अविज्ञात मलिन आशाओं को समेटकर,
अनर्गल प्रलापों से परे,
विसंगतियों के चक्रव्यूह तोड़कर,
जिजीविषा की नूतन इबारत,
मूल्यों को संचित कर वह लिखना चाहती है।
भोर में तन्मयत्ता से बिखेरती पराग,
विभास से उदास अधूरी कल्पना छिपाती,
सुने-अनसुने शब्दों को चुन प्रसून महकाती,
नुकीले कंटकों को सहते हुए वह मुस्कुराना चाहती है।
कोहरे का कौतुहल मुठ्ठी में छिपा हिलमिल,
प्रीत गीत गाती ग़लीचे में धूप को बातों में उलझाती,
शबनम की उलझन मख़मली घास से सुन,
नेह को निथार कर वह सँवरना चाहती है।
व्याकुल हृदय मुख पर आच्छादित भावशून्यता का
अधीर आवरण गढ़े
सुगढ़ अर्थवान शब्दों की परवाज़ लिये,
जतन की आवाज़ बन वह जीना चाहती है।
©अनीता सैनी
सुगढ़ अर्थवान शब्दों की परवाज़ लिये,
जवाब देंहटाएंजतन की आवाज़ बन वह जीना चाहती है
बहुत खूब ......
सादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
कोहरे का कौतुहल मुठ्ठी में छिपा हिलमिल,
जवाब देंहटाएंप्रीत गीत गाती ग़लीचे में धूप को बातों में उलझाती
वाह!!!
लाजवाब शब्दसंयोजन...
बहुत ही उत्कृष्ट सृजन
सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
जिजीविषा का जीवंत चित्रण करती रचना में जीवन के प्रति असीम अनुराग अभिव्यक्त हुआ है. जीवन ख़ूबसूरत है अतः उसके प्रति दृष्टिकोण भी प्राकृतिक गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए.
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना.
सादर नमन आदरणीया रविंद्र जी सर सुन्दर एवं सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अनुराधा दीदी
हटाएंसादर
आश्चर्यजनक शब्द शिल्प। कहीं कहीं गूढ़ार्थ को समेटे सुकोमल भावों की अभिव्यक्ति। सुंदर !!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया मीना दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु. अपना स्नेह बनाये रखे.
हटाएंसादर