ओस की बूँदों ने अपनी असमंजसता,
सस्नेह सजल भोर को सुनायी,
रजत-कण के व्याकुल हृदय में कहाँ से,
अवाँछित ज्वाला सुलग आयी ?
जुगनू-सी चमकती थी चतुर्दिश,
प्रीत की उज्ज्वल हीरों-सी कनियाँ,
घास के घरोंदों पर रहती थीं बिखरीं,
शबनम की मोतियों-सी लड़ियाँ |
निशा के अंतिम पहर की पाहुन बन,
कभी नभ के तारों-सी जगमगायी,
फूल-पत्तों की अँजुरी में विराजित,
उपवन की शोभा सूर्याभा देख अकुलायी |
उपवन की शोभा सूर्याभा देख अकुलायी |
वृक्ष की टहनियों से झाँकती पल-पल,
प्रयत्नशील प्रभात के प्रथम पहर में मुस्कुरायी,
तुहिन-कण की बूँदें मेरी हथेली में समा,
सहर्ष स्वाभिमान से सृष्टि में यों हर्षायी |
©अनीता सैनी
सहर्ष स्वाभिमान से सृष्टि में यों हर्षायी |
©अनीता सैनी
वाह!प्रिय सखी ,बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी जी उत्साहवर्दिक समीक्षा हेतु.
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना सखी
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार बहना
हटाएंसादर
वृक्ष की टहनियों से झाँकती पल-पल,
जवाब देंहटाएंप्रयत्नशील प्रभात के प्रथम पहर में मुस्कुरायी,
तुहिन-कण की बूँदें मेरी हथेली में समा,
सहर्ष स्वाभिमान से सृष्टि में हर्षायी |
बहुत सुंदर प्रिय अनीता| सद्भाव्नों से परिपूर्ण सुंदर सृजन | नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई | आगत वर्ष तुम्हारे लिए विशेष उपलब्धियों और शुभता भरा हो यही कामना है |
सादर आभार आदरणीया रेणु दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंफूल-पत्तों की अँजुरी में विराजित,
जवाब देंहटाएंउपवन की शोभा सूर्याभा देख अकुलायी |
बहुत सुन्दर अनीता जी...
जी आभार
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-12-2019) को "भारत की जयकार" (चर्चा अंक-3566) पर भी होगी।--
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय चर्चामंच पर मेरी प्रस्तुति को स्थान देने के लिये.
हटाएंसादर
लाजवाब अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएंसादर