शनिवार, अक्तूबर 5

वो चेहरा चिलमन में छिपाने लगे



फटी क़मीज़ की बेतरतीब तुरपन, 
आलम मेहनत का दिखाने लगे, 
देख रहे  गाँव के गलियारे, 
वो हालत हमारी भरी चौपाल में सजाने लगे |


सिमटने लगी कोहरे की चादर, 
उनके चेहरे भी नज़र आने लगे,  
जल्द-बाज़ी में जनाब ने की थी लीपापोती, 
अब वे दर्द की सिसकियाँ गिनाने लगे |

 समय की सख़्त समझाइश पर, 
बर-ख़ुरदार ने बहुतेरे पानी के बुलबले बनाये, 
सजा दिया गुलदान में उन्हें,
श्रेय की महफ़िल सजाने  लगे | 

ठहाकों  में  ठिठुरी संवेदना, 
इंसानियत को जामा रुपहला पहना दिया,   
चाल मद्धिम मन मकराना-सा, 
गुले-से पैंतरे अपने पैरों से दिखाने लगे |

दौलत का फ़लक तोड़, 
जमाने भर के जुगनू उसमें चमकाने लगे, 
 मज़लूमों का मरहम दर्द को बता, 
वो दर्द का पैमाना झलकाने लगे, 
ओझल हुई हया पलकों से देखो !
वो बरबस चेहरा चिलमन में छिपाने लगे | 

©अनीता सैनी 

27 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय बहना सुन्दर समीक्षा हेतु |
      सादर

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  2. इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (0६ -१०-२०१९ ) को "बेटी जैसा प्यार" (चर्चा अंक- ३४८०) पर भी होगी।



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  3. समय को साधती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. सादर आभार आदरणीय सर
      रचना पर आपकी टिप्पणी देखकर बड़ी ख़ुशी हुई |
      आपका समर्थन और सहयोग यों ही बना रहे |
      सादर

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  4. वाह!
    मौजूदा माहौल पर तीखा प्रहार करती हुई एक सुगढ़ रचना जिसका संदेश सोई कपटी व्यवस्था से संवाद स्थापित करते हुए मज़लूमों की वेदना को सशक्त आवाज़ देना है.
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति जो समय की लिखी की इबारत को पढ़ने के लिये कहती है.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    लिखती रहिए.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवीन्द्र जी-आप की सुन्दर समीक्षा हमेशा मेरा मनोबल बढ़ती है और बेहतरीन लिखने के लिये प्रेरित करती है आप की समीक्षा |
      सादर

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  5. बेहद सुन्दर... हृदयस्पर्शी सृजन ।

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  6. बहुत सुंदर रचना प्रिय अनिता जी

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  7. फटी क़मीज़ की बेतरतीब तुरपन,
    आलम मेहनत का दिखाने लगे,
    देख रहे गाँव के गलियारे,
    वो हालत हमारी भरी चौपाल में सजाने लगे |
    बहुत खूब प्रिय अनीता,जब छद्म आचरण की पोल खुल जाये तो कोई चिलमन में मुँह ना छिपाये तो करे। दोहरे चरित्र पर करारा प्रहार करती रचना , जो रोचक अंदाज में लिखी गई है । ☺☺

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    1. सादर आभार आपका आदरणीया रेणु दी आपकी प्रतिक्रिया रचना में एक नगीने की तरह सज गयी है,आपकी हौसला अफजाई का बहुत सारा आभार दी |
      सादर।

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  8. दौलत का फ़लक तोड़,
    जुगनू उसमें चमकाने लगे,
    मज़लूमों का मरहम दर्द को बता,
    वे दर्द का पैमाना झलकाने लगे |

    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति अनीता जी ,सादर स्नेह

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी दी-सुन्दर समीक्षा और अपार स्नेह से नवाज़ने हेतु |
      सादर

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  9. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ७ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय श्वेता दी हमक़दम में मुझे स्थान देने के लिये |
      सादर

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  10. वाह बहुत खूब,
    तंज भी और प्रहार भी ,सीधे- सीधे दिमाग पर असर करती सार्थक अर्थ रचना।

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    1. आप के स्नेह और सानिध्य से सराबोर करती सुंदर समीक्षा रचना का मर्म स्पष्ट करती प्रभावी शब्दावली का सुन्दर समावेश गूँथा है दी आप ने
      सादर स्नेह दी

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