प्रदूषण के प्रचंड प्रकोप से ,
दम तोड़ता देख धरा का धैर्य,
बरगद ने आपातकालिन सभा में,
आह्वान नीम-पीपल का किया।
ससम्मान सत्कार का ग़लीचा बिछा,
बुज़ुर्ग बरगद ने दिया आसन प्रभाव का,
विनम्र भाव से रखा तर्क अपना,
बिखर रही क्यों शक्ति तुम्हारी,
मानव को क्यों प्रकृति से अलगाव हुआ।
विनम्र भाव से रखा तर्क अपना,
बिखर रही क्यों शक्ति तुम्हारी,
मानव को क्यों प्रकृति से अलगाव हुआ।
मानव अलगाव की करुण-कथा,
ज़ुबाँ से जताते व्यथा नीम-पीपल,
कटु-सत्य संग धर अधरों पर शब्दों को,
पीले पत्तों-सा पतन मानव का दिखा रहे।
पीले पत्तों-सा पतन मानव का दिखा रहे।
शीशे की दीवारें शीतल हवा का स्वाँग,
धन-दौलत को सुख जीवन का बता,
प्रकृति से विमुख कृत्रिमता को पनाह,
मानव कैमिकल का स्वाद चख़ रहा।
चिंतापरक गहन विषय पर्यावरण,
अहं का भार बढ़ा मानव हृदय पर,
लापरवाही गरल बोध दर्शाती,
सजा का हो प्रवधान,
वृक्षों की सभा में आवाज़ यह उठी।
मन मस्तिष्क हुआ कुपोषित मानव का ,
तन को सबक़ सिखायेगा प्रदूषण,
प्रत्येक अंग में कीट बहुतेरे,
आवंतों के सुझाव की प्रतीक्षा करे धरा।
©अनीता सैनी
प्रकृति से विमुख कृत्रिमता को पनाह,
मानव कैमिकल का स्वाद चख़ रहा।
चिंतापरक गहन विषय पर्यावरण,
अहं का भार बढ़ा मानव हृदय पर,
लापरवाही गरल बोध दर्शाती,
सजा का हो प्रवधान,
वृक्षों की सभा में आवाज़ यह उठी।
मन मस्तिष्क हुआ कुपोषित मानव का ,
तन को सबक़ सिखायेगा प्रदूषण,
प्रत्येक अंग में कीट बहुतेरे,
आवंतों के सुझाव की प्रतीक्षा करे धरा।
©अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी संध्या दैनिक में मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी .चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
सार्थक विषय पर सुंदर सृजन 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी
हटाएंशीशे की दीवारें शीतल हवा का स्वाँग,
जवाब देंहटाएंधन-दौलत को सुख जीवन का बता,
प्रकृति से विमुख कृत्रिमता को पनाह,
मानव कैमिकल का स्वाद चख़ ।
सचमुच पर्यावरण प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या है नीम पीपल वरगद ये पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देते है पर्यावरण को अब इन पेड़ो का अभाव ही है कृत्रिमता में जी रहा है मानव....
बहुत ही सटीक चिन्तनपरक एवं सार्थक सृजन
वाह!!!
सादर आभार आदरणीया सुधा दीदी रचना का मर्म स्पष्ट करती सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
समकालीन ज्वलंत विषय पर अनूठे बिम्बों के साथ सार्थक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंनीम-पीपल को बरगद की नसीहत और चिंता समझ आती है काश ! इंसान भी प्रकृति का दर्द समझे!
सादर आभार आदरणीय सर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
उत्कृष्ट लेखन। बेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
पर्यावरण प्रदूषण पर चिन्तन और पर्यावरण संरक्षण आह्वान करती सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया मीना दीदी सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंमानवीकरण अलंकार से सजी , अंतर्बोध कराती सार्थक रचना प्रिय अनिता |कितना विकट समय है कि बूढ़े बरगद को आपातकालीन सहा बुलानी पढ़ रही है वह भी सहोदरों नीम और पीपल के साथ | काश बरगद दादा की बात स्वार्थी मानव समझ पाता ? रचना अपने मूल उद्देश्य पर्यावरण पर चिंता जताने में सफल हुई है | स्स्मेह शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया रेणु दीदी सुन्दर सारगर्भित रचना का मर्म स्पष्ट करती सुन्दर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर स्नेह
वाह!!सखी अनीता ,बहुत खूबसूरती के साथ अपने पर्यावरण के साथ मानव के खिलवाड़ को चित्रित किया है ।बहुत खूब!👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया शुभा दीदी जी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 20 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीय पांच लिंकों पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
हटाएंचिंतापरक गहन विषय पर्यावरण,
जवाब देंहटाएंअहं का भार बढ़ा मानव हृदय पर,
लापरवाही गरल बोध दर्शाती,
सजा का हो प्रवधान,
वृक्षों की सभा में आवाज़ यह उठी।
बहुत ही भयानक होगा परिणाम, यदि यह कल्पना सच हो जाए। वृक्ष प्रकृति के वे घटक हैं जो मानव को कभी सजा नहीं देते, वरदान ही देते हैं। यदि वे सजा देने पर तुलेंगे तो मनुष्य जाति नष्ट हो जाएगी। बधाई, रचना में पर्यावरण को लेकर अनूठे बिंब प्रस्तुत हुए हैं।
सादर आभार आदरणीया मीना दीदी प्रकृति से मानव की दुरी विनाश को निमंत्रण के सम्मन है सार्थक विचरों के साथ सारगर्भित समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर