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मंगलवार, दिसंबर 10

सर्द हवाएँ



सर्द हवाएँ चली मंगलबेला में,  
 ओस से आँचल सजाने को,   
ललिता-सी लहरायीं निशा संग, 
शीतल चाँदनी छिटकाने को |

समेटे थी यौवन चिरकाल से, 
 खिला कुँज शेफालिका-सा,  
 झूल रही झूला नील गगन में, 
ख़ुशनुमा फुहार बरसाने को |

पुनीत-सी पीर जगा जनमानस में, 
उलीचती अंतरमन के आँगन को,   
ठहरी एक पल ठिठुरते पात पर, 
भूला-बिसरा कल दर्शाने  को |

कथा-व्यथा छिपा हृदय में,   
ज़िक्र ज़ेहन में जब यह दोहराया,  
   परदेशी पाखी लौटे  देश में,   
कुछ कोमल एहसास चुराने को |

नेह-गेह का उमड़ा शीतल झोंका,   
किसलय-सी प्रीत  पनपाने को, 
 लोक की मरजाद ठहरा पलकों पर, 
 थाह शीतलता की जताने को, 
सर्द हवाएँ चली मंगलबेला में,   
 ओस से आँचल सजाने को |

© अनीता सैनी 

15 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ....... ,.....11 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीया पम्मी दीदी जी पाँच लिंकों पर मेरी रचना को स्थान देने के लिये.
      सादर

      हटाएं
  2. काव्यात्मक प्रवाह लिए मन के अहसासों की कोमल अभिव्यक्ति ।
    सुंदर शब्द चयन ।
    अप्रतिम लेखन।

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया दीदी जी सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा हेतु. आपका स्नेह और सानिध्य यों ही बना रहे.
      सादर

      हटाएं
  3. बहुत ही मनभावनी सरस रचना...।
    कथा-व्यथा छिपा हृदय में,
    ज़िक्र ज़ेहन में जब यह दोहराया,
    परदेशी पाखी लौटे देश में,
    कुछ कोमल एहसास चुराने को |
    वाह!!!

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  4. कमाल का लेखन है आपका अनिता जी

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी जी
      सादर

      हटाएं
  5. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 11-06-2021) को "उजाले के लिए रातों में, नन्हा दीप जलता है।।" (चर्चा अंक- 4092) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  6. शब्द सौंदर्य की मनभावन छटा!

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  7. अनुपम छटा बिखेरती सुन्दर रचना।

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  8. समेटे थी यौवन चिरकाल से,
    खिला कुँज शेफालिका-सा,
    झूल रही झूला नील गगन में,
    ख़ुशनुमा फुहार बरसाने को |

    लाजबाब सृजन प्रिय अनीता जी

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  9. कथा-व्यथा छिपा हृदय में,
    ज़िक्र ज़ेहन में जब यह दोहराया,
    परदेशी पाखी लौटे देश में,
    कुछ कोमल एहसास चुराने को |

    प्रकृति के निश्छल चमन से रिसते मधु जैसा अहसास सुन्दर मनभावन रचना


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  10. बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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