विपदा में बैठी उस माँ की फ़िक्र हूँ,
महक ममता की लहू में बहूँ मैं,
बेचैन बाबुल के दिल की दुआ हूँ,
यादों में झलकता नयन-नीर हूँ मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
भाई से बिछड़ी बहन की राखी मैं,
स्नेह-बंधन में बँधी नाज़ुक कड़ी हूँ,
बचपन खिला वह आँगन की मिट्टी मैं,
गरिमा पिया-घर की बन के सजी हूँ,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
प्रीत में व्याकुल मन की सदा हूँ,
ख़ुशी की लहर विरह की तपिश मैं,
सावन-झड़ी में मिट्टी की ख़ुशबू हूँ,
रिश्तों में झलके वो ओझल कला मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
ग्वाले के गीतों में गाँव की शोभा हूँ,
प्रगति में ढलती रौनक शहर की मैं,
पतझड़ में उड़ती शुष्क पवन हूँ,
सुकूँ का हूँ झोंका तपन रेत की मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
थाल पूजा का कर-कमल की मौली हूँ,
कलश-शीश सजी दूब-रोली मैं,
चाँद निहारते चातक-सी आकुल हूँ
पावस ऋतु में सतरंगी आभा मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं... हवा हूँ...
©अनीता सैनी
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
भाई से बिछड़ी बहन की राखी मैं,
स्नेह-बंधन में बँधी नाज़ुक कड़ी हूँ,
बचपन खिला वह आँगन की मिट्टी मैं,
गरिमा पिया-घर की बन के सजी हूँ,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
प्रीत में व्याकुल मन की सदा हूँ,
ख़ुशी की लहर विरह की तपिश मैं,
सावन-झड़ी में मिट्टी की ख़ुशबू हूँ,
रिश्तों में झलके वो ओझल कला मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
ग्वाले के गीतों में गाँव की शोभा हूँ,
प्रगति में ढलती रौनक शहर की मैं,
पतझड़ में उड़ती शुष्क पवन हूँ,
सुकूँ का हूँ झोंका तपन रेत की मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
थाल पूजा का कर-कमल की मौली हूँ,
कलश-शीश सजी दूब-रोली मैं,
चाँद निहारते चातक-सी आकुल हूँ
पावस ऋतु में सतरंगी आभा मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं... हवा हूँ...
©अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 31 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीया दीदी जी मेरी रचना को मंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
लाजवाब रचना...बहुत ही सुंदर 👌👌👌
जवाब देंहटाएंबधाई शानदार सृजन की 💐💐💐
सादर आभार प्रिय सखी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर उत्कृष्ट सृजन
थाल पूजा का कर-कमल की मौली हूँ,
कलश-शीश सजी दूब-रोली मैं,
क्या बात....
बहुत लाजवाब।
चाँद निहारे चातक-सी आकुल हूँ
पावस ऋतु में सतरंगी आभा मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं... हवा हूँ...
व
सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
स्वयं के समाज, रिश्तों व प्रकृति के प्रति समर्पण को भावप्रवणता के साथ प्रस्तुत करती रचना. सरल शब्दावली में भाव-गाम्भीर्य का निहित होना रचना को प्रभावशाली एवं रोचक बनाता है.
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सुन्दर एवं सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंआशीर्वाद बनाएँ रखे.
सादर
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जनाब
हटाएंसादर
बहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी जी
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (31-01-2020) को "ऐ जिंदगी तेरी हर बात से डर लगता है"(चर्चा अंक - 3597) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता लागुरी 'अनु '
सस्नेह आभार प्रिय अनु चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुंदर ,सभी भावों को समेटे हुए
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं
सस्नेह आभार सखी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
विपदा में बैठी उस माँ की फ़िक्र हूँ,
जवाब देंहटाएंमहक ममता की लहू में बहूँ मैं,
बेचैन बाबुल के दिल की दुआ हूँ,
यादों में झलकता नयन-नीर हूँ मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
...बेहतरीन रचना। आपकी निरंतरता और लेखन की परिपक्वता सराहनीय है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया अनीता जी।
सहृदय आभार आदरणीय उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, बेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीया दीदी.
हटाएंसादर
सभी मन के कोमल भावों को हवा के सुंदर कलापों से गूँथ
जवाब देंहटाएंअहसास की माला पिरोकर आपने बहुत सुंदर सृजन किया है ।
बहुत बहुत सुंदर ।
अभिनव ।
सहृदय आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
वाह!!सखी ,हवा के इतने रूप !!बहुत ही सुंदर ,सजीली सी रचना ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
प्रीत में व्याकुल मन की सदा हूँ,
जवाब देंहटाएंख़ुशी की लहर विरह की तपिश मैं,
सावन-झड़ी में मिट्टी की ख़ुशबू हूँ,
रिश्तों में झलके वो ओझल कला मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ.
बहुत ही सुंदर सुंदर ,लाज़बाब सृजन अनीता जी ,सादर स्नेह
सहृदय आभार आदरणीय कामिनी दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर