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शनिवार, दिसंबर 14

माजरा क्या है ज़रा देख तो लो




 पाखी के अंदेशे पर दर्ज़ हुआ है एहसासनामा,
 बहेलिया का गुनाह क्या है ज़रा देख तो लो,
महफ़ूज़ मुसीबतों से कर रहा परिंदों को,
उदारता के तर्क का माजरा क्या है ज़रा देख तो लो | 

बेहतर हुए हैं कि नहीं हालात चमन के,
  अर्ज़ यही है अमराइयों से ज़रा पूछ तो लो,
नफ़रतों के तंज़ कसे तो होंगे दिलों पर, 
हर्ज क्या है आईना ज़रा देख तो लो |  

हकीम बन इलाज को उतावला है ज़माना,
मर्ज़ क्या है माहौल से  ज़रा पूछ  तो लो, 
ऐब नहीं है हवाओं में नमी का होना,
 तर्ज़ क्या है आँखों में ज़रा झाँक तो लो |  

 ज़ुल्म की हदें पार की तो होंगी,
कर्ज़  मिट्टी का यों ही दफ़नाया होगा
पलट समय की तह  को ज़रा देख तो लो, 
 हालात बद से बदतर हुए क्यों, 
कुछ क़दम जुर्म  के साथ चले  तो होंगे,   
फ़र्ज़ क्या है गिरेबां में ज़रा  झाँक तो लो | 

अनीता सैनी 

26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 14 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी जी
      सादर

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  2. वाह..... बहुत सुन्दर रचना

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  3. कविता में उलटबाँसी का प्रयोग काव्य सौंदर्य को बढ़ाता है. बहेलिया के हाथों में आज़ाद ख़याल परिंदों का ख़ुद को सौंपना शायद परिस्थितिजन्य विवशताएँ हो सकती हैं.
    रचना में अर्थ की गूढ़ता और निहितार्थ आपस में उलझकर इतिहास के अन्याय याद करते हुए उनका बदला किसी को चुकाने की वकालत करे तो सृजन की सार्थकता संदेह के घने अंधेरों में भटकने को दौड़ने लगती है.
    कविता वक़्त का सच अभिव्यक्त करती है अतः सृजन की गरिमा के मूल्यों पर मंथन होता रहे.
    लिखते रहिए.

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    1. रचना का मर्म स्पष्ट करती सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु
      सादर आभार आदरणीय.

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  4. वाह!!सखी ,बहुत खूब!

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीया दीदी जी
      सादर

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  5.  हालात बद से बदतर हुए क्यों, 
    कुछ क़दम जुर्म  के साथ चले  तो होंगे,   
    फ़र्ज़ क्या है गिरेबां में ज़रा  झाँक तो लो

    बहुत खूब..... अनीता जी

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कामिनी दी जी
      सादर

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  6. बेहतर हुए हैं कि नहीं हालात चमन के,
    अर्ज़ यही है अमराइयों से ज़रा पूछ तो लो,
    नफ़रतों के तंज़ कसे तो होंगे दिलों पर,
    हर्ज क्या है आईना ज़रा देख तो लो |
    लाजवाब और बेहतरीन सृजन अनीता जी । लिखती रहिये..सुन्दर लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई ।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  7. नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों काआनन्द" में रविवार 15 दिसंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    612...लिहाफ़ ओढ़ूँ,तानूं,खींचूं...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय पांच लिंकों में मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
      सादर

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  8. बहुत ही सुंदर रचना भाव का बहुत ही अच्छा समावेश

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    1. सादर आभार आदरणीय सुन्दर समीक्षा हेतु.

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  9. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-12-2019) को "आस मन पलती रही "(चर्चा अंक-3551) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं…
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिये.
      सादर

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  10. बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌

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  11. हकीम बन इलाज को उतावला है ज़माना,
    मर्ज़ क्या है माहौल से ज़रा पूछ तो लो,
    ऐब नहीं है हवाओं में नमी का होना,
    तर्ज़ क्या है आँखों में ज़रा झाँक तो लो |
    गूढ़ अर्थ लिए बहुत ही लाजवाब सृजन...
    वाह!!!

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  12. बेहतरीन सृजन ।
    संवेदनशील लेखनी हर और दृष्टि पात करती ।
    सार्थक और यथार्थ लेखन।

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    1. सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी जी रचना का मर्म स्पष्ट करती सार्थक समीक्षा हेतु.
      सादर

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