गाजर घास / कांग्रेस घास
वे स्वतः ही पनप पल्लवित हो जाते हैं,
गंदे गलियारे मिट्टी के ढलान पर,
अधुनातन मानव-मन की बलवती हुई,
अनंत अनवरत आकांक्षा की तरह ।
रेगिस्तान-वन खेत-खलिहान घर-द्वार,
मानवीय अस्तित्त्व से जुड़ी बुनियादी तहें,
इंसानी साँसों को दूभर बनाते अगणित बीज,
गाजर घास बन गयी है अब मानवता की खीझ।
विनाश-तंज़ प्रभुत्त्व का सुप्त-बोध लिये,
सीमाहीन विस्तार की चपल चाह सीये,
सहज सभ्य शिष्ट जीवन की गरिमा नष्ट करने,
ढहाने सभ्यता की कटी-छँटी बाड़ सरीखी।
प्रकृति की आत्मचेतना का करता अंकन मानव,
समाज में खरपतवार का अतिक्रमण-सा तनाव,
चटक-चाँदनी सुदर्शन डील-डौल से नामकरण,
विहँसती वसुंधरा पर मँडराते ख़तरों से उत्पन्न वेदना।
पथरीले पथ पर आषाढ़ की असह भभक लिये,
विकृत शुद्ध पवन परिवेश में है आच्छादित,
बेचैन मानवता हुई पलायन करते मानव मूल्य,
अन्तःस्मित,अन्तःसंयत का सोखता भाव।
©अनीता सैनी
निःशब्द करती हुई रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
जरा हटकर, बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह!सखी ,बेहतरीन👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 20 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी संध्या दैनिक में मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-02-2020) को "मन का मैल मिटाओ"(चर्चा अंक -3618) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
अनीता लागुरी"अनु"
सादर आभार प्रिय अनु चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
गाजर घास एक भयंकर खरपतवार के रूप में भारत में अब विकट समस्या है। अमेरिका से आयातित गेंहूँ के साथ आये पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस के बीज से उत्पन्न पौधे को हम 'गाजर घास' के नाम से जानते हैं क्योंकि इसकी पत्तियाँ गाजर के पौधे जैसी होतीं हैं। इसके सफ़ेद फूल दूर से चाँदनी जैसे प्रतीत होते हैं अतः इसे 'चटक चाँदनी' भी कहा जाता है। चूँकि गाजर घास वाला गेंहूँ काँग्रेस शासनकाल में आयातित हुआ तो लोगों ने व्यंग्यात्मक लहजे में आक्रोश के साथ इसका नामकरण 'काँग्रेस घास' भी कर दिया।
जवाब देंहटाएंआज भारत में श्वाँस संबंधी रोगों एवं एलर्जी का मुख्य कारण गाजर घास है जिसकी दवाइयाँ मुख्यतः अमेरिका से ही आयात की जातीं हैं।
कविता ने एक उपेक्षित विषय को गंभीरता के साथ प्रकाशित किया है जिसमें भावप्रवणता का पुट पीड़ित जनों की पीड़ा को स्पष्ट करता हुआ प्रकृति और मनुष्य के बीच संबंधों पर सवाल उठाता है।
सादर आभार आदरणीय सर रचना पर विस्तृत टिप्पणी के माध्यम से रचना का भाव विस्तार करने के लिये. आपकी टिप्पणी में जुड़ी अतिरिक्त जानकारी से रचना का मान बढ़ा है.
हटाएंस्वतः ही पनप पल्लवित हो जाते हैं,
जवाब देंहटाएंगंदे गलियारे मिट्टी के ढलान पर,
अधुनातन मानव-मन की बलवती हुई,
अनंत अनवरत आकांक्षा की तरह ।
गाजर घास और मन की असीम आकांक्षा...
वाह!!!
कहते हैं आकांक्षा ही दुख का कारण होती हैं असंतुष्टि का कारण बनती हैं अब जब मानव की आकांक्षाएं अनंत होती जा रही हैं और मेहनत शून्य तो दुख तो लाजिमी है न.......।
गाजर घास की अधिकता अनंतता एवं अनुपयोगिता
की तुलना निठल्ले मनुष्य की अनवरत बढ़ती आकांक्षा से.....
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन
सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी रचना की मोहक व्याख्या और आपकी मर्म स्पष्ट करती टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साह देती है.
हटाएंआपका स्नेह और समर्थन यों ही मिलता रहे.
एक वेहतरीन विषय से रूबरू करता लाजबाब सृजन अनीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...,सादर स्नेह
सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
निःशब्द करती बेहतरीन रचना आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय आँचल उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर