सूरज उगने वाला है,
हार मान क्यों बैठा राही,
तम के बाद उजाला है।
तम के बाद उजाला है।
दूर नहीं है मंज़िल राही,
कुछ डग का खेल निराला है,
ढल जायेगी बोझिल रात्रि,
कर्म नश्वर नूतन उजाला है।
बंजर में कुसुम कुमोद खिला,
धरा ने संबल संभाला है,
चीर तिमिर की छाती को अब,
सूरज उगने वाला है।
अंकुर प्रेम के हो पल्लवित,
सृष्टि का करुण उजाला है,
सृष्टि का करुण उजाला है,
शरद चाँदनी हो आँगन में,
समय अनुराग निराला है।
नमी बंधुत्त्व की हो मन में,
हृदय स्वप्न गूँथी माला है,
चीर तिमिर की छाती को अब,
सूरज उगने वाला है।
©अनीता सैनी
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 28 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी
हटाएंप्रणाम
वाह!!!
जवाब देंहटाएंहार मान क्यों बैठा राही,
तम के बाद उजाला है।
बहुत ही सुन्दर प्रेरक....
लाजवाब नवगीत।
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर स्नेह
महादेवी वर्मा की कवितायें याद आ रही हैं आपकी कविताओं को पढ़कर... अनीता जी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु. स्नेह आशीर्वाद यों ही बनाये रखे.
हटाएंसादर प्रणाम
दूर नहीं है मंज़िल राही,
जवाब देंहटाएंकुछ डग का खेल निराला है,
ढल जायेगी बोझिल रात्रि,
कर्म नश्वर नूतन उजाला है।
बहुत सुन्दर..... अनीता |
बहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसादर
अंकुर प्रेम के हो पल्लवित,
जवाब देंहटाएंसृष्टि का करुण उजाला है,
शरद चाँदनी हो आँगन में,
समय अनुराग निराला है।
आशा और विश्वास से भरा सुंदर नवगीत प्रिय अनीता। ये विधा तुम्हारे लेखन पर सही बैठती है ,इसमें खूब आगे बढती जाओ मेरी यही कामना है। 💐💐💐💐😊
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआप अच्छे नवगीत लिखने लगे हैं ।
सादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंआप का आशीर्वाद यों ही बना रहे.
सादर