शुक्रवार, दिसंबर 27

नाम औक़ात रख गया


                                
  स्वयं की सार्थकता सर्वोपरि,                                       
यही विकार हृदय को कलुषित कर गया, 
 प्रभाव की परिभाषा परिभाषित कर 
शब्दों में दृष्टिकोण को गढ़ते चले गये,  
प्रभुत्त्व के मद में डूबा यह दौर,   
विचारों की क्षीणता स्वयं के सीने में सजाये,   
अपने नज़रिये को औक़ात कह गये |

ज्ञान के गुणग्राही बहुतेरे मिले बाज़ार में,  
 अज्ञानता की ज़िंदगी आँखों में सिमट गयी,   
श्रम-स्वेद सीकर से थे लथपथ चेहरे, 
पाँव थे जिनके कंकड़ कुश कंटक से क्षत-विक्षत,  
सुरुर समाज का उभरा मेहनत को पूछते औक़ात रह गये | 

प्रीत के तलबगार हैं बहुत सृष्टि में,  
गुमान गुरुर का घऱ हृदय में कर गया    
नीम,पीपल,बरगद और बबूल के, 
गुण-स्वभाव के बखान हैं बहुत,   
भेदभाव का नासूर नयनों में  खटका,  
मानव  मानवीय मूल्यों को दरकिनार कर,  
दौलत और शोहरत में तलाशते औक़ात रह गये |

© अनीता सैनी 

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर....
    लिखते रहो |

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका
      सादर सस्नेह

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    2. लाज़वाब सृजन अनिता जी

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    3. सादर आभार आदरणीया दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      प्रणाम

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  2. वाह बहुत ही उच्च कोटि का लेखन.. किसी एक शब्द पर जब हम ध्यान केंद्रित करके अपने भाव विचार लिखते हैं तो उस वक्त. उस वक्त हमारी सारी रचना धर्मिता एक शब्द के अंदर आ जाती है और बहुत ही खूबसूरत रचना बनकर बाहर आती है कुछ ऐसा ही आज के आपकी इस #औकात कविता में मुझे नजर आ रही है ....बहुत ही बेहतरीन शब्दों का प्रयोग करके एक खूबसूरत रचना तैयार कर डाली.. आपको ढेर सारी बधाई

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    1. तहे दिल से आभार प्रिय अनु सुन्दर सार्थक और सारगर्भित समीक्षा हेतु. लेखन के लिए मिला था यह शब्द काफ़ी समय से मंथन कर रही थी आज आप से सराहना मिली बहुत अच्छा लगा, अपने स्नेह सहयोग बनाये रखे,
      बहुत सारा स्नेह आप को
      सुप्रभात

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  3. वाह!प्रिय सखी अनीता ,बहुत खूबसूरत कृति ।

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      प्रणाम

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  4. वाह अनीता जी बहुत सुंदर मानवीय मूल्यों की कदर करने वाले आधुनिक समाज में नहीं रहे....
    यथार्थ चित्रण

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  5. सुन्दर सार्थक और चिन्तनपरक रचना ..आपकी लेखन शैली अद्भुत है ।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.अपना स्नेह और सानिध्य यों ही बनाये रखे.
      सादर

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ३० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (30-12-2019) को 'ढीठ बन नागफनी जी उठी!' चर्चा अंक 3565 पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं…
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  8. सटीक चिंतन !
    बहुत शानदार रचना
    समय का आईना कितना धुंधला है पर कितना साफ है कि हम आखिर क्या औकात रखते हैं इस समय की बेढ़ग चाल में ।
    बहुत सुंदर।

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    1. सादर आभार आदरणीया कुसुम दीदी जी सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु. अपना आशीर्वाद यों ही बनाये रखे.
      सादर

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  9. भेदभाव का नासूर नयनों में खटक गया,
    मनुज मानवीय मूल्यों को दरकिनार कर,
    दौलत और शोहरत में तलाशता औक़ात रह गया
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन अनीता जी !
    सही कहा विचारों की क्षीणता और प्रभुत्व का मद ही है ये जो सारे गुणों को दरकिनार कर सिर्फ अमीरी गरीबी जैसे विकल्पों में किसी की औकात तय करते हैं...

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    1. सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी जी रचना का मर्म स्पष्ट करती सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपका स्नेह और सानिध्य यों ही बना रहे.
      सादर

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  10. वाह
    अदभुत लेखन
    सादर

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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