उसकी ख़ामोशी खँगालती है उसका अंतरमन,
वो वह नहीं है जो वह थी,
उसी रात ठंडी पड़ चुकी थी देह उसकी,
ठहर गयीं थीं एक पल साँसें,
हुआ था उस रात उसका एक नया जन्म,
हो चुकी थी बुद्धि क्षीण व मन क्षुब्ध,
वो वह नहीं है जो वह थी,
उसी रात ठंडी पड़ चुकी थी देह उसकी,
ठहर गयीं थीं एक पल साँसें,
हुआ था उस रात उसका एक नया जन्म,
देख चुकी थी अवाक-सी वह,
एक पल में जीवन का सम्पूर्ण सार,
उस रात मंडरा रहे थे बादल काल के, एक पल में जीवन का सम्पूर्ण सार,
हो चुकी थी बुद्धि क्षीण व मन क्षुब्ध,
विचार अनंत सफ़र के राही बन दौड़ रहे थे,
कोई नहीं था साथ उसके,
तब थामा था क़ुदरत ने उसका हाथ,
प्रत्येक प्रश्न का उत्तर तलाशती थी जिस में,
भूल चुकी थी उसका साथ,
पवन के हल्के झोंकों संग बढ़ाया,
क़ुदरत ने अपना हाथ,
समझाया गूढ़ रहस्य अपना,
सिखाया जीवन का सुन्दर सार,
त्याग की परिभाषा अब पढ़ाती है,
क़ुदरत उसे हर बार,
समझाती है सम्पूर्ण जीवन अपना,
दिखाती है अपना घर-द्वार और कहती है,
खिलखिलाती धूप भी सहती हूँ,
सहती हूँ सूरज की ये गुर्राहट भी,
देख रही अनेकों रंगों में जिंदगियाँ,
जीवन के सुन्दर रुप भी,
गोद से झर रहे रुपहले झरने की झंकार भी,
तपते रेगिस्तान की मार भी,
त्याग की अनकही कहानी,
क़ुदरत सुनाती है अपनी ही ज़ुबानी,
क्यों बाँधना मन आँचल से,
कहाँ छिपाया मौसम मैंने,कहाँ छिपाया पानी |
© अनीता सैनी
तब थामा था क़ुदरत ने उसका हाथ,
प्रत्येक प्रश्न का उत्तर तलाशती थी जिस में,
भूल चुकी थी उसका साथ,
पवन के हल्के झोंकों संग बढ़ाया,
क़ुदरत ने अपना हाथ,
समझाया गूढ़ रहस्य अपना,
सिखाया जीवन का सुन्दर सार,
त्याग की परिभाषा अब पढ़ाती है,
क़ुदरत उसे हर बार,
समझाती है सम्पूर्ण जीवन अपना,
दिखाती है अपना घर-द्वार और कहती है,
खिलखिलाती धूप भी सहती हूँ,
सहती हूँ सूरज की ये गुर्राहट भी,
देख रही अनेकों रंगों में जिंदगियाँ,
जीवन के सुन्दर रुप भी,
गोद से झर रहे रुपहले झरने की झंकार भी,
तपते रेगिस्तान की मार भी,
त्याग की अनकही कहानी,
क़ुदरत सुनाती है अपनी ही ज़ुबानी,
क्यों बाँधना मन आँचल से,
कहाँ छिपाया मौसम मैंने,कहाँ छिपाया पानी |
© अनीता सैनी
बहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंसादर
बह्त सुंदर रचना, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय ज्योति बहन
हटाएंसादर स्नेह
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (0५ -१०-२०१९ ) को "क़ुदरत की कहानी "(चर्चा अंक- ३४७४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
बहुत सुंदर भावुक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
हटाएंसादर
मार्मिक सृजन अनु।
जवाब देंहटाएंभावों से भरी सुंदर अभिव्यक्ति।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता दी
हटाएंसुन्दर समीक्षा हेतु
सादर
भावात्मक सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन,
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी,
प्रकृति से प्रेरणा लेकर मन की गति को थामना बहुत सुंदर प्रतीक सार्थक सृजन।
सादर आभार आदरणीया कुसुम दी
हटाएंआपकी विस्तृत समीक्षा ने मेरी रचना को और सुन्दर बना दिया है |आपका स्नेह मुझे और बेहतर लिखने को प्रोत्साहित करता है |
बहुत सारा आभार दी
सादर
पवन के हल्के झोंकों संग बढ़ाया,
जवाब देंहटाएंक़ुदरत ने अपना हाथ,
समझाया गूढ़ रहस्य अपना,
सिखाया जीवन का सुन्दर सार, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
तहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
त्याग की अनकही कहानी,
जवाब देंहटाएंक़ुदरत सुनाती है अपनी ही ज़ुबानी,
क्यों बाँधना मन आँचल से,
लाजबाब ,बहुत ही सुंदर ,प्रिये अनीता ,आप इस ब्लॉग का नाम " गूँगी गुड़िया " से बदल कर " बोलती गुड़िया " रख दे क्योकि ये गुड़िया तो बहुत ही सुंदर और लाजबाब बोलती हैं ,,सादर स्नेह बहन
तहे दिल से आभार प्रिय बहना सुन्दर समीक्षा हेतु |जरुर बदल दूँगी ब्लॉग का नाम 😊
हटाएंसादर
ज़िन्दगी की कश्मकश जब वश से बाहर हो तो प्रकृति की शरण ही यथोचित मार्ग प्रशस्त करती है।
जवाब देंहटाएंरचना जीवन में सृष्टि के सार्वभौमिक स्वरूप को स्थापित करते हुए प्राकृतिक जीवन शैली की ओर आकर्षित करती है। वस्तुतः हमारा जीवन भी तो प्रकृति की ही उपहार है। प्रकृति की सर्वोत्तम कृति हमारा जीवन जब अपने नैसर्गिक परिवेश से विमुख होता है तब अनेक विद्रूपताएं अपने विकृत रूप लेकर जीवन के सौन्दर्य को पतन की राह दिखाने को तत्पर होती हैं।
बेहतरीन सृजन।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
लिखते रहिए।
प्रकृति की ही उपहार=प्रकृति का ही उपहार।
हटाएंसादर नमन आदरणीय रवीन्द्र जी. कविता का मर्म और सुन्दर समीक्षा हेतु सादर आभार.
हटाएंप्रणाम
सादर