शून्य नभ से झाँकते तारों की पीड़ा,
मूक स्मृतियों में सिसकता खंडहर हूँ मैं,
हिंद-हृदय सजाता अश्रुमाला आज,
आलोक जगत में धधकते प्राण,
चुप्पी साधे बिखरता वर्तमान हूँ मैं।
मूक स्मृतियों में सिसकता खंडहर हूँ मैं,
हिंद-हृदय सजाता अश्रुमाला आज,
आलोक जगत में धधकते प्राण,
चुप्पी साधे बिखरता वर्तमान हूँ मैं।
कलुषित सौंदर्य,नहीं विचार सापेक्ष,
जटिलताओं में झूलता भावबोध हूँ मैं,
उत्थान की अभिलाषा अवनति की ग्लानि,
कल का अदृश्य वज्र मैं, मैं ज्वलित हूँ,
जटिलताओं में झूलता भावबोध हूँ मैं,
उत्थान की अभिलाषा अवनति की ग्लानि,
कल का अदृश्य वज्र मैं, मैं ज्वलित हूँ,
एक पल ठहर प्रस्थान जलता वर्तमान हूँ मैं।
अवसान की दुर्भावनाएँ व्याप्त अकर्मण्डयता,
मृत्यु को प्राप्त मूल्य,क्षुद्रता ढोता अभिशाप मैं,
अमरता का मान गढ़ने पुरुष मर्त्य बना आज,
अनिमेष देखता अद्वैत लीन मैं,चिरध्यान में मैं,
विमुख-उन्मुख तल्लीनता उठता वर्तमान हूँ मैं।
©अनीता सैनी
अवसान की दुर्भावनाएँ व्याप्त अकर्मण्डयता,
मृत्यु को प्राप्त मूल्य,क्षुद्रता ढोता अभिशाप मैं,
अमरता का मान गढ़ने पुरुष मर्त्य बना आज,
अनिमेष देखता अद्वैत लीन मैं,चिरध्यान में मैं,
विमुख-उन्मुख तल्लीनता उठता वर्तमान हूँ मैं।
©अनीता सैनी
सुंदर रचना, ।।।।
जवाब देंहटाएंचुप्पी साधे बिखेरता वर्तमान ।।।।
इस रचना का दर्शन विशाल है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया अनीता जी।
सादर आभार सर उत्साह बढ़ाती सारगर्भित प्रतिक्रिया से और अपना विशाल विचार समेटे सुंदर व्याख्या से रचना का मान बढ़ाया है.
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 25 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी संध्या दैनिक में मेरी रचना को स्थान देने के लिये.
हटाएंसादर
अनिमेष देखता अद्वैत लीन मैं,चिरध्यान में मैं,
जवाब देंहटाएंविमुख-उन्मुख तल्लीनता उठता वर्तमान हूँ मैं।
बेहद गहरे भाव समेटे लाजबाब सृजन अनीता जी ,सादर स्नेह आपको
सादर आभार आदरणीय दीदी सुन्दर समीक्षा हेतु.
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-02-2020) को "डर लगता है" (चर्चा अंक-3623) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय सर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
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वाह!प्रिय सखी अनीता ,अद्भुत !!
जवाब देंहटाएंसादर आभार सखी सुन्दर समीक्षा हेतु.
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वाह बेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी सुन्दर समीक्षा हेतु.
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 27 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीय मेरी रचना को पांच लिंकों के आनंद पर स्थान देने हेतु.
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अद्भुत सृजन अनिता जी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी सुन्दर समीक्षा हेतु.
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ज्वलंत वर्तमान का सदृश खाका उकेरती शानदार रचना! प्रतीक बहुत हृदय स्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती सुन्दर समीक्षा हेतु.
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हे भगवान !
जवाब देंहटाएंऐसे वर्त्तमान से भूत काल ही अच्छा था.
सादर आभार आदरणीय सर सुन्दर समीक्षा हेतु.
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वर्तमान की विद्रूपताओं ने हमें भावशून्य होने में अहम भूमिका निभायी है। जीवन दर्शन के विभिन्न आयामों पर हमारा ध्यान केन्द्रित करती भाव-गाम्भीर्य से ओतप्रोत रचना।
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर आभार आदरणीय सुन्दर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
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सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सुन्दर समीक्षा हेतु.
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बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय सर
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