अनझिप पलकों की पतवार पर,
अधबनी शून्य में झाँकती,
मन-मस्तिष्क को टटोलती,
हृदय में सुगबुगाती सहचर्य-सी,
कविता कादम्बिनी-कद अपना तलाशती है |
तिमिरमय सूखे नयनों में,
अधखिले स्वप्न सजा,
जिजीविषा की सुरभि में सनी,
अँजुरी में नूपुर-से खनकते,
अश्रुओं के झुरमुट में उलझी-सी,
कविता कादम्बिनी-कद अपना तलाशती है |
सिसकती साँसों की जालियों में,
नवाँकुर खिलाने को प्रतिपल रहते थे आतुर,
अर्चना का सँबल बन सहलाती है,
धरा के दामन में न धँसी,
कविता कादम्बिनी-कद अपना तलाशती है |
प्रलय प्रतापी नहीं द्वेष की द्रोहाग्नि का,
करुण भाव मूर्छित हुए विध्वंस में,
फिर भी घने बादलों में पावस संग लहरायी,
ज्योत्सना की करुणा कली बन मुस्कुरायी,
सृष्टि के आँचल में प्रस्फुटित हो,
कविता कादम्बिनी-कद अपना तलाशती है|
© अनीता सैनी
अधबनी शून्य में झाँकती,
मन-मस्तिष्क को टटोलती,
हृदय में सुगबुगाती सहचर्य-सी,
कविता कादम्बिनी-कद अपना तलाशती है |
तिमिरमय सूखे नयनों में,
अधखिले स्वप्न सजा,
जिजीविषा की सुरभि में सनी,
अँजुरी में नूपुर-से खनकते,
अश्रुओं के झुरमुट में उलझी-सी,
कविता कादम्बिनी-कद अपना तलाशती है |
सिसकती साँसों की जालियों में,
नवाँकुर खिलाने को प्रतिपल रहते थे आतुर,
अर्चना का सँबल बन सहलाती है,
धरा के दामन में न धँसी,
कविता कादम्बिनी-कद अपना तलाशती है |
प्रलय प्रतापी नहीं द्वेष की द्रोहाग्नि का,
करुण भाव मूर्छित हुए विध्वंस में,
फिर भी घने बादलों में पावस संग लहरायी,
ज्योत्सना की करुणा कली बन मुस्कुरायी,
सृष्टि के आँचल में प्रस्फुटित हो,
कविता कादम्बिनी-कद अपना तलाशती है|
© अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी जी मेरी रचना को संध्या दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिये.
हटाएंसादर आभार
बहुत सुंदर सृजन ,हमेशा कुछ अलग सा ,सादर स्नेह सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-12-2019) को "आप अच्छा-बुरा कर्म तो जान लो" (चर्चा अंक-3539) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर स्थान देने के लिये.
हटाएंसादर आभार
बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार बहना सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर आभार
माधुर्य कविता का सुंदर गुण है. कविता का कद अब तक तय नहीं हो पाया है, अब तक विकासशील है क्योंकि श्रेष्ठता संभावना में समाहित होती है.
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन जो काव्य-सौंदर्य और भावबोध की सरसता को बख़ूबी अभिव्यक्त करता है.
बधाई एवं शुभकामनाएँ.
लिखते रहिए.
सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र जी सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपकी समीक्षात्म टिप्णियाँ सदैव मेरा मनोबल बढ़ाती है और मनोबल बढ़ाती है. आपका आशीर्वाद हमेशा यों ही बनाये रखे.
जवाब देंहटाएंसादर
अप्रतिम शब्द संयोजन और खूबसूरत सृजन 👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीया दीदी जी
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वाह!!प्रिय सखी अनीता ,अद्भुत सृजन ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीया दीदी जी
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