चाँद सितारों से पूछती हूँ हाल-ए-दिल,
ज़िंदा जल रहे हो क्यों परवाने की तरह !
तड़प प्रीत की संबल उजाला तो नहीं,
क्यों थकान मायूसी की तुम पर आती नहीं।
हार-जीत का इसे न खेल समझो,
अबूझ पहेली बन गयी है ज़िंदगी,
शमा-सी जल रही हैं साँसें सफ़र में,
उम्मीद की सूरत नज़र आती नहीं।
शोहरत में शुमार होती हैं ख़ुशियाँ,
क्यों चैन एक पल तुम्हें आता नहीं,
मुस्कुरा रहे हो इस तरह क्या तुम्हें,
अपनों की याद किसी बात पर आती नहीं।
जिस पड़ाव पर चल रही है ज़िंदगी,
उस डगर पर साँझ का छोर नज़र आता नहीं,
अपनों में भी अपनेपन की न महक मिलती,
प्रभात में भी उजियारे की ख़बर आती नहीं।
©अनीता सैनी