तुम्हें मालूम है उस दरमियाँ,
ख़ामोश-सी रहती कुछ पूछ रही होती है,
मुस्कुराहट की आड़ में बिखेर रही शब्द,
तुम्हारी याद में वह टूट रही होती है |
बिखरे एहसासात बीन रही,
उन लम्हात में वह जीवन में मधु घोल रही होती है,
नमक का दरिया बने नयन,
तुम्हें अब भी मीठी नज़रों से हेरती,
धीरे-धीरे वह टूट रही होती है |
बे-वजह रुठने से तुम आहतित न होना,
वह दर्द अपना छुपा रही होती है,
फ़रेब-सा फ़रमान लिख,
पहन लिबास-ए-हिम्मत,
वक़्त से टकरा वह टूट रही होती है |
साज़िश रचते सपने,
दृग अपने खोलते हैं उन्हें समझा रही होती है,
ज़िंदगी की ज़िल्द पर जमे जाले झाड़ती,
छूटी एक नज़्म टूट रही होती है |
©अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-10-2019) को "सबका अटल सुहाग" (चर्चा अंक- 3492) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अटल सुहाग के पर्व करवा चौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंदुआ पधारें
बहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसादर
अंतरमुखी व्यक्तित्त्व का सृजन एक पहेली बनकर उभरता है। सृजन में भाव,विचार,संवेदना और शब्द-विन्यास अनेक बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से नज़्म को मानवीकरण अलंकार से नवाज़ते हुए नज़र आते हैं।
जवाब देंहटाएंऐसी रचनाओं को पाठक बार-बार पढ़ना चाहते हैं। अंतरवेदना का शब्दों में मुखरित हो पाना एहसासात की गहराइयों और हृदय में उमड़ते उद्वेगों के स्पंदन के साम्य पर निर्भर करता है।
आदि से अंत तक रचना एक अंतरकथा को समेटती हुई नज़्म के अधूरेपन को स्पष्ट करती है।
उत्कृष्ट सृजन के लिये बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर नमन.
बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीय
हटाएंसादर
मन के भावों की गहन अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करती सुन्दर
जवाब देंहटाएंरचना ..अति सुन्दर सृजन अनीता जी ।
सादर आभार प्रिय मीना दी जी
हटाएंसादर
बहुत खूबसूरत एहसास
जवाब देंहटाएंसादर नमन आदरणीय
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय
हटाएंसादर मनम
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय उर्मिला दी जी
हटाएंसादर नमन
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंसादर
-वजह रुठने से तुम आहतित न होना,
जवाब देंहटाएंवह दर्द अपना छुपा रही होती है,
फ़रेब-सा फ़रमान लिख,
पहन लिबास-ए-हिम्मत,
वक़्त से टकरा वह टूट रही होती है |
प्रिय अनिता , मन की वेदना और इसे छिपाने के अनगिन बहाने। बहुत गहरे स्पर्श करते भाव।
सस्नेह आभार प्रिय रेणु दी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर मनम.
बे-वजह रुठने से तुम आहतित न होना,
जवाब देंहटाएंवह दर्द अपना छुपा रही होती है,
फ़रेब-सा फ़रमान लिख,
पहन लिबास-ए-हिम्मत,
वक़्त से टकरा वह टूट रही होती है |
मन के भावों की गहन अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करती सुन्दर
रचना ..अति सुन्दर सृजन अनीता जी
बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय जोया बहना
हटाएंसादर नमन
बहुत खयबसूरत
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएं"नमक का दरिया बने नयन,
जवाब देंहटाएंतुम्हें अब भी मीठी नज़रों से हेरती,
धीरे-धीरे वह टूट रही होती है |"
वाह अनिता जी ! कल्पना की शाब्दिक बुनावट क्या उत्कृष्ट दर्जे की है !
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीरज जी
हटाएंसादर नमन
फ़रेब-सा फ़रमान लिख,
जवाब देंहटाएंपहन लिबास-ए-हिम्मत,
वक़्त से टकरा वह टूट रही होती है |
... बहुत गहरे स्पर्श करते भाव।
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर