विश्वास के हल्के झोंकों से पगी
मानव मन की अंतरचेतना
मानव मन की अंतरचेतना
छद्म-विचार को खुले मन से
धारणकर स्वीकारने लगी,
धारणकर स्वीकारने लगी,
हया की पतली परत
सूख चुकी धरा के सुन्दर धरातल पर
सूख चुकी धरा के सुन्दर धरातल पर
जिजीविषा पर तीक्ष्ण धूप बरसने लगी |
अंतरमन में उलीचती स्नेह सरिता
बेज़ुबान सृष्टि
बेज़ुबान सृष्टि
बेबस-सी नज़र आने लगी,
सुकून की चाँदनी को छिपाती निशा
ख़ामोशी से आवरण
उजाले का निगलने लगी |
हवा में नमी द्वेष की
मनसूबे नागफनी-से पनपने लगे
दमे का शिकार
चिन्तनशील पीढ़ी होने लगी,
मूक-बधिर बन देख रहा
शुतुरमुर्गी सोच-सा ज़माना
अभिव्यक्ति वक़्त की ठोकरें खाकर
ज़िंदा शमशान पहुँचने लगी |
©अनीता सैनी
ख़ामोशी से आवरण
उजाले का निगलने लगी |
हवा में नमी द्वेष की
मनसूबे नागफनी-से पनपने लगे
दमे का शिकार
चिन्तनशील पीढ़ी होने लगी,
मूक-बधिर बन देख रहा
शुतुरमुर्गी सोच-सा ज़माना
अभिव्यक्ति वक़्त की ठोकरें खाकर
ज़िंदा शमशान पहुँचने लगी |
©अनीता सैनी
एक शानदार रचना जो हालिया वक़्त की पेचीदगियों में उलझे जीवन संघर्ष को सशक्त आवाज़ देती हुई जगाती है.
जवाब देंहटाएंदुनिया आज सृष्टि के प्रति उदासीन नज़र आती है. पेड़ कट रहे हैं तो इसका विरोध करने वालों को गिरफ़्तार किया जा रहा है. हरेक छोटी- बड़ी समस्या के लिये शीर्ष अदालतों में गुहार लगाने का वक़्त अब समाज के पास कहाँ है.
समाज को स्वयं ही तय करना होता है भविष्य का यथोचित मार्ग ताकि भावी पीढ़ी हमें कोसती हुई अपना विकास अवरुद्ध न कर ले.
बहुत बेहतरीन सृजन जो अंतरमन में अनेक सवालों के तूफ़ान उत्पन्न करता है.
बधाई एवं शुभकामनाएँ.
लिखते रहिए.
सहृदय आभार आदरणीय आप का सुन्दर समीक्षा हेतु |आप का प्रोत्साहन लेखनी को सुन्दर प्रवाह प्रदान करता है आप का आशीर्वाद हमेशा बना रहे |
हटाएंसादर
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कविता रावत जी
हटाएंसादर
एक शानदार प्रस्तुति.. सुंदर विवेचना
जवाब देंहटाएंhttp://prathamprayaas.blogspot.in/-सफलता के मूल मन्त्र
बहुत बहुत शुक्रिया आप
हटाएंसादर
मंत्रमुग्ध हो जाती हूँ आपके लेखन से
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
सादर नमन आदरणीया विभा दी जी। आपकी समीक्षा मेरे लेखन को जवाबदेह बनाती है। आपसे मिला उत्साहवर्धन मुझे और बेहतर लिखने को प्रेरित करता है आप का स्नेह और सानिध्य हमेशा बना रहे।
हटाएंआभार
सादर।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-10-2019) को "झूठ रहा है हार?" (चर्चा अंक- 3482) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
श्री रामनवमी और विजयादशमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर स्थान देने के लिए
हटाएंप्रणाम
सादर
पर्यावरण संरक्षण पर मन्त्रमुग्ध करती अनुपम कृति ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय मीना दी सुन्दर समीक्षा हेतु
हटाएंसादर
हवा में नमी द्वेष की
जवाब देंहटाएंमनसूबे नागफनी-से पनपने लगे
दमे का शिकार
चिन्तनशील पीढ़ी होने लगी,
मूक-बधिर बन देख रहा
शुतुरमुर्गी सोच-सा ज़माना
अभिव्यक्ति वक़्त की ठोकरें खाकर
ज़िंदा शमशान पहुँचने लगी |
सार्थक सृजन प्रिय अनीता | नए प्रतीक , बिम्ब रचना को प्रभावी बना रहे हैं |
मौन रह ताकते जमाने की शुतुरमुर्गी सोच का सही आंकलन !! रचना के लिए बधाई और दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें |
आदरणीया रेणु दी आपकी प्रतिक्रिया ने मन मोह लिया है 😊😊। रचना का मान बढ़ाने के लिये बहुत शुक्रिया दी।
हटाएंसादर।
जीवन की विडंबनाओं की पड़ताल करती बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर रचना का मर्म स्पष्ट करती समीक्षात्मक सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये।
हटाएंप्रणाम
सादर
विश्वास के इस झोंकों को कास के पकड़ना अच्छा होता है ...
जवाब देंहटाएंमन बहुत चंचल होता है ... अविश्वास पहले पकड़ता है ... नयी पीड़ी को समझना होगा ... विजयदशमी की बहुत शुभकामनायें ...
सादर आभार आदरणीय दिगंमर नासवा जी,रचना का मर्म समझते हुये सुन्दर समीक्षा हेतु,और रचना की गहन व्याख्या करते हुए स्पष्ट संदेश देने के लिये बहुत- बहुत शुक्रिया आपका।
हटाएंसादर
सारगर्भित सृजन,
जवाब देंहटाएंसामायिक परिवेश में सटीक चिंतन देता विषय।
हवा में नमी द्वेष की
मनसूबे नागफनी-से पनपने लगे
दमे का शिकार
चिन्तनशील पीढ़ी होने लगी,
मूक-बधिर बन देख रहा
शुतुरमुर्गी सोच-सा ज़माना
अभिव्यक्ति वक़्त की ठोकरें खाकर
ज़िंदा शमशान पहुँचने लगी |।
अभिनव भाव रचना ।
रचना का मर्म इतनी गहराई से स्पष्ट करती सुंदर मोहक समीक्षा के लिये ढेर सारा आभार दी। अपना स्नेह यों ही बनाए रखियेगा।
हटाएंसादर।
धुंध हटाती रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंसादर
अंतरमन में उलीचती स्नेह सरिता
जवाब देंहटाएंबेज़ुबान सृष्टि
बेबस-सी नज़र आने लगी,
सुकून की चाँदनी को छिपाती निशा
ख़ामोशी से आवरण
उजाले का निगलने लगी |
-बहुत ही सुंदर रचना। शुभकामनाएं ।
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
हवा में नमी द्वेष की
जवाब देंहटाएंमनसूबे नागफनी-से पनपने लगे
दमे का शिकार
चिन्तनशील पीढ़ी होने लगी,
मूक-बधिर बन देख रहा
शुतुरमुर्गी सोच-सा ज़माना अद्भुत लेखन सखी👌 बेहतरीन रचना
सस्नेह आभार बहना
हटाएंसादर
अंतरमन में उलीचती स्नेह सरिता
जवाब देंहटाएंबेज़ुबान सृष्टि
बेबस-सी नज़र आने लगी,
सुकून की चाँदनी को छिपाती निशा
ख़ामोशी से आवरण
उजाले का निगलने लगी |
वाह!!!
कमाल का लेखन ...बहुत ही सुन्दर, सार्थक एवं लाजवाब।
बहुत बहुत शुक्रिया दी
हटाएंसादर