बुधवार, दिसंबर 4

देशकाल



पारिजात  के ऊँघते परिवेश में, 
लुढ़ककर कहाँ से दरिंदगी की सनक आ गयी, 
हृदय को बींधती भविष्य की किलकारी, 
 नागफ़नी के काँटों-सी कँटीली, 
साँसों में चुभने लगी |

पल रही अज्ञानता की पराकाष्ठा में, 
बेटियों की बर्बर नृशंस हत्याएँ, 
आदमज़ात का उफनता बहशीपन, 
मृत्यु मानवीय मूल्यों की होने लगी |

संस्कारों से लिपटे लुभावने, 
अमानवीय तत्त्वों का चढ़ा ख़ुमार, 
बिखरती भावनाओं को, 
पैरों से कुचलते, 
 दम  मैं  का  भरने लगे |

इस दौर का देशकाल,  
प्रगति की उड़ान से पर अपने कुतरने लगा, 
ग्लेशियर-से  पिघलते आदर्श, 
पतन के पूर्ण कगार पर बैठ, 
सुनामी-सी महत्वाकांक्षा में डूबने लगा |

© अनीता सैनी 

24 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3560 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मुझे स्थान देने के लिये.
      सादर

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  2. पल रही अज्ञानता की पराकाष्ठा में,
    बेटियों की बर्बर नृशंस हत्याएँ,
    आदमज़ात का उफनता बहशीपन,
    मृत्यु मानवीय मूल्यों की होने लगी |बहुत मार्मिक और सटीक रचना सखी।

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    1. सस्नेह आभार आदरणीया दी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  3. इस दौर का देशकाल,
    प्रगति की उड़ान से पर अपने कुतरने लगा,
    ग्लेशियर-से पिघलते आदर्श,
    पतन के पूर्ण कगार पर बैठ,
    सुनामी-सी महत्वाकांक्षा में डूबने लगा |
    बहुत खूब प्रिय अनिता | नये प्रतीक और बिम्बविधान से सजी और आज के दरकते नैतिक मूल्यों को आईना दिखाती रचना | हार्दिक शुभकामनाओं के साथ |

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    1. बहुत सारा आभार आदरणीया रेणु दीदी. आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया ने और बेहतर लिखने के लिये उत्साहित कर दिया है. आपका साथ सदैव बना रहे.
      सादर स्नेह

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  4. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 5 दिसंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सहृदय आभार आदरणीय पाँच लिंकों पर मुझे स्थान देने हेतु.
      सादर

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  5. वाह!!प्रिय सखी ,बहुत खूब!!बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ।

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    1. सस्नेह आभार आदरणीया दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  6. बहुत मार्मिक रचना !
    आइए ! हम सब मिलकर कहें -
    'प्रियंका हम शर्मिंदा हैं, इस भारत में, अब भी ज़िन्दा हैं !'

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    1. सादर आभार आदरणीय सर. आपकी आशीर्वचन जैसी प्रतिक्रिया मेरी रचना का भाव विस्तार कर रही है.
      सादर प्रणाम आदरणीय सर.

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  7. सुन्दर लिखा है ऐसे ही लिखते रहो |

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  8. .. बहुत ही प्रभावशाली कविता लिखी आपने वाकई में आज के समाज में इस तरह की रचनाओं की जरूरत है यह हमें आइना दिखा रही है कि हम किस ओर जा रहे हैं भले ही वर्तमान में हुई अमानवीय घटना कविता का केंद्र बिंदु रही होगी लेकिन इसमें निहित मूल्य बहुत गहराई तक लेकर जा रहे हैं
    बेटियों की नृशंस हत्याएं
    ग्लेशियर से पिघलते आदर्श
    यह चंद पंक्तियां मानो कविता की जान है
    यूं ही लिखा कीजिए और आपको इस रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई
    और मेरी ओर से भी प्रियंका रेड्डी को श्रद्धांजलि

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    1. बहुत-बहुत आभार प्रिय अनु. आपकी टिप्पणी रचना की ख़ूबियों को खोजकर मुझे अपना ध्यान उन बिंदुओं पर केन्द्रित करने को प्रेरित करती है. यों ही साथ बनाये रखना.
      बहुत सारा स्नेह

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  9. उत्तम शब्द संयोजन के साथ संवेदनशील हृदय की पीड़ा

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    1. सादर आभार आदरणीया सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर

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  10. समाज का ऐसा स्वरूप देख हर दिल द्रवित हैं ,मार्मिक रचना बहन

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीया कामिनी दी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  11. बेटियों की बर्बर नृशंस हत्याएँ,
    आदमज़ात का उफनता बहशीपन,
    मृत्यु मानवीय मूल्यों की होने लगी |
    मर्मस्पर्शी भावनाओं की अभिव्यक्ति.. मन बहुत व्यथित है इस तरह के वातावरण और घटनाओं से । हृदयस्पर्शी सृजन ।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी जी सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु. अपना स्नेह और सानिध्य बनाये रखे.
      सादर

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  12. पल रही अज्ञानता की पराकाष्ठा में,
    बेटियों की बर्बर नृशंस हत्याएँ,
    आदमज़ात का उफनता बहशीपन,
    मृत्यु मानवीय मूल्यों की होने लगी
    सटीक मार्मिक हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।

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    1. सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

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