरी,
लिजलिजी विचारधारा के अधीन सिमटी मिली |
होगेनक्कल,भारचुक्की,बालमुरि जलप्रपात के पात्र सूखे,
झीलों की नगरी का जल भी रूठा,
आँचल फैलाये अपना अस्तित्त्व माँग रही मानव से,
चंद सिक्कों का दान समझ मानव दायित्व दामन का,
मैं दर्द दर-ब-दर ढ़ो रही,
बहे पवन-सा पानी आँचल में मेरे,
बहे पवन-सा पानी आँचल में मेरे,
चित्त में यह भाव,हाथों में विश्वास की डोर थामे खड़ी,
जज़्बे पर तुम्हारे,नयनों में उम्मीद की छाया मिली |
- अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-09-2019) को "हिन्दी को बिसराया है" (चर्चा अंक- 3464) (चर्चा अंक- 3457) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर और सार्थक
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
हटाएंसादर
कावेरी का उद्गम स्थल देखा हैं मैनें यहाँ (कर्नाटक ) कावेरी का जल गंगा सम और कावेरी नदी को बहुत सम्मान से देखा जाता है । पूरी रचना पढ़ कर यूं लगा जैसे कावेरी के कलेवर को भूगोल के किसी पाठ में मानचित्र सहित पढ़ रही हूँ । अद्भुत और अद्वितीय सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभार दी मनमोहक सराहना और मेरा हौसला बढ़ाने के लिये|आपने ज़्यादा अच्छी तरह समझा है कावेरी नदी का दर्द .. .. आप का उसी परिवेश में रहना बड़े सौभाग्य की बात है |
हटाएंसादर
बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंआभार बहना कावेरी की पीड़ा को समझने एवं चर्चा में भाग लेने और उत्साहवर्धन हेतु |
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 20 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय पंच लिंकों के आनंद में मुझे स्थान देने के लिए |इस मंच पर आना मेरे लिये बड़े सौभाग्य की बात है
हटाएंसादर नमन
प्रिय अनीता, आज भारतभूमि की
जवाब देंहटाएंसदानीरा नदिया कावेरी पर तुम्हारी ये रचना पढ़कर सुखद आश्चर्य हुआ। कावेरी के इतिहास और भूगोल के साथ उसके पीड़ा भरे वर्तमान को बहुत ही सार्थकता से रचना में ढाल दिया तुमने । इस सुंदर निबंध काव्य के लिए मेरी शुभकामनायें ।क्योंकि विषय दुरूह था । आज इसी बहाने अपने ब्लॉग मीमांसा से एक रचना साझा करने का मन हो आया है जिसे यहाँ लिख रही हूँ ___
विशेष--- एक प्रार्थना हर उस नदी के लिए जो अपने क्षेत्र की गंगा है___
नदिया ! तू रहना जल से भरी -
सृष्टि को रखना हरी भरी |
झूमे हरियाले तरुवर तेरे तट -
तेरी ममता की रहे छाँव गहरी!!
देना मछली को घर नदिया ,
प्यासे ना रहे नभचर नदिया ;
अन्नपूर्णा बन - खेतों को -
अन्न - धन से देना भर नदिया !
प्रवाह सदा हों अमर तेरे -
बहना अविराम - न होना क्लांत ,
कल्याणकारी ,सृजनहारी तुम
रहना शांत -ना होना आक्रांत ,!!
पुण्य तट तू सरस , सलिल ,
जन कल्याणी अमृतधार -निर्मल ;
संस्कृतियों की पोषक तुम -
तू सोमरस -पावन गंगाजल !
बहुत सारा आभार रेणु दी जो आपने मेरी रचना का इतना मान बढ़ाया अपनी विस्तृत टिप्पणी के माध्यम से और साथ में एक बेहतरीन कविता जो नदी का हमारे जीवन अहम रॉल अदा करती है |
हटाएंतहेदिल से शुक्रिया दी इतना स्नेह वर्षाने के लिये |
बहुत ही आला कविता है.
जवाब देंहटाएंनदी चाहे कावेरी हो चाहे कोई और
आने वाले दिनों में यही हाल होना है.
लालची इन्सान कब इसकी सुध ले देखा जाए.
पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और
बहुत बहुत शुक्रिया सर आप का सुन्दर समीक्षा और उत्साहवर्धन हेतु |
हटाएंसादर
bahut khub sandar kavita ///////
जवाब देंहटाएंThanks sir
हटाएंकावेरी का दर्द बहुत सुंदर से उकेरा है ।
जवाब देंहटाएंया कहूं तो कमोबेष सभी नदियों का यही हाल है जिसके हम मानव स्वयं जिम्मेदार हैं काव्य के माध्यम से संचेतना जगाती अमूल्य रचना ।
प्रिय कुसुम दी जी आपकी टिप्पणियां सदा ही मेरा मनोबल बढ़ाती हैं और लेखन में निखार के लिये प्रेरित करती हैं|आपका स्नेह निरंतर मिलता रहे बस यही उम्मीद करती हूँ |अपना स्नेह सानिध्य हमेशा यूँ ही बनाये रखना
हटाएंसादर आभार
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर 🙏
हटाएंतीन पहर का खाना,वर्ष की तीन फ़सलों से नवाज़ा,
जवाब देंहटाएंनसीब रूठा अब उनका,जर्जर काया है मेरी,
एक वर्ष की एक फ़सल में सिमटी मेहनत उनकी,
एक पहर की रोटी में बदली,
सीरत व सूरत और दिशा व दशा मेरी,
लिजलिजी विचारधारा के अधीन सिमटी मिली |
मानव अपने दुष्कर्म का नतीजा स्वयं ही भुगत रहा है फिर भी नहीं चेत रहा ....
कावेरी का दर्द बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन
इस अविस्मरणीय सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं अनीता जी !
समय रहते आपकी सारगर्भित समीक्षा नहीं देख पायी आदरणीया दीदी माफ़ी चाहती हूँ.
हटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय का आदरणीया दीदी
सादर
आँचल फैलाये अपना अस्तित्त्व माँग रही मानव से,
जवाब देंहटाएंचंद सिक्कों का दान समझ मानव दायित्व दामन का,
मैं दर्द दर-ब-दर ढ़ो रही,
हर नदी के पीड़ा को व्यक्त करती सार्थक रचना,सादर
सादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी सुंदर मनोबल बढ़ाती समीक्षा हेतु.
हटाएंप्रिय कुसुम दी जी आपकी टिप्पणियां सदा ही मेरा मनोबल बढ़ाती हैं और लेखन में निखार के लिये प्रेरित करती हैं|आपका स्नेह निरंतर मिलता रहे बस यही उम्मीद करती हूँ |अपना स्नेह सानिध्य हमेशा यूँ ही बनाये रखना
जवाब देंहटाएंसादर आभार
बहुत खूब शानदार कविता
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार जी
हटाएंसादर
नदियों की व्यथा का मार्मिक चित्रण 🍁🍁🍁🍁🍁👌👌👌
जवाब देंहटाएंभारतीय संस्कृति के प्रेमी सदैव अपने इतिहास नदी वन मन्दिरों के प्रति संवेदनशील रहते है ।
अपनी पवित्र नदियों की व्यथा को पंक्तियो मे पिरोने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई अनीता जी