टूटने लगता है
बदन
छूटने लगता है
हाथ
देह और दुनिया से
उस वक़्त
उन कुछ ही लम्हों में
उमड़ पड़ता है
सैलाब
यादों का
उस बवंडर में उड़ते
नज़र आते हैं
अनुभव
बटोही की तरह राह नापता
वक़्त
रेत-सी फिसलती
साँसें
विचलित हो डोलती हैं
तभी
अतीत की
उजली धूप में
उसी पल हृदय थामना
चाहता है
हाथ
भविष्य का
अँकुरित हुए उस
परिणाम के
साथ
वर्तमान करता है
छीना-झपटी
एक पल के अपने अस्तित्त्व के
साथ |
© अनीता सैनी
हाथ
देह और दुनिया से
उस वक़्त
उन कुछ ही लम्हों में
उमड़ पड़ता है
सैलाब
यादों का
उस बवंडर में उड़ते
नज़र आते हैं
अनुभव
बटोही की तरह राह नापता
वक़्त
रेत-सी फिसलती
साँसें
विचलित हो डोलती हैं
तभी
अतीत की
उजली धूप में
उसी पल हृदय थामना
चाहता है
हाथ
भविष्य का
अँकुरित हुए उस
परिणाम के
साथ
वर्तमान करता है
छीना-झपटी
एक पल के अपने अस्तित्त्व के
साथ |
© अनीता सैनी
बेहद शानदार रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय लोकेश जी
हटाएंप्रणाम
अतीत की
जवाब देंहटाएंउजली धूप में
उसी पल हृदय थामना
चाहता है
हाथ
भविष्य का
अँकुरित हुए उस
परिणाम के
साथ....,
बेहतरीन और लाजवाब भावाभिव्यक्ति अनीता जी ।
सादर नमन आदरणीय मीना दी जी. आभारी हूँ आपके अपार स्नेह और सानिध्य की.
हटाएंअंत और अनंत की, भूत,वर्तमान और भविष्य के अटल और निरंतर सत्य की हृदयस्पर्शी व्याख्या की है आपने अनिता जी ! बस लाजवाब!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय नीरज जी. बहुत बहुत शुक्रिया आपका रचना का सार्थक मर्म समीक्षा में उकेरने और रचना को समझने में और सहूलियत प्रदान करने हेतु.
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-10-2019) को "बुरी नज़र वाले" (चर्चा अंक- 3488) पर भी होगी।
---
रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आदरणीय रवीन्दर जी मेरी रचना को चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति बहन
जवाब देंहटाएंसादर आभार प्रिय कामिनी दी.सुन्दर समीक्षा और अपार स्नेह हेतु.
हटाएंसादर
बहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंवो शब्दों में कलेजा परोसते रहे
हटाएंबर्खुरदार शब्दों में उलझ गये
दुआ सलाम में गुज़र गये पहर ज़िंदगी के
अब वो पहर पहलू में बैठने से मुकर गये... वक़्त मिले तो ग़ौर फ़रमाइएगा ज़नाब इस दिपावली घर की चौखट लगियेगा.
सादर प्रणाम
बहुत गहन होती है आपकी रचनाएं, अद्भुत तरह से भावों को लिखना और दिल तक उतरना, सचमुच अप्रतिम अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सारा आभार आदरणीया कुसुम दी जी।
हटाएंआपकी टिप्पणी मेरी रचना का मान बढ़ाती है। आपसे मिला प्रोत्साहन मुझे नई ऊर्जा से भरता है।
सादर आभार आपका दी।
छूटने लगता है
जवाब देंहटाएंहाथ
देह और दुनिया से
उस वक़्त
उन कुछ ही लम्हों में
उमड़ पड़ता है
सैलाब
यादों का
उस बवंडर में उड़ते
नज़र आते हैं बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सखी
बहुत बहुत आभार आदरणीय
हटाएंसादर