लिपटते रहे हाथों से और दिल में उतर गये,
उनमें में एक लफ़्ज़ था मुहब्बत,
ज़ालिम ज़माना उसका साथ छोड़ गया,
मुक़द्दर से झगड़ता रहा ता-उम्र वह,
मक़ाम उसका बदल दिया,
इंसान ने इंसानियत का छोड़ा लिबास,
हैवानियत का जामा पहनता गया |
अल्फ़ाज़ के पनीले पुनीत पात पर,
एक और लफ़्ज़ बैठा था नाम था वफ़ा,
तृष्णा ने किया उसको तार-तार,
अब अस्तित्त्व उसका डोल गया,
कभी फुसफुसाता था उर के साथ ,
लुप्त हुआ दिल-ओ-जिगर इंसान का,
मर्म वफ़ाई का जहां में तलाशता रह गया |
अल्फ़ाज़ के अलबेलेपन में छिपा था,
एक और लफ़्ज़ नाम था जुदाई,
एहसासात की ज़ंजीरों में जकड़ा,
बे-पर्दा-सा जग में बिखरता गया,
बदल रही थी रुख़,
आब-ओ-हवा ज़माने की,
क्रोध नागफनी-सा,
मानव चित्त पर पनपता गया |
अल्फ़ाज़ से बिछड़ एक कोने में छिपा बैठा था,
एक और लफ़्ज़ नाम था आँसू,
शबनम-सा लुढ़कता था कभी ,
दिल की गहराइयों में रहता था गुम,
ख़ौफ़-ए-जफ़ा से इतना हुआ ख़फ़ा,
आँखों से ढलकना भूल गया |
© अनीता सैनी
एक और लफ़्ज़ नाम था जुदाई,
एहसासात की ज़ंजीरों में जकड़ा,
बे-पर्दा-सा जग में बिखरता गया,
बदल रही थी रुख़,
आब-ओ-हवा ज़माने की,
क्रोध नागफनी-सा,
मानव चित्त पर पनपता गया |
अल्फ़ाज़ से बिछड़ एक कोने में छिपा बैठा था,
एक और लफ़्ज़ नाम था आँसू,
शबनम-सा लुढ़कता था कभी ,
दिल की गहराइयों में रहता था गुम,
ख़ौफ़-ए-जफ़ा से इतना हुआ ख़फ़ा,
आँखों से ढलकना भूल गया |
© अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 22 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया दी पाँच लिंकों पर मुझे स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
शबनम-सा लुढ़कता था कभी अंतरमन से ,
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों में रहता था छिपा,
वफ़ा की नामाकूल नमी हुआ ख़फ़ा,
सूख गया नयनों में,
आँखों से ढलकना भूल गया |
जीवन के बुरे अनुभव हमें कठोर बनाते हैं
बहुत अच्छी रचना, दिवाली की शुभकामनाएं
बहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-10-2019) को " सभ्यता के प्रतीक मिट्टी के दीप" (चर्चा अंक- 3496) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मुझे स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
... शुभ संध्या अनीता जी...मानव जीवन में सामाजिक मूल्यों की कमी सहसा ही कवि की पारखी नज़र भांप लेती है.. इंसान बदल रहा है उसके अंदर की कोमल भावनाएं मानवीय मूल्यों से इतर अपने हिसाब से रास्ते तय कर रही हैं...
जवाब देंहटाएंकविता के हर बंद में सांकेतिक मर्म निहित है कहीं मोहब्बत बिखर गयी..तो कहीं वफ़ा तार- तार हो गयी.. और कहीं जुदाई का रंग आंसू बनकर छलक गया...
....अनीता जी बहुत ही शानदार कविता आपने लिखी.. मोहब्बत,दर्, वफ़ा, जुदाई औरआंसू सब को समेटते हुए... एक तबीयत तरीके से मन के उदगार को परिलक्षित कर डाला।
सच कहूं तो थोड़ी पशोपेश में पड़ गयी थी कि क्या प्रतिक्रिया लिखूं क्योंकि बहुत ही कम आंखों के सामने से ऐसी रचनाएं गुज़रती हैं।आपको इतनी शानदार रचना के लिये बहुत-बहुत बधाई ...!!
बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय अनु रचना का मर्म स्पष्ट कर पाठकों के सामने सुन्दर समीक्षा के रुप में व्यक्त करने हेतु.
हटाएंसादर
वाह!बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
एक और लफ़्ज़ नाम था आँसू,
जवाब देंहटाएंशबनम-सा लुढ़कता था कभी ,
दिल की गहराइयों में रहता था गुम,
ख़ौफ़-ए-जफ़ा से इतना हुआ ख़फ़ा,
आँखों से ढलकना भूल गया |
हृदयस्पर्शी !!! बहुत सुन्दर सृजन ।
सस्नेह आभार प्रिय मीना दी जी
हटाएंसादर
अल्फ़ाज़ के पनीले पुनीत पात पर,
जवाब देंहटाएंएक और लफ़्ज़ बैठा था नाम था वफ़ा,
तृष्णा ने किया उसको तार-तार,
अब अस्तित्त्व उसका डोल गया,
कभी फुसफुसाता था उर के साथ ,
लुप्त हुआ दिल-ओ-जिगर इंसान का,
मर्म वफ़ाई का जहां में तलाशता रह गया |
विभिन्न लफ्ज़ों में ढाली बहुत ही लाजवाब कृति
वाह!!!
सस्नेह आभार आदरणीय सुधा दी जी
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वाह
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
सुंदर लेखन अनु...बहुत सारे भाव समेटे हुये।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीया श्वेता दी जी
हटाएंसादर
ख़ौफ़-ए-जफ़ा से इतना हुआ ख़फ़ा,
जवाब देंहटाएंआँखों से ढलकना भूल गया |
हृदयस्पर्शी !!
सहृदय आभार आदरणीय संजय जी
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समकालीन सरोकारों पर गहन चिंतन की भावभूमि का निर्माण करती हृद्यस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंसामाजिक नियमावली और जीवन मूल्य मानव जीवन को उत्कृष्टता प्रदान करते हैं और जब हम दया, त्याग, करुणा, प्रेम,परमार्थ, दूसरों की परवाह,सत्य,ममता,अहिंसा और स्नेह जैसे मूल्यों से परे होते जायेंगे तो हमारे साथ होंगे निष्ठुरता,बर्बरता,हिंसा,क्रूरता,दंभ,असत्य और घृणा जैसी नकारात्मक विकृतियां तो परिणाम क्या होगा कि व्यक्ति मूल्यविहीन होकर रोबोट की तरह व्यवहार करेगा जिसमें भावनाओं के लिये कोई स्थान नहीं होता है।
सोचने पर विवश करती सार्थक रचना।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय सर। आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी ने रचना का मर्म अधिक प्रभावी और स्पष्ट बना दिया है।
जवाब देंहटाएंसादर।
समाज के बदलाव आज इसी दिशा में ज्यादा हैं ... मूल्य अपना पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं ... क्या सही क्या गलत आने वाला समय शायद समझ सके ...
जवाब देंहटाएंसादर नमन आदरणीय दिगंबर नासवा जी आप की सुन्दर व्याख्यात्मक समीक्षा रचना को समझने में हमेशा ही कारगर सिद्ध होती है इसके लिये आप का तहे दिल से आभार
हटाएंसादर
बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
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