मानव मन अब अवसाद न कर,
चहुओर प्रेम पुष्प खिलेंगे,
समय साथ है आशा तू धर।
पतझर पात विटप से झड़ते,
बसँत नवाँकुर खिल आएगा,
खुशहाली भारत में होगी
गुलमोहर-सा खिल जाएगा,
बीतेगा ये पल भी भारी,
संयम और संतोष तू वर।
धरा-नभ का साथ है सुंदर
जीवन आधार बताते हैं
कर्म कारवाँ साथ चलेगा,
मिलकर के प्रीत सँजोते हैं,
पनीली चाहत थामे काल ,
विवेक मुकुट मस्तिष्क पर धर।
खिलेंगे किसलय सजा बँधुत्त्व
मोती नैनों के ढ़ोते हैं,
स्नेह मकरंद बन झर जाए,
अंतरमन को समझाते हैं,
विनाश रुप के काले मेघ,
धरा से विधाता विपदा हर ।
©अनीता सैनी