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मंगलवार, मार्च 24

महावन

महावन में दौड़ते देखे, 
अनगिनत 
जाति-धर्म और,
मैं-मेरे के
 अस्तित्त्वविहीन तरु, 
सरोवर के 
किनारे सहमी,
 खड़ी मैं सुनती रही, 
निर्बोध 
बालिका की तरह, 
उनकी चीख़ें। 

आख़िर ठिठककर, 
 बैठ ही गयी,
अर्जुन वृक्ष के नीचे मैं भी,
देख रही थी ख़ामोशी से,
शहीद-दिवस पर, 
शहीदों का कारवाँ,  
सुन रही थी, 
पति-पिता को पुकारतीं, 
उनकी चीख़ें।  

देख-सुन रही थी 
ढँग जीने का,
बुद्धिमान वृक्षों की, 
बुद्धिमानी का,
भविष्य से बेख़बर, 
सींचते हैं 
सभ्य-सुसंस्कृत महावृक्ष  
 नक्सली नाम की, 
कँटीली झाड़ियाँ,
उन झाड़ियों में उलझे दामन,
उनकी चीख़ें। 

© अनीता सैनी 

16 टिप्‍पणियां:

  1. मैं-मेरे के
    अस्तित्त्वविहीन तरु....
    नवीनता लिए पंक्तियाँ । अच्छी लगी। बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर रचना सखी

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर रचना अनीता जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-03-2020) को    "नव संवत्सर-2077 की बधाई हो"   (चर्चा अंक -3651)     पर भी होगी। 
     -- 
    मित्रों!
    आजकल ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने चर्चा धर्म को निभा रहा है।
    आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय चर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु.
      सादर

      हटाएं
  5. अर्जुन वृक्ष के नीचे मैं भी,
    देख रही थी ख़ामोशी से,
    शहीद-दिवस पर,
    शहीदों का कारवाँ,
    हृदयस्पर्शी सृजन.. हर मोर्चे पर लड़ते और प्राण न्यौछावर करते है ..कभी सरहद पर..कभी आपदाग्रस्त क्षेत्रों में ..इनका कर्ज कौन उतार सकता है..नमन इन कर्मवीरों को 🙏🙏

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
      सादर

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  6. बिम्बों और प्रतीकों में निहित गंभीर वेदना और व्यंग्य.
    रचना का संदेश बहुत व्यापक है.
    देश में नक्सली समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करती रचना क़ाबिल-ए-तारीफ़ है.

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    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय सर सारगर्भित समीक्षा हेतु. आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर प्रणाम

      हटाएं
  7. वाह, बहुत सुन्दर

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

      हटाएं
  8. वाह!प्रिय सखी ,लाजवाब सृजन!

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  9. सादर आभार आदरणीय दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
    सादर

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