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मंगलवार, नवंबर 26

बरगद की छाँव बन पालने होते हैं




  अल्हड़ आँधी का झोंका भी ठहराव में, 
शीतल पवन का साथी बन जाता है, 
  ग़ुबार डोलता है परिवेश में  
मुठ्ठी में छिपाता है आहत अहं के तंतु, 
बिखरकर वही द्वेष बन जाता है |

विचलित मन मज़बूरियाँ बिखेरता है, 
सिसकता है साँसों में जोश,  
मानव मस्तिस्क भरमाया-सा फिरता है, 
 छूटता  नहीं  मैं  का  साथ, 
क्षणिक हो जाते हैं उसमें  मदहोश, 
बाक़ी बचे पाषाण बन जाते हैं | 

गाँव-गाँव और शहर-शहर,  
 अपाहिज आशाओं का उड़ता शौक है, 
सयानी सियासत समझ से स्वप्न संजोती है, 
मरा आँख का पानी उसी पानी का, 
यह दोष बन जाता है |

दिलों पर हुकूमत तलाशता है, 
ख़्वाहिशों का पहला निवाला, 
न भूल जिगर पर राज वफ़ा का होता है, 
बरगद की छाँव बन पालने होते हैं,   
 अनगिनत सपनों  से  सजे संसार, 
तभी दुआ में प्रेम मुकम्मल होता है |

© अनीता सैनी 

25 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थपरक एवं नीतिपरक रचना जिसमें जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का चित्रण भावात्मकता के साथ उभरा है. रचना में उपदेशात्मकता के प्रभावी होने से काव्य के अन्य अंग पृष्ठभूमि में जाकर रचना का सौंदर्य बढ़ा रहे हैं.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    लिखते रहिए.

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    1. सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र जी सर सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर

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  2. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति..सार्क चिन्तन लिए सुन्दर सृजन अनीता जी ।

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    1. कृपया सार्क चिन्तन को सार्थक चिन्तन पढ़े ।

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    2. सादर आभार आदरणीया मीना दी जी

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.11.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3533 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर स्थान देने के लिये
      सादर

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  4. वाह!!बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति प्रिय सखी अनीता जी।

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  5. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 28 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सहृदय आभार आदरणीय पाँच लिंकों के आनंद पर मुझे स्थान देने के लिये.
      सादर

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  6. बहुत सुन्दर अनीता !
    ख़्वाहिशें जब हवस बन जाती हैं तो इन्सान उन्हें पूरी करने के लिए दरिंदा बन जाता है और नीति, धर्म आदि को सदा-सदा के लिए त्याग देता है. और यहीं से शुरू होती है, उसके पतन की कहानी ! .

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    1. सादर नमन आदरणीय गोपेश जी सर सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपका आशीर्वाद यों ही बनाये रखे.
      सादर

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  7. गाँव-गाँव और शहर-शहर,
    अपाहिज आशाओं का उड़ता शौक है,
    सयानी सियासत समझ से स्वप्न संजोती है,
    मरा आँख का पानी उसी पानी का,
    यह दोष बन जाता है |
    बहुत खूब प्रिय अनीता | लालसाओं के अधीन इंसान जो ना करे वो थोड़ा | सार्थक रचना जो सोचने पर विवश करती है | सस्नेह --

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    1. सादर आभार आदरणीया रेणु दीदी जी सुन्दर और सार्थक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  8. बेहद खूब
    सुंदर अभिव्यक्ति

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  9. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन बहना

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