टूटे पंखों से लिख दूँ मैं,
बना लेखनी वह कविता।
पीर परायी धंरु हृदय पर,
छंद बहे रस की सरिता।
मर्मान्तक की पीड़ा लिख दूँ,
पूछ पवन संदेश बहे।
प्रीत लिखूँ छलकाते शशि को,
भानु-तपिश जो देख रहे,
जनमानस की हृदय वेदना,
अहं झूलती सृजन कहे।
पथ ईशान सारथी लिख दूँ,
उषा कलरव की सुनीता।
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं,
बना लेखनी वह कविता।
पात-पात पर यथार्थ लिख दूँ,
सृष्टि-अश्रु बनकर बहती।
लेख विनाश लिखूँ तांडव पर,
मानस की करुणा कहती,
उद्धार पतित पथ का लिख दूँ,
भाव-विभाव जहाँ रहती।
बाल-बोध मन सुरभित लिख दूँ,
मिट्टी की गंध अनीता ।
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं,
बना लेखनी वह कविता।
©अनीता सैनी
बना लेखनी वह कविता।
पीर परायी धंरु हृदय पर,
छंद बहे रस की सरिता।
मर्मान्तक की पीड़ा लिख दूँ,
पूछ पवन संदेश बहे।
प्रीत लिखूँ छलकाते शशि को,
भानु-तपिश जो देख रहे,
जनमानस की हृदय वेदना,
अहं झूलती सृजन कहे।
पथ ईशान सारथी लिख दूँ,
उषा कलरव की सुनीता।
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं,
बना लेखनी वह कविता।
पात-पात पर यथार्थ लिख दूँ,
सृष्टि-अश्रु बनकर बहती।
लेख विनाश लिखूँ तांडव पर,
मानस की करुणा कहती,
उद्धार पतित पथ का लिख दूँ,
भाव-विभाव जहाँ रहती।
बाल-बोध मन सुरभित लिख दूँ,
मिट्टी की गंध अनीता ।
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं,
बना लेखनी वह कविता।
©अनीता सैनी
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (28-02-2020) को धर्म -मज़हब का मरम (चर्चाअंक -3625 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
आँचल पाण्डेय
सस्नेह आभार आँचल चर्चामंच पर स्थान देने हेतु.
हटाएंसादर
"मर्मान्तक की पीड़ा लिख दूँ,
जवाब देंहटाएंपूछ पवन संदेश बहे।
प्रीत लिखूँ छलकाते शशि को,
भानु-तपिश जो देख रहे..."
--
बहुत मार्मिक उद्गार।
सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसादर
बाल-बोध मन सुरभित लिख दूँ,
जवाब देंहटाएंमिट्टी की गंध अनीता ।
टूटे पंखों से लिख दूँ मैं,
बना लेखनी वह कविता।
वाह!!!
लाजवाब नवगीत....
सादर आभार आदरणीय दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर स्नेह
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्दावली।
सादर आभार आदरणीय दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
पात-पात पर यथार्थ लिख दूँ,
जवाब देंहटाएंसृष्टि-अश्रु बनकर बहती।
लेख विनाश लिखूँ तांडव पर,
मानस की करुणा कहती,
उद्धार पतित पथ का लिख दूँ,
भाव-विभाव जहाँ रहती।
मन को झकझोरती औत चेतना को जगाती आपकी इस रचना हेतु साधुवाद आदरणीया अनीता जी ।
सादर आभार आदरणीय सर
हटाएंसादर
वाह अनुपम
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर समीक्षा हेतु.
हटाएंसादर
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-2-22) को एहसास के गुँचे' "(चर्चा अंक 4354)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
अनीता की कविता या अनीता ही है कविता...
जवाब देंहटाएंअनीता ही कविता है 🥰
हटाएंहार्दिक आभार आपका।
सादर
सुंदर भावपूर्ण नवगीत।
जवाब देंहटाएंलक्षणा व्यंजनाओं से सुसज्जित।
हृदय से आभार आपका प्रिय कुसुम दी जी।
हटाएंसादर स्नेह