व्यवस्था के नाम पर,
दम तोड़तीं टूटीं खिड़कियाँ,
दास्तां अपनी सुना रहीं,
दम तोड़तीं टूटीं खिड़कियाँ,
दास्तां अपनी सुना रहीं,
विवशता दर्शाती चौखट,
दरवाज़े को हाँक रही,
दरवाज़े को हाँक रही,
ख़राब उपकरणों की सजावट,
शोभा बेंच की बढ़ा रही,
शोभा बेंच की बढ़ा रही,
लापरवाही की लीपापोती,
प्रचार में हाथ स्टाफ़ का बढ़ा रही,
प्रचार में हाथ स्टाफ़ का बढ़ा रही,
ऑक्सीजन के ख़ाली सिलेंडर,
उठापटक में वक़्त ज़ाया कर रहे,
उठापटक में वक़्त ज़ाया कर रहे,
इमरजेंसी वार्ड की नेम प्लेट,
रहस्य अपना छिपा रही,
मरीज़ों की विवशता तितर-बितर,
सर्द हवा में गरमाहट तलाश रही,
सर्द हवा में गरमाहट तलाश रही,
पलंगों का अभाव,
मरीज़ों के चेहरे बता रहे,
मरीज़ों के चेहरे बता रहे,
चूहे-सुअर आवारा पशुओं का दाख़िला,
बिन पर्ची सुनसान रात में हो रहा,
राजनेता सेक रहे,
सियासत की अंगीठी पर हाथ,
पूस की ठिठुरती ठंड में,
नब्ज़ में जमता नवजात रुधिर,
ठिठुरन से ठण्डी पड़ती साँसें,
मासूमों की लीलती जिंदगियाँ,
राजस्थान के शहर कोटा में,
अपंग मानसिकता का,
अधूरा कलाम सर्द हवाएँ सुना रहीं।
© अनीता सैनी
राजनेता सेक रहे,
सियासत की अंगीठी पर हाथ,
पूस की ठिठुरती ठंड में,
नब्ज़ में जमता नवजात रुधिर,
ठिठुरन से ठण्डी पड़ती साँसें,
मासूमों की लीलती जिंदगियाँ,
राजस्थान के शहर कोटा में,
अपंग मानसिकता का,
अधूरा कलाम सर्द हवाएँ सुना रहीं।
© अनीता सैनी
गोरखपुर या कोटा हो,
जवाब देंहटाएंपर्स हमारा, मोटा हो !
मरने वाले मरा करें,
लाभ, कभी ना खोटा हो,
सादर आभार आदरणीय सर सही कहा आपने स्वयं स्वार्थ सिद्ध सर्व परी मन का मंत्र बन गया है. इंसानियत दिखावे की रह गयी है पल-पल बदलते मुखौटे हैं.
हटाएंउत्साहवर्धन हेतु सहृदय आभार
सादर
बच्चों की सरकारी अस्पताल में मौत अब सामान्य बात हो गयी है. सरकारी तंत्र की विफलता जानबूझकर दर्शायी जाती है ताकि निजीकरण जैसे पूँजीवादी विचार की जड़ें और अधिक गहरी हो सकें. एक ओर सरकारों के पास फंड की कमी है वहीं दूसरी ओर सरकारों के अनावश्यक ख़र्चे और अति भव्यतापूर्ण कार्यक्रम संपन्न होने के लिये पैसा कहाँ से आता है?
जवाब देंहटाएंआक्रोशभरी व्यंग्यपूर्ण रचना.
सही कहा आदरणीय सर आपने मूल्यों का होता पतन पत्तनों मुखी होता समाज विनाश की और अग्रसर हो रहा है सार्थक समीक्षा हेतु सहृदय आभार आपका. आपका आशीर्वाद यों ही बनाये रखे.
हटाएंसादर
करारा व्यंग्य किया है सखी अनीता जी आपने । कोटा ही क्या ,सरकारी अस्पतालों में ये सब सामान्य सी बात हो गई है । पता नहीं सभीको सरकारी फंड से अपने घर भरने होते हैं ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आदरणीया दीदी जी. सही कहा आपने आज सभी सरकारी अस्पतालों का यही हाल है सभी ने स्वार्थ का लवादा लाद रखा है. स्नेह बनाये रखे
हटाएंसादर
सभी जगह के सरकारी अस्पतालों की यही हालत है
जवाब देंहटाएंकोटा की समसामयिक घटना पर तीक्ष्ण व्यंग करती लाजवाब रचना।
चूहे-सुअर आवारा पशुओं का दाख़िला,
बिन पर्ची सुनसान रात में हो रहा,
राजनेता सेक रहे,
सियासत की अंगीठी पर हाथ,
सियासत के मूर्त रूप का अच्छा खाका खींचा है आपने...
सादर आभार आदरणीया दीदी जी सुन्दर समीक्षा हेतु.अपना स्नेह और सानिध्य बनाये रखे.
हटाएंसादर स्नेह
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06-01-2020) को 'मौत महज समाचार नहीं हो सकती' (चर्चा अंक 3572) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिये.
हटाएंसादर
७३ साल बाद भी देश में ऐसा है ... शर्मनाक है ...
जवाब देंहटाएंजिस देश के डोक्टर आज पूरे विश्व में डंका बजा रहे हैं ... और अपने ही देश में ... शर्म की बात है ...
सही कहा आदरणीय आपने.... फिर भी मानव कब मानने वाला है.
हटाएंसादर
किसको दिल का दर्द बताऊ
जवाब देंहटाएंआंख मे आंसू रोज
गूंगा अंधा बहरा राजा
बच्चे मरते रोज
बेशर्मी का ओढ़ लबादा
उड़ा रहा है मोज
आभार आदरणीय
हटाएंसादर
प्रभावी और सच को उजागर करता सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर