बदलते परिवेश में द्वेष के झुरमुट से,
अवतरित हुआ है धरा पर द्वेष के लिवास में
एक सुडोल और कमनीय काय प्राणी,
कामनाओं की कोख में नहीं कुलबुलाया,
पनपा है भविष्य की लालसामय अंधगुफाओं से,
पनपा है भविष्य की लालसामय अंधगुफाओं से,
पथभ्रष्ट,आत्महारा,आत्मकेन्द्रित,
हृदय है जिसका विगलित |
स्वर्णिम आभा-सा दमकता दुस्साहस,
लोकतंत्र में भंजक-काष्ठवत-सा लिये स्वरुप,
जिजीविषा की उत्कंठा से अपदस्थ,
कालचक्र पर प्रभुत्त्व की करता वह पुकार,
दमित इच्छाओं को पोषितकर,
वर्चस्व को समेटने में अहर्निश है वह मग्न,
दमित इच्छाओं को पोषितकर,
वर्चस्व को समेटने में अहर्निश है वह मग्न,
वक़्त की धुँध में धँसाता कर्म का धुँधला अतीत,
स्वयं को कर परिष्कृत |
स्वयं को कर परिष्कृत |
तीक्ष्ण बुद्धि के साथ लिये है,
तंज़ के तेज़ का एक सुनहरा हथियार,
राम-रहीम-सा लिये है मुखौटा मुख पर,
रावण-तैमूर का चिरकाल से,
बन बैठा है मुँहबोला बेटा,
जिसकी स्थितियाँ,मनोवृत्तियाँ,
आत्मा हुई हैं विकृत |
अराजक तिमिर के साथ,
आत्मसात की है जिसने,
आत्मसुख की भावना प्रबल,
अग्निवर्णी परोपकार का भाव,
दिल में नहीं धड़कता स्वार्थ के साथ,
झलकता है कभी-कभी,
हर साँस में उड़ती धूल
बनाती है ग़ुबार बेपरवाही का
लिये अतृप्त तृष्णा कभी न होने के लिये निवृत्त |
बनाती है ग़ुबार बेपरवाही का
लिये अतृप्त तृष्णा कभी न होने के लिये निवृत्त |
© अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (19-12-2019) को "इक चाय मिल जाए" चर्चा - 3554 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय चर्चामंच पर मेरी प्रस्तुति को स्थान देने के लिये.
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विषम परिस्थितियों पर गहन चिन्तन में डूबे मनोभावों की पृष्ठभूमि पर सशक्त लेखन....
जवाब देंहटाएंआत्मसुख की भावना प्रबल,
अग्निवर्णी परोपकार का भाव,
दिल में नहीं धड़कता स्वार्थ के साथ,
झलकता है कभी-कभी,
हर साँस में उड़ती धूल बनाती है,
ग़ुबार बेपरवाही का लिये अतृप्त तृष्णा,
कभी न होने के लिये निवृत्त |
मानव स्वभाव ही ऐसा है..., उसकी इच्छाओं की की कोई सीमा नहीं । एक के बाद एक बलवती रहती हैं और अतृप्ति का भाव कभी संतुष्टि से जुड़ ही नही पाता ।
सादर आभार आदरणीया मीना दी जी रचना का मर्म स्पष्ट करती सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु.
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किरदार गढ़े जाते हैं शिशु मन से निश्छलता से भरे जीवन मूल्यों की श्रेष्ठता स्थापित करने के लिये वहीं अधोमुखी मूल्यों की व्याख्या के लिये भी किरदार तलाशे जाते हैं। यथार्थपरक चिंतन परिवेश की सच्चाइयों का बे-लाग बखान करता हुआ दिशा तय करता है।
जवाब देंहटाएंरचना में गंभीर चिंतन उभरा है जो प्रवाह की सरलता में कहीं-कहीं अखरता है। आकर्षक शब्दावली रचना को सामान्य से उत्कृष्टता की ओर ले जाती है।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
सादर आभार आदरणीय रचना का विश्लेषण करती सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपका आशीर्वाद हमेशा बना रहे.
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Behad Sundar shbd sanyojan
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया
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अनीता, देश का नेतृत्व आज ऐसे ही महानुभावों के हाथ में है और आम भारतीय का भाग्य भी इन्हीं के हाथों में गिरवी है.
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर मार्गदर्शन हेतु.
हटाएंसादर प्रणाम
अवतरित हुवा है धरा पर👇
जवाब देंहटाएंये इस देश का दुर्भाग्य है कि प्रजातंत्र के नाम पर यहां अराजक तंत्र फैला हुआ है,
यहां कण-कण में शोणितबीज है
जो नष्ट नहीं होते बस दस गुणा, सौ गुणा, हजार गुणा बढ़ते जाते हैं ।
बहुत चिंतन परक रचना है
शब्द विन्यास भी समृद्ध है ,
आज ऐसी रचनाओं की जरूरत है और आप कुछ लोग बखूबी लिख भी रहे हो । साधुवाद तो है ही और एक सुझाव है ,
ऐसे सार्थक चिंतन परक विषयों पर जब भी लेखनी चलाओ ये रचनाएं जन-जन तक पहुंचे।
सादर नमन आदरणीया कुसुम दीदी जी सुन्दर एवं सारगर्भित समीक्षा हेतु. रचना का मर्म स्पष्ट सार्थक समीक्षा.
हटाएंअपना स्नेह और सानिध्य हमेशा बनाये रखे.
सादर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सादर आभार आदरणीया श्वेता दी पांच लिंकों के आनंद पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
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बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीया दीदी जी मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने हेतु.
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वक़्त की धुँध में धँसाता कर्म का धुँधला अतीत,
जवाब देंहटाएंस्वयं को कर परिष्कृत | ____ अनीता जी पूर्व की भांति इस रचना का भी कोई सानी नहीं ... बहुत खूब
सादर आभार आदरणीया दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर प्रणाम
स्वयं से वार्तालाप करती रचना ...
जवाब देंहटाएंपर क्या सच है ये भविष्य के गर्भ में ही छुपा है ...
सादर आभार आदरणीय सर सुन्दर समीक्षा हेतु.
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वाह बेहतरीन रचना।रचनात्मक चिंतन ।सराहनीय
जवाब देंहटाएंसादर नमन
सादर आभार आदरणीया दी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत ही सुंदर रचना । जितनी भी सराहना करें कम होगी। शुभकामनाएं स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सुन्दर समीक्षा हेतु.
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उत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीया पम्मी दी जी.
हटाएंसादर स्नेह
अद्भुत लेखन.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दी
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