सुनो प्रिये !
तुम यों ही मुस्कुराते रहना
बन्धुत्त्व का गान
गुनगुनाते रहना तुम अहर्निश
मिटाना न मन की सादगी
चमन में बहार बन खिलखिलाते रहना
चमन में बहार बन खिलखिलाते रहना
प्रेम दीप हृदय में
ढलती साँझ तुम यों ही जलाते रहना,
जला
जीवन में ज्योति प्रीत की
मैं अंतिम
साँस तक धधकूँगी
निर्वहन
करुँगी दायित्व तुम्हारे
कुंठित समाज की कुंठा सहूँगी
शब्द-बाण से न आहत
अपने मन को करुँगी
अडिग रहूँगी
अडिग रहूँगी
ताड़ के पेड़-सी
वह स्वाभिमान है मेरा
तुम
ग़ुरुर का ग़ुबार न समझना,
सुनो प्रिये !
तुम समझ से न समझाना
बुद्धि को अपनी
तुम नासमझ रहना
बदल रही है हवा देश की
तुम सीने पर
फ़सल राजनीति की
न लहराना,
जब याद
सताये अपनों की
तुम वही
प्रीत पहन लौट आना
खटकाना चौखट
ख़ामोशी से
हड़बड़ाहट न दहलीज़ पर दर्शाना
खोयी हैं फ़ज़ाएँ स्वप्न में
निशा को नींद से तुम न जगाना,
सुनो प्रिये !
तुम विचलित मन न करना
जल रहा है
द्वेष में हृदय जनमानस का
रोष टपक रहा है आँखों से
पड़े है ज़ुबा पर
छाले तमाम ख़्वाहिशों के
तुम प्रीत की बातें न करना
ढो न पाओगे स्वार्थ का लवादा
सुनो प्रिये !
तुम ख़ुद से ख़ुद की बातें करना |
©अनीता सैनी
बेहतरीन रचना सखी 👌👌
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार बहना
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी जी मेरी रचना को मुखरित मौन पर स्थान देने के लिये.
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बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना ,सादर स्नेह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कामिनी दीदी जी
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वाह! खूबसूरत प्रेम से परिपूर्ण कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
हटाएंसादर
वाह! उच्चतम भावों का सुंदर काव्य, जहां समर्पण और विश्वास का सुंदर संगम है प्रिय के लिए ,अनुगूंज है प्रभात फेरी सी एक हृदय से दूसरे हृदय तक।
जवाब देंहटाएंअनुपम, अभिनव , अभिराम।
सादर आभार आदरणीया दी जी मेरी कृति को सुन्दर समीक्षा से नवाज़ने हेतु. निशब्द रह जाती हूँ आपका अपार स्नेह देख.
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अहा! बहुत शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
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जब याद
जवाब देंहटाएंसताये अपनों की
तुम वही
प्रीत पहन लौट आना
खटकाना चौखट
ख़ामोशी से
हड़बड़ाहट न दहलीज़ पर दर्शाना
खोयी हैं फ़ज़ाएँ स्वप्न में
निशा को नींद से तुम न जगाना,
बहुत ही सुन्दर... बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
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शब्द-बाण से न आहत
जवाब देंहटाएंअपने मन को करुँगी
अडिग रहूँगी
ताड़ के पेड़-सी
वह स्वाभिमान है मेरा
तुम
ग़ुरुर का ग़ुबार न समझना,
वाह ! लाजवाब...,स्वाभिमान की बात यूं बयां करना..,बहुत सुन्दर लगा ।
सादर आभार आदरणीया मीना दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (09-12-2019) को "नारी-सम्मान पर डाका ?"(चर्चा अंक-3544) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिये.
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बहुत शानदार Free Song Lyrics
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
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सुनो प्रिये !
जवाब देंहटाएंतुम यों ही मुस्कुराते रहना
बन्धुत्त्व का गान
गुनगुनाते रहना तुम अहर्निश
मिटाना न मन की सादगी
चमन में बहार बन खिलखिलाते रहना
प्रेम दीप हृदय में
ढलती साँझ तुम यों ही जलाते रहना,
बहुत सुन्दर..... |
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
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