फटी क़मीज़ की बेतरतीब तुरपन,
आलम मेहनत का दिखाने लगे,
देख रहे गाँव के गलियारे,
वो हालत हमारी भरी चौपाल में सजाने लगे |
सिमटने लगी कोहरे की चादर,
उनके चेहरे भी नज़र आने लगे,
जल्द-बाज़ी में जनाब ने की थी लीपापोती,
अब वे दर्द की सिसकियाँ गिनाने लगे |
उनके चेहरे भी नज़र आने लगे,
जल्द-बाज़ी में जनाब ने की थी लीपापोती,
अब वे दर्द की सिसकियाँ गिनाने लगे |
समय की सख़्त समझाइश पर,
बर-ख़ुरदार ने बहुतेरे पानी के बुलबले बनाये,
सजा दिया गुलदान में उन्हें,
बर-ख़ुरदार ने बहुतेरे पानी के बुलबले बनाये,
सजा दिया गुलदान में उन्हें,
श्रेय की महफ़िल सजाने लगे |
ठहाकों में ठिठुरी संवेदना,
इंसानियत को जामा रुपहला पहना दिया,
चाल मद्धिम मन मकराना-सा,
बगुले-से पैंतरे अपने पैरों से दिखाने लगे |
दौलत का फ़लक तोड़, इंसानियत को जामा रुपहला पहना दिया,
चाल मद्धिम मन मकराना-सा,
बगुले-से पैंतरे अपने पैरों से दिखाने लगे |
जमाने भर के जुगनू उसमें चमकाने लगे,
मज़लूमों का मरहम दर्द को बता,
वो दर्द का पैमाना झलकाने लगे,
ओझल हुई हया पलकों से देखो !
वो बरबस चेहरा चिलमन में छिपाने लगे |
©अनीता सैनी
©अनीता सैनी
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार आप का
हटाएंसादर
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय बहना सुन्दर समीक्षा हेतु |
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (0६ -१०-२०१९ ) को "बेटी जैसा प्यार" (चर्चा अंक- ३४८०) पर भी होगी।
समय को साधती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंरचना पर आपकी टिप्पणी देखकर बड़ी ख़ुशी हुई |
आपका समर्थन और सहयोग यों ही बना रहे |
सादर
वाह!
जवाब देंहटाएंमौजूदा माहौल पर तीखा प्रहार करती हुई एक सुगढ़ रचना जिसका संदेश सोई कपटी व्यवस्था से संवाद स्थापित करते हुए मज़लूमों की वेदना को सशक्त आवाज़ देना है.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति जो समय की लिखी की इबारत को पढ़ने के लिये कहती है.
बधाई एवं शुभकामनाएँ.
लिखती रहिए.
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवीन्द्र जी-आप की सुन्दर समीक्षा हमेशा मेरा मनोबल बढ़ती है और बेहतरीन लिखने के लिये प्रेरित करती है आप की समीक्षा |
हटाएंसादर
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
हटाएंसादर
बेहद सुन्दर... हृदयस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय मीना दी
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना प्रिय अनिता जी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर स्नेह
फटी क़मीज़ की बेतरतीब तुरपन,
जवाब देंहटाएंआलम मेहनत का दिखाने लगे,
देख रहे गाँव के गलियारे,
वो हालत हमारी भरी चौपाल में सजाने लगे |
बहुत खूब प्रिय अनीता,जब छद्म आचरण की पोल खुल जाये तो कोई चिलमन में मुँह ना छिपाये तो करे। दोहरे चरित्र पर करारा प्रहार करती रचना , जो रोचक अंदाज में लिखी गई है । ☺☺
सादर आभार आपका आदरणीया रेणु दी आपकी प्रतिक्रिया रचना में एक नगीने की तरह सज गयी है,आपकी हौसला अफजाई का बहुत सारा आभार दी |
हटाएंसादर।
दौलत का फ़लक तोड़,
जवाब देंहटाएंजुगनू उसमें चमकाने लगे,
मज़लूमों का मरहम दर्द को बता,
वे दर्द का पैमाना झलकाने लगे |
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति अनीता जी ,सादर स्नेह
बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी दी-सुन्दर समीक्षा और अपार स्नेह से नवाज़ने हेतु |
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
७ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता दी हमक़दम में मुझे स्थान देने के लिये |
हटाएंसादर
वाह बहुत खूब,
जवाब देंहटाएंतंज भी और प्रहार भी ,सीधे- सीधे दिमाग पर असर करती सार्थक अर्थ रचना।
आप के स्नेह और सानिध्य से सराबोर करती सुंदर समीक्षा रचना का मर्म स्पष्ट करती प्रभावी शब्दावली का सुन्दर समावेश गूँथा है दी आप ने
हटाएंसादर स्नेह दी
नक़ाब नोचती रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंसादर