घटाओं के बदले तेवर,
वे तोहमत हवाओं पर लगाती थीं,
दुहरा आसमां झुका नहीं जज़्बातों से,
वक़्त ने वक़्त से धोखा किया,वक़्त सज्दे में नहीं था |
गिरोह बना रहे विश्व पटल पर,
बादलों को बाँटने का वो दस्तूर पुराना था,
संघर्ष के पड़ाव पर सूख जाती है विचारों की नमी,
लम्हात को पता था वो भविष्य के दरिया में गहरा उतरा था |
आहट से बेख़बर वो बरबस मुस्कुराता बहुत था,
कब किस राह से गुज़रेगा साँसों का कारवाँ,वो तारों से पूछता था,
बेख़बर था वो देख जमघट काफ़िरों का,
बुन रहा जाल ज़ालिमों के ज़लज़ले से,दोष उसी लम्हे का था |
हाहाकार हसरतों का सुना,बादलों के उसी दयार में,
इंसानों के जंगल में भटके विचारों को हाँक रहा समय था,
गूंगे-बहरों की भगदड़ में फ़ाक़े बिताकर मर गया वह,
ऐसा नहीं सज्दे में झुका था,जाने जलसा कब हुआ था ?
- अनीता सैनी
हाहाकार हसरतों का सुना,बादलों के उसी दयार में,
इंसानों के जंगल में भटके विचारों को हाँक रहा समय था,
गूंगे-बहरों की भगदड़ में फ़ाक़े बिताकर मर गया वह,
ऐसा नहीं सज्दे में झुका था,जाने जलसा कब हुआ था ?
- अनीता सैनी
Bahut khub ji
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंसंघर्ष के पड़ाव पर सूख जाती है विचारों की नमी,
जवाब देंहटाएंलम्हात को पता था वो भविष्य के दरिया में गहरा उतरा था।
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
जन-जन के अनुभवों को समेटे हुए
सादर आभार आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंसादर
गूंगे-बहरों की भगदड़ में फ़ाक़े बिताकर मर गया वह,
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं सज्दे में झुका था,जाने जलसा कब हुआ था ?
लाजवाब सृजन आपकी हर अभिव्यक्ति गहरी और समाज देश की ज्वलंत समस्याओं से जुड़ी होती है यथार्थ से ताना-बाना बुनती।
अप्रतिम।
सादर आभार आदरणीय दी आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला ।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
हटाएंसादर
गूंगे-बहरों की भगदड़ में फ़ाक़े बिताकर मर गया वह,
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं सज्दे में झुका था,जाने जलसा कब हुआ था ?
बड़ा बाजीव चित्रण हैं।
आभार
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाने हेतु।
हटाएंसादर
गिरोह बना रहे विश्व पटल पर,
जवाब देंहटाएंबादलों को बाँटने का वो दस्तूर पुराना था,
संघर्ष के पड़ाव पर सूख जाती है विचारों की नमी,
लम्हात को पता था वो भविष्य के दरिया में गहरा उतरा था |
बेहतरीन प्रस्तुति सखी
बहुत बहुत शुक्रिया बहना ।
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत शुक्रिया दी
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार श्वेता दी हमक़दम में मुझे स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
गूंगे-बहरों की भगदड़ में फ़ाक़े बिताकर मर गया वह,
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं सज्दे में झुका था,जाने जलसा कब हुआ था ?
लाजबाब.... सृजन सखी
बहुत बहुत आभार कामिनी दी सुन्दर समीक्षा के लिये |अपना सानिध्य यूँ ही बनाये रखे |
हटाएंसादर
संघर्ष के पड़ाव पर सूख जाती है विचारों की नमी,
जवाब देंहटाएंलम्हात को पता था वो भविष्य के दरिया में गहरा उतरा था |
वाह!!!!
बहुत लाजवाब ...
बहुत बहुत आभार सुधा दी मनोबल बढ़ाने के लिये, आप का साथ मेरे लेखन को निखारता है |
हटाएंस्नेह यूँ ही बनाये रखे
सादर
वाह! एक विशिष्ट रचना जो विश्वस्तरीय चिंतन और मंसूबों पर हमारा ध्यान केन्द्रित करती है यह कहते हुए कि हम भेड़चाल से इतर अपना दिलोदिमाग़ भी इस्तेमाल करें ताकि भावी पीढ़ियों को सुनहला भविष्य सौंपा जा सके.
जवाब देंहटाएंकविता के शानदार बिम्ब चमत्कृत करनेवाले हैं. भाव, शब्द-विन्यास और भाषा-सौंदर्य में नवीनता और मौलिकता की ताज़गी महसूस की जा सकती है.
बधाई एवं शुभकामनाएँ.
लिखते रहिए.
बहुत बहुत आभार आदरणीय सुंदर समीक्षा हेतु |आप की समीक्षा हमेशा मेरा मनोबल बढ़ती है और सुंदर समीक्षा से रचना का मान बढ़ाने के लिये आप का तहे दिल से आभार सादर
हटाएंबहुत ही लाजवाब! विराट विचारों का अद्भुत समन्वय, विचारोंत्तेजक रचना मंथन देती ।
जवाब देंहटाएंढेर सारा आभार कुसुम दी मनमोहक समीक्षा के लिये |
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया मुझे दिशा दिखाती है |
आप का स्नेह यूँ ही बना रहे...
सादर
वक़्त ने वक़्त से धोखा किया,वक़्त सज्दे में नहीं था |
जवाब देंहटाएं...वाह...भावों और शब्दों का लाज़वाब संयोजन।
सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धक समीक्षा के लिये |
हटाएंब्लॉग पर आप का हार्दिक स्वागत है सर
सादर
लाजवाब जी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार जी
हटाएंसादर
बहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना उत्साहवर्धन समीक्षा हेतु
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-09-2019) को "होगा दूर कलंक" (चर्चा अंक- 3469) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मुझे स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर अनीता जी.
जवाब देंहटाएंदुष्यंत कुमार की बात को आपने अपने अंदाज़ से आगे बढाया है.
बहुत बहुत आभार आदरणीय गोपेश जी सुन्दर एवं उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु आप की समीका से रचना को प्रवाह मिला |निशब्द हूँ आप की सुन्दर समीक्षा से...
हटाएंआप का मार्गदर्शन यूँ ही मिलता रहे..
प्रणाम
सादर
सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धक समीका हेतु
हटाएंसादर
बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर
आभार अनुज
जवाब देंहटाएं