वे सजगता की सीढ़ी से,
क़ामयाबी के पायदान को पारकर,
अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से,
सुख का आयाम शोषण को बताने लगे।
सुन्न हो रहे दिल-ओ-दिमाग़,
दर्द में देख मानव को मानव अट्टहास करता,
सूख रहा हरसिंगार-सा हृदय,
पारस की चाह में स्वयं पत्थर-से बनने लगे।
मूक-बधिर बनी सब साँसें,
सफ़ेदपोशी नींव पूँजीवाद की रखने लगी,
आँखों में झोंकते सुन्दर भविष्य की धूल,
अर्जुन-वृक्ष-सा होगा परिवेश स्वप्न समाज को दिखाने लगे।
आत्मता में अंधे बन अहं में डूबते,
ख़ामोशी से देते बढ़ावा निर्ममता को ,
आत्मकेन्द्रित ऊषा की चंचल अरुणावली से,
जग का आधार सींचने लगे।
सौंदर्यबोध के सिकुड़ रहे हों पैमाने,
दूसरों का भी हड़पा जा रहा हो आसमां,
तब खुलने देना विवेक के द्वार,
ताकि पुरसुकून की साँस मानवता लेने लगे।
© अनीता सैनी
क़ामयाबी के पायदान को पारकर,
अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से,
सुख का आयाम शोषण को बताने लगे।
सुन्न हो रहे दिल-ओ-दिमाग़,
दर्द में देख मानव को मानव अट्टहास करता,
सूख रहा हरसिंगार-सा हृदय,
पारस की चाह में स्वयं पत्थर-से बनने लगे।
मूक-बधिर बनी सब साँसें,
सफ़ेदपोशी नींव पूँजीवाद की रखने लगी,
आँखों में झोंकते सुन्दर भविष्य की धूल,
अर्जुन-वृक्ष-सा होगा परिवेश स्वप्न समाज को दिखाने लगे।
आत्मता में अंधे बन अहं में डूबते,
ख़ामोशी से देते बढ़ावा निर्ममता को ,
आत्मकेन्द्रित ऊषा की चंचल अरुणावली से,
जग का आधार सींचने लगे।
सौंदर्यबोध के सिकुड़ रहे हों पैमाने,
दूसरों का भी हड़पा जा रहा हो आसमां,
तब खुलने देना विवेक के द्वार,
ताकि पुरसुकून की साँस मानवता लेने लगे।
© अनीता सैनी
लाखों के सपनों को कुचल कर ही उनका एक सपना पूरा होता है.
जवाब देंहटाएंजिस महल की बुनियाद में मुर्दें न दफ़न हों, वो आसमान की बुलंदियों को नहीं छू सकता !
सादर आभार आदरणीय सर आपका मार्गदर्शन हृदय को उत्साह से भर देता. अपना आशीर्वाद बनाये रखे.
हटाएंप्रणाम
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.01.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3582 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर मुझे स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
समकालीन सामाजिक चुनौतियों पर प्रकाश डालती विचारोत्तेजक रचना जो अंत में विवेकशील होने का आग्रह करती हुई सकारात्मक पहल की ओर प्रेरित करती है। सफ़ेदपोश अब ढीठपने की हदें पार चुके तब हैं ज़रूरी है सामाजिक व्यवहार में चिंतन की उत्कृष्ट भावभूमि तैयार हो और भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो।
जवाब देंहटाएंवाक्यांश संशोधन-
हटाएंहदें पार चुके तब हैं = हदें पार कर चुके हैं तब
सादर आभार आदरणीय सर सुन्दर एवं रचना का मर्म स्पष्ट करती सारगर्भित समीक्षा हेतु. अपना आशीर्वाद बनाये रखे.
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सादर आभार श्वेता दीदी मेरी रचना का मान बढ़ाने हेतु.
हटाएंसादर
सुंदर सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंअतिक्रमियों का बोलबाला है ,नींव के अंदर क्या दबा कोई नहीं देखता, शोषण की नींव के ऊपर हवेली बनाना स्वार्थ का खेल है, ।समय परक रचना।
बहुत सुंदर।
सादर आभार आदरणीया दीदी जी सुन्दर एवं सारगर्भित समीक्षा से मेरी रचना को नवाज़ने हेतु.
हटाएंसादर स्नेह
आत्मता में अंधे बन अहं में डूबते,
जवाब देंहटाएंख़ामोशी से देते बढ़ावा निर्ममता को ,
आत्मकेन्द्रित ऊषा की चंचल अरुणावली से,
जग का आधार सींचने लगे।
बहुत सुन्दर सार्थक समसामयिक सृजन
वाह!!!
सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत सुंदर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी जी
हटाएंसादर
लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर नमन आदरणीय
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