निगल रहा प्रदूषण
क्यों पवन पर प्रत्यंचा
चढ़ायी है ?
कभी अंजान था मानव
इस अंजाम से
आज वक़्त ने
फ़रमान सुनाया है
चिंगारी
शोला बन धधक रही
मानव !
किन ख़्यालों में खोया है
वाराणसी
सिसक-सिसक तड़पती रही
आज दिल्ली
नाज़ुक हालत में पायी है
देख !
कलेजा
मुँह को भर आया
क्यों गहरी नींद में स्वयं को सुलाया है
सल्फ़ाइड का धुँआ खुले आसमान में
उड़ रहा
क्यों मौत को हवा में मिलाया
चंद सिक्कों का मुहताज बन दर्द का
दरिया क्यों बहाया है
इतिहास गवाह है
सदियों से
सहती आयी
हर दौर का जख़्म सहलाया
न टपका आँख से पानी न नमी पलकों को
छू पायी है
वक़्त का सुनाया फ़रमान
इसकी हिम्मत में
न कमी पायी
आज न जाने क्यों
बेबस और लाचार नज़र आयी है
उम्र ढल गयी या
अपनों ने यह रोग
थमाया है
साँसों में घोल रहा क्यों ज़हर
तड़प रही प्रति पहर है
आँखों पर क्यों धुंध छाई है |
© अनीता सैनी
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसादर.
जवाब देंहटाएंवसुंधरा का"मानव"करता कुटिल मंथन
वासुकी सा फुफकार प्रदूषण
है कोई नीलकंठ ?
हलाहल का करे पान ...
कुछ माह पूर्व मैंने भी एक रचना लिखी थी -
" प्रदूषण कर रहा है अट्टहास "
उसी की ये पँक्तियाँ हैं।
पिछले ही दिनों पढ़ रहा था यह रिपोर्ट -
" दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर सामान्य से 20 गुना ज्यादा, नोएडा में भी स्कूल 5 नवम्बर तक बंद रहेंगें। दिल्ली एयरपोर्ट पर विजिबिलिटी कम, 32 उड़ानें डायवर्ट। "
लेकिन, प्रश्न यह है कि जब मांझी नाव डुबोये उसे कौन बचाए..
अनीता बहन आपकी लेखनी समसामयिक, सशक्त और भावपूर्ण है, प्रणाम।
बहुत ही सुन्दर रचना है आप की शशि भाई.बहुत अच्छा लगा आपने अपनी रचना मेरे ब्लॉग पर रखी. सुन्दर समीक्षा हेतु तहे दिल से आभार आपका
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गैस चेंबर में दिल्ली अपनी ही सांसो को मोहताज व्याकुल भागती फिर रही है... ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कविता के माध्यम से दिल्लीवासियों की पीड़ा को अपने आवाज बन कर उठाने का प्रयास किया... सटीक और गहन चिंतन इस कविता में उभरे हैं कविता में निहित पंक्तियां सोचने को विवश करती है.. कि इस विकट समस्या का क्या हल होना चाहिए। यह वक्त नहीं है एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण का, इन परिस्थितियों से कैसे निजात पाया जाए इस और भी आपने बहुत अच्छे से इंगित किया है... दूसरे शब्दों में इस सृजनात्मकता में भाव विचार संवेदना और शब्द विन्यास अनेक बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से दिल्ली की वर्तमान मार्मिक परिस्थितियों का चित्रण बहुत बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं.. एक संवेदनशील लेखक सामने मौजूद परिस्थितियों को खुद से ग्रहण करके अपने शब्दों की बाजीगरी से अगर कागज के पन्नों में उकेर देता है... तो ये उस लेखक की सबसे बड़ी खूबी होती है.. प्रतीकों के द्वारा मानवीकरण के भाव को दर्शाती हुई रचना बहुत अच्छा लिखा आपने ऐसे ही लिखते रहिए
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार प्रिय अनु। आज प्रदूषण विकराल रूप धारण कर चुका है और मानव समाज सो रहा है। रचना की सराहना के लिये ढेर सारा आभार।
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दिल्ली का दर्द शिद्दत से महसूस कराती हृदयस्पर्शी रचना। प्रदूषण के भंवर में घिरी सांसों के लिये संघर्ष करती दिल्ली की पीड़ा को सशक्त शब्दों में चित्रित किया है। ब्लेम गेम शुरू हो गया है। वाह रे मेरे देश के नेताओ ढीठपन की सीमाएं लांघने में तुम्हारा कोई नहीं सानी!
जवाब देंहटाएंसुप्रीम कोर्ट 2017 में ही केन्द्र और राज्य सरकारों को कार्ययोजना दे चुका है दिल्ली के विकट प्रदूषण से निबटने की किंतु व्यवस्था के कान पर अब जूं नहीं रेंगी।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने कल पुनः दखल देते हुए पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों के मुख्य सचिवों को तलब किया है।
इंसान द्वारा उत्पन्न की गयी प्रदूषण की इस भयावह समस्या के हल के लिये प्रकृति से ही उम्मीद की जा रही है कि तेज़ हवा चले या बारिश हो तो सांसों को राहत मिले।
एक ज्वलंत मुद्दे पर संवेदनशील सृजन के लिये बधाई एवं शुभकामनाएं।
लिखते रहिए।
सादर आभार आपका आदरणीय सर मेरी रचना पर सारगर्भित प्रतिक्रिया के ज़रिये प्रदूषण पर महत्त्वपूर्ण जानकारी जोड़ने के लिये।
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 05 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आपका आदरणीया दीदी जी. मुझे सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिये.
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-11-2019) को ""हुआ बेसुरा आज तराना" (चर्चा अंक- 3511) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मुझे स्थान देने हेतु.
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दिल्ली के दर्द को आपने बाखुबी महसूस किया हैं ,तत्काल तो मैं दिल्ली से बाहर हूँ परन्तु मेरा पुरा परिवार वहाँ ये सब कुछ झेलने को मजबुर हैं। एक सच्चाई ये भी अनीता जी कि बहुत हद तक दिल्ली वाले अपनी दुर्दशा के जिम्मेदार खुद ही हैं। जो बात सरकार के हाथों में वो माना हमारे बस में नहीं परन्तु जो हमारे खुद के हाथों में हैं वो तो हम कर सकते हैं। 5 -6 सालों से ये दुर्दशा दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही हैं परन्तु लोग जागरूक नहीं हैं। दिल्ली में मेरे दो तीन पडोसी ऐसे हैं जो खुद पुरे परिवार समेत साँस के समस्या से पिड़ित हैं फिर भी दिवाली वाले दिनों उन घरो के बच्चों को तो छोड़े बड़ों तक ने तीन चार घंटे लगातार पटाखें जलाए ," जब मेरे परिवार वाले समझने लगे तो कहते हैं कि -हम अपने पैसों को जलाते हैं आप क्यों परेशान हो रहे हैं ,एक दिन का तो त्यौहार हैं वो भी ना मनाएं ,"बिडंबना तो देखे अगले दिन सारे बिस्तर पर पड़े हैं। दिवाली के अगले दिन से ही प्रदूषण बढ़ने लगा फिर भी छठपूजा वाले दिन भी पटाखें जलाने से बाज नहीं आए। इन वेवकूफों की संख्या कुछ ज्यादा हैं जिसके कारण चंद निर्दोष भी भुगत रहे हैं ,कहते हैं न कि" जौ के साथ घुन भी पीसता हैं "वही हालात हैं प्रदूषण का लेवल तो दशहरा के रावण जलने के बाद से ही शुरू हो गया था फिर भी गलती पे गलती। अनीता जी ,हम सब के इतना लिखने का एक पर भी असर नहीं हो रहा हैं क्या ?बहुत दुखद हैं -आपकी रचना सोये को जगाने के लिए काफी हैं परन्तु पता नहीं कोई जागेगा भी या नहीं ?
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी रचना पर विस्तृत टिप्पणी के ज़रिये प्रदूषण से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को जोड़ने के लिये।
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प्रिय सखी अनीता जी ,दिल्लीवासियों के दर्द को अपने शब्दों में बखूबी पिरोया है । गहन चिंता का विषय है ,जनजागृति कब आएगी पता नहीं ..।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया शुभा दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु. रचना का मर्म स्पष्ट करती प्रभावी समीक्षा.
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प्रदूषण की भयावहता पूरे एन.सी.आर. को चपेट में लिए है उस दर्द को महसूस करते आपके मन के उद्गार हृदयस्पर्शी हैं अनीता जी ।लेखन में आपके नवीन विषय सराहनीय है अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया मीना दीदी जी. प्रदूषण के प्रति समाज और सरकार का उदासीन रबैया चिंताजनक है.इस पर आपकी सार्थक समीक्षा मन को मोह गयी.
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दिल्ली में मोत घूम रही है . भयावह स्थिति को शब्दों में खूब पिरोया है.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
तहे दिल से आभार आपका सुन्दर समीक्षा हेतु.
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सत्य कहा आपने , सामने विषम विप्पति है
जवाब देंहटाएंये मानव है ,क्यूँ अंतिम साँस तक हठी ही
फिर भी सँभाल रही है इनको ,सब को
हमने ईश को नहीं देखा ,विशाल ये प्रकृति है
है भ्रम तो जगाओ ,है संज्ञान तो फिर आओ
है कुहासा ये घना या आँखों पे पट्टी है
--अति आवश्यक रचना ,
--सादर ,
-- नील
बहुत-बहुत आभार आदरणीय निलांश जी रचना पर विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया के लिये।
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आज की सबसे ज्वलंत समस्या !
जवाब देंहटाएंदिल्ली को तैमूर ने लूटा, नादिरशाह ने लूटा, अहमद शाह अब्दाली ने लूटा, मराठों ने लूटा,अंग्रेज़ों ने लूटा, आज उसे हमारे नेता और प्रदूषण मिलकर लूट रहे हैं. अब दिल्ली ही नहीं, बल्कि भारत के नागरिकों की तरह उसके गाँव-गाँव और शहर-शहर लुट रहे हैं और उनकी हिफ़ाज़त के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है.
सादर आभार आपका आदरणीय सर मेरी रचना पर सारगर्भित प्रतिक्रिया के ज़रिये सोचने के लिये नये विषय सुझाने के लिये।
हटाएंआपका स्नेह और आशीर्वाद बना रहे।
सादर
वाराणसी
जवाब देंहटाएंसिसक-सिसक तड़पती रही
आज दिल्ली
नाज़ुक हालत में पायी है
chinta to banti he......bahut sakhta zarrut he koi saarthak kadam udhaane ki isse pehale ki bahut der ho jaaye.....
saarthak aur sateek rchnaa....gehan chintan
bdhaayi
सस्नेह आभार आदरणीया ज़ोया जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
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बिल्कुल सच कहा आपने .. सार्थकता लिये सशक्त लेख न
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीया दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु. आपका स्नेह यूँ ही बना.
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प्रकृति के ecosystem को हमने ही बिगाड़ा है। छोटी छोटी गलतियों के वजह से ही आज हमारे सामने इतनी बड़ी समस्या खड़ी हो चुकी है। क्योकि छोटी गलतियाँ करते समय हम सोचते हैं कि अरे! इतना से कुछ नहीं होगा। मुझे ऐसी सोच वाले लोग पर बहुत गुस्सा आता है।
जवाब देंहटाएंआपने वर्तमान परिस्थिति को बेहतरीन ढंग से इस रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया है। और मुझे प्रकृति पर लिखी कोई भी रचना बहुत पसंद है।
धन्यवाद! इस विषय को सभी तक पहुंचाने के लिए।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय प्रकाश जी मेरी रचना पर विस्तृत टिप्पणी के लिये। आपकी प्रतिक्रिया से रचना का भाव विस्तार हुआ है।
हटाएंसादर