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शनिवार, फ़रवरी 29

नागफनी



  

नितांत निर्जन नीरस 
सूखे अनमने 
विचार शून्य परिवेश में 
पनप जाती है नागफनी,  
जीवन की तपिश
 सहते हुए भी,  
मुस्कुरा उठती है, 
महक जाते हैं 
देह पर उसके भी,  
आशा के सुन्दर सुमन,  
स्नेह सानिध्य की, 
नमी से,  
रहती है वह भी सराबोर,  
मरु की धूल-धूसरित आँधी में, 
अनायास ही, 
 खिलखिला उठती है, 
अपने भीतर समेटे, 
 अथाह मानवीय मूल्यों का, 
 सघन सैलाब,  
बाँधती है शीतल पवन को,  
सौगंध अनुबंध के बँधन में,  
विश्वास का ग़ुबार, 
 लू की उलाहना, 
जड़ों को करती है और गहरी, 
जीवन जीने की ललक में,  
 पनप जाते है 
  काँटे कोमल देह पर

©अनीता सैनी 

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 29 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी संध्या दैनिक में मेरी रचना को स्थान देने के लिये.
      सादर

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  2. महक जाते हैं
    देह पर उसके भी,
    आशा के सुन्दर सुमन,
    स्नेह सानिध्य की
    बहुत खूब ,अनीता जी ,काँटों सा जीवन होते हुए भी सुंदर सुमन खिला ही देती हैं ये नागफनी
    लाज़बाब सृजन सखी ,सादर स्नेह

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    1. सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी सुंदर समीक्षा हेतु. सादर

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  3. लाजवाब सृजन ।
    जीवन की तपिश
    सहते हुए भी,
    मुस्कुरा उठती है वह,
    महक जाते हैं
    देह पर उसके भी,
    आशा के सुन्दर सुमन,
    स्नेह सानिध्य की,
    नमी से,
    सार गर्भित कथ्य बहुत बहुत सुंदर।

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    1. सादर आभार आदरणीय कुसुम दीदी सुंदर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  4. बाँधती है शीतल पवन को,
    सौगंध अनुबंध के बँधन में,
    विश्वास का ग़ुबार,
    लू की उलाहना,
    जड़ों को करती है और गहरी !!!
    बहुत गहन रचना। शब्दावली और भावों का सुघड़ संयोजन अनिता जी।

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर स्नेह

      हटाएं
  5. नितांत निर्जन निरस 
    सूखे अनमने 
    विचार शून्य परिवेश में 
    पनप जाती है वह भी,  
    जीवन की तपिश
     सहते हुए भी,  
    मुस्कुरा उठती है वह, 
    महक जाते हैं 
    देह पर उसके भी,  
    आशा के सुन्दर सुमन,  
    स्नेह सानिध्य की, 
    नमी से,  
    रहती है वह भी सराबोर.. बहुत ही सुंदर लिखा है अनीता.

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    1. जी बहुत बहुत शुक्रिया आप का
      सादर आभार

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  6. कंटीले तन के साथ रक्ताभ पुष्प को सीने पर सजाये नागफनी का भावपूर्ण वर्णन प्रिय अनीता 👌👌👌👌

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

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  7. मरु की धूल-धूसरित आँधी में,
    अनायास ही,
    खिलखिला उठती है वह भी,
    अपने भीतर समेटे,
    अथाह मानवीय मूल्यों-सा,
    सघन सैलाब, बेहतरीन रचना सखी 👌

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  8. विचार शून्य परिवेश में
    पनप जाती है वह भी,
    जीवन की तपिश
    सहते हुए भी,
    मुस्कुरा उठती है वह,
    महक जाते हैं
    देह पर उसके भी,
    आशा के सुन्दर सुमन,
    स्नेह सानिध्य की,
    नमी से,
    नागफनी जैसे जटिल विषय पर इतनी खूबसूरत रचना!!!!
    वाह अनीता जी आपका भी जबाब नहीं
    बहुत ही लाजवाब सृजन

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु. अपना स्नेह बनाये रखे.
      सादर

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  9. नागफनी में सकारात्मकता को तलाशती उत्कृष्ट रचना जिसका भावपक्ष बहुत प्रभावशाली है।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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